सिक्किम में लेपचा जनजाति का पारंपरिक ‘तेंडोंग ल्हो रम फात’ पर्व मनाया गया

सिक्किम में शुक्रवार को लेपचा जनजाति का प्रकृति-पूजक पर्व ‘तेंडोंग ल्हो रम फात’ राज्यस्तर पर धूमधाम से मनाया गया। मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग (गोलाय) ने गंगटोक स्थित मनन केंद्र में आयोजित समारोह में भाग लेकर राज्यवासियों, विशेषकर लेपचा समुदाय को बधाई दी।
पर्व का महत्व और पौराणिक कथा
यह पर्व दक्षिण सिक्किम की पवित्र तेंडोंग पहाड़ी से जुड़ी एक प्राचीन लोककथा की स्मृति में मनाया जाता है। मान्यता है कि प्राचीन काल में आई भीषण बाढ़ के दौरान तेंडोंग पहाड़ी जलस्तर से ऊपर उठ गई और उसने डूबते हुए लोगों को आश्रय देकर उनके प्राण बचाए।लोककथा के अनुसार, जब भूमि जलमग्न हो गई, तब लेपचा पूर्वज तेंडोंग पहाड़ी की चोटी पर शरण लेने पहुंचे और इद्बुरुम देवता से प्रार्थना की। तभी एक दिव्य पक्षी प्रकट हुआ, जो रक्षक आत्मा में परिवर्तित होकर समुदाय को आशीर्वाद देने लगा और उन्हें सुरक्षित रखा।
पर्व के पारंपरिक आयोजन
- इस दिन लेपचा लोग तेंडोंग पहाड़ी और इद्बुरुम देवता के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं।
- घर के बाहर पहाड़ का प्रतीकात्मक मॉडल बनाया जाता है, जो नौ पत्थरों से निर्मित होता है, और उसकी पूजा की जाती है।
- लोग पारंपरिक मुखौटे पहनकर नृत्य और गीत प्रस्तुत करते हैं, ताकि ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त हो।
- पारंपरिक प्रार्थनाएं, सांस्कृतिक कार्यक्रम और लेपचा विरासत पर प्रदर्शनी भी आयोजित की जाती है।
नाम और उत्पत्ति
‘तेंडोंग’ शब्द लेपचा बोली से लिया गया है, जिसका अर्थ है ‘उठे हुए सींग की पहाड़ी’।लेपचा पौराणिक कथा के अनुसार, सृष्टि के समय यह पहाड़ी एक देवता के सींग से उत्पन्न हुई थी। यह एक ज्वालामुखी शिखर था, जिसने टिस्टा और रंगीत नदियों के स्रोतों को नष्ट कर दिया, जिससे बाढ़ आई। निचले इलाकों में जलभराव होते देख पहाड़ी का सींग चमत्कारिक रूप से ऊपर उठा और जनजाति के लोग इसकी ओर भागकर बच सके।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- लेपचा जनजाति सिक्किम की सबसे प्राचीन और प्रकृति-पूजक समुदाय मानी जाती है।
- तेंडोंग ल्हो रम फात पर्व हर वर्ष तेंडोंग पहाड़ी और अन्य क्षेत्रों में मनाया जाता है।
- इस पर्व का मुख्य संदेश प्रकृति संरक्षण और सामुदायिक एकता है।
- मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग ने इस अवसर पर पर्यावरण संरक्षण और प्राकृतिक धरोहर को बचाने का आह्वान किया।
यह पर्व केवल आस्था और परंपरा का उत्सव नहीं, बल्कि पर्यावरण और मानव के सह-अस्तित्व का जीवंत उदाहरण भी है, जो आने वाली पीढ़ियों को प्रकृति के प्रति संवेदनशील और सजग रहने का संदेश देता है।