सिंधु जल संधि पर भारत की नई रणनीति: आतंकवाद और पानी की राजनीति के बीच बदलता परिदृश्य

भारत और पाकिस्तान के बीच दशकों से चला आ रहा सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty – IWT) का संतुलन अब बदलता दिख रहा है। अप्रैल 2025 में पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने इस संधि को “अस्थगित” (in abeyance) कर दिया है — यह एक ऐसा कदम है जिसने जल साझेदारी के साथ-साथ भारत-पाकिस्तान संबंधों की समग्र दिशा को प्रभावित किया है। वरिष्ठ रक्षा विशेषज्ञ उत्तम कुमार सिन्हा की नई पुस्तक Trial by Water (2025) इस मुद्दे की जटिलताओं को ऐतिहासिक, भौगोलिक और रणनीतिक दृष्टिकोण से विश्लेषित करती है।
65 वर्षों तक चले शांतिपूर्ण समझौते की पृष्ठभूमि
1960 में विश्व बैंक की मध्यस्थता में हस्ताक्षरित इस संधि के तहत भारत को पूर्वी नदियाँ — रावी, ब्यास, सतलुज — और पाकिस्तान को पश्चिमी नदियाँ — सिंधु, झेलम, चिनाब — प्राप्त हुईं। भले ही भारत के पास पश्चिमी नदियों पर कुछ सीमित अधिकार हैं, परंतु भारत ने अब तक इनका पूरा उपयोग नहीं किया।
उत्तम सिन्हा के अनुसार, इस संधि की सफलता का कारण भारत का जिम्मेदार व्यवहार रहा है। भारत ने सूचनाओं के आदान-प्रदान, न्यूनतम प्रवाह बनाए रखने और परियोजनाओं की पारदर्शिता में अग्रणी भूमिका निभाई है, जबकि पाकिस्तान ने अक्सर इस संधि का उपयोग भारतीय परियोजनाओं को बाधित करने के लिए किया है।
पाकिस्तान की असुरक्षा और सिंधु का रणनीतिक महत्व
सिन्हा लिखते हैं कि पाकिस्तान की असली चिंता “अधिक पानी” नहीं, बल्कि “नदी प्रवाह पर नियंत्रण” है। चूंकि अधिकांश नदियाँ जम्मू-कश्मीर से होकर बहती हैं, पाकिस्तान की कश्मीर को लेकर रणनीति केवल धार्मिक या क्षेत्रीय नहीं, बल्कि जल सुरक्षा से भी प्रेरित रही है। संधि पर हस्ताक्षर के तुरंत बाद पाकिस्तान के सैन्य शासक अयूब खान का कश्मीर पर कब्जे की बात करना इसका प्रमाण है।
सिंधु जल संधि का दुरुपयोग और भारत की प्रतिक्रिया
वर्षों से पाकिस्तान ने संधि के अनुच्छेद IX (विवाद निवारण प्रक्रिया) का उपयोग कर भारत की परियोजनाओं को बाधित किया। लेकिन अब भारत ने इस संधि को “अस्थगित” कर, अपने अधिकारों का पूर्ण उपयोग करने की ओर कदम बढ़ाया है। भारत की मंशा प्रवाह को रोकना नहीं, बल्कि अपने हिस्से के जल संसाधनों का पूरा उपयोग करना है — विशेषकर जम्मू-कश्मीर में लटकी परियोजनाओं को आगे बढ़ाने के लिए।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- सिंधु जल संधि 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक की मध्यस्थता में संपन्न हुई थी।
- इस संधि के तहत भारत को पूर्वी नदियों (रावी, ब्यास, सतलुज) और पाकिस्तान को पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम, चिनाब) पर नियंत्रण मिला।
- भारत अब तक पश्चिमी नदियों पर अपने सीमित अधिकारों का पूर्ण उपयोग नहीं कर पाया है।
- पाकिस्तान ने अक्सर विवाद निवारण प्रक्रिया का उपयोग भारत की परियोजनाओं को रोकने के लिए किया।
- उत्तम कुमार सिन्हा की नई पुस्तक Trial by Water सिंधु संधि पर उनका दूसरा गहन अध्ययन है।