सारकॉइडोसिस: एक रहस्यमयी सूजन संबंधी रोग जो शरीर के कई अंगों को प्रभावित कर सकता है

सारकॉइडोसिस: एक रहस्यमयी सूजन संबंधी रोग जो शरीर के कई अंगों को प्रभावित कर सकता है

सारकॉइडोसिस एक बहु-अंग प्रणाली को प्रभावित करने वाला सूजनजनित रोग है, जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली असामान्य रूप से सक्रिय होकर विभिन्न अंगों में ग्रैन्युलोमा (सूजनयुक्त कोशिकाओं के समूह) बना देती है। यह रोग हल्के लक्षणों से लेकर गंभीर जटिलताओं तक भिन्न हो सकता है। कुछ मामलों में व्यक्ति को कोई लक्षण नहीं होते, जबकि कुछ में यह फेफड़ों, त्वचा, आंखों, हृदय और तंत्रिका तंत्र को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है। हाल ही में Nature Reviews Disease Primers में प्रकाशित एक शोध अध्ययन ने इस रोग की विविध प्रवृत्तियों और इसके प्रभाव डालने वाले कारणों का गहन विश्लेषण प्रस्तुत किया है।

सारकॉइडोसिस कैसे विकसित होता है

सारकॉइडोसिस तब होता है जब प्रतिरक्षा प्रणाली किसी अज्ञात कारण से अत्यधिक सक्रिय हो जाती है और शरीर के अंगों में सूजनयुक्त कोशिकाओं के छोटे-छोटे समूह (ग्रैन्युलोमा) बना देती है। ये ग्रैन्युलोमा अंगों के सामान्य कार्य में बाधा डालते हैं। सबसे अधिक प्रभाव फेफड़ों और लिम्फ नोड्स पर होता है, लेकिन त्वचा, आंखें, हृदय और मस्तिष्क जैसे अन्य अंग भी प्रभावित हो सकते हैं। यह रोग आनुवंशिक प्रवृत्ति, पर्यावरणीय कारणों और प्रतिरक्षा तंत्र की अतिसक्रियता के कारण विकसित हो सकता है।

सारकॉइडोसिस के आम लक्षण

इस रोग के लक्षण व्यक्ति विशेष और प्रभावित अंग के अनुसार भिन्न हो सकते हैं:

  • लगातार खांसी और सांस फूलना
  • थकान और बिना कारण वजन घटना
  • त्वचा पर चकत्ते, गांठें या घाव
  • लिम्फ नोड्स में सूजन
  • आंखों में जलन, धुंधलापन या दर्द

कई मामलों में रोग का पता केवल नियमित जांच के दौरान ही लगता है, क्योंकि लक्षण स्पष्ट नहीं होते।

फेफड़ों पर असर और जटिलताएं

सारकॉइडोसिस से सबसे अधिक फेफड़े प्रभावित होते हैं। फेफड़ों में ग्रैन्युलोमा बनने से खांसी, सांस लेने में कठिनाई और छाती में दर्द जैसी समस्याएं हो सकती हैं। समय के साथ यह ग्रैन्युलोमा फेफड़ों में फाइब्रोसिस (ऊतक में कठोरता) का कारण बन सकते हैं, जिससे फेफड़ों की कार्यक्षमता घट जाती है और रोगी को सांस लेने में गंभीर कठिनाई हो सकती है।

अन्य अंगों पर प्रभाव

त्वचा में सारकॉइडोसिस के कारण लाल चकत्ते, गांठें या दाग दिख सकते हैं। आंखों में सूजन, दर्द और दृष्टि की समस्या हो सकती है। हृदय को प्रभावित करने पर धड़कन अनियमित हो सकती है या हृदय विफलता की संभावना बढ़ सकती है। न्यूरोलॉजिकल सारकॉइडोसिस दुर्लभ होता है, लेकिन यह चेहरे की लकवा, दौरे और तंत्रिका क्षति का कारण बन सकता है।

सारकॉइडोसिस की पहचान और जांचें

इस रोग का निदान विभिन्न परीक्षणों से होता है:

  • छाती का एक्स-रे या सीटी स्कैन
  • प्रभावित ऊतक की बायोप्सी, जिससे ग्रैन्युलोमा की पुष्टि होती है
  • रक्त परीक्षण और फेफड़ों की कार्यक्षमता की जांच

सही समय पर निदान से रोग की प्रगति को रोका जा सकता है।

हल्के और गंभीर मामलों के लिए इलाज

हल्के मामलों में अक्सर किसी दवा की आवश्यकता नहीं होती और नियमित जांच पर्याप्त होती है। जबकि मध्यम से गंभीर मामलों में सूजन को कम करने के लिए कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स जैसे प्रेडनिसोन दिए जाते हैं। यदि स्टेरॉइड से लाभ न हो, तो इम्यूनोसप्रेसिव दवाएं जैसे मेथोट्रेक्सेट या एजाथायोप्रिन दी जाती हैं। हाल के वर्षों में बायोलॉजिक थैरेपी भी एक प्रभावी विकल्प के रूप में उभर रही हैं।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • सारकॉइडोसिस का पहला उल्लेख 19वीं सदी में स्कॉटलैंड के त्वचा रोग विशेषज्ञ डॉ. जोनाथन हचिंसन ने किया था।
  • यह बीमारी महिलाओं में पुरुषों की तुलना में अधिक पाई जाती है, विशेषकर 20-40 वर्ष की आयु में।
  • अमेरिका में अफ्रीकी-अमेरिकन समुदाय में इसका जोखिम सबसे अधिक होता है।
  • भारत में इसके मामले अपेक्षाकृत कम रिपोर्ट होते हैं, लेकिन जागरूकता की कमी के कारण सही आंकड़ा स्पष्ट नहीं है।
Originally written on September 15, 2025 and last modified on September 15, 2025.

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