सात वर्षों बाद सिक्किम में लाल पांडा शावकों का जन्म, संरक्षण कार्यक्रम को नई ऊर्जा

सिक्किम की राजधानी गंगटोक के पास स्थित हिमालयन जूलॉजिकल पार्क में सात वर्षों के अंतराल के बाद लाल पांडा के दो शावकों का जन्म संरक्षण कार्यक्रम के लिए एक नई आशा लेकर आया है। माता-पिता लकी-II और मिराक ने 15 जून को इन शावकों को जन्म दिया, जिसकी घोषणा 1 अगस्त 2025 को की गई। यह जोड़ी का पहला संतति समूह है, और यह घटना 1997 में आरंभ हुए रेड पांडा संरक्षण कार्यक्रम के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि मानी जा रही है।

संकटग्रस्त संरक्षण प्रयासों को मिली नई दिशा

बीते सात वर्षों में इस कार्यक्रम को दो बार कैनाइन डिस्टेंपर नामक वायरस के प्रकोप ने बुरी तरह प्रभावित किया, जिससे पार्क में कैद रेड पांडा की जनसंख्या लगभग समाप्त हो गई थी। पार्क के निदेशक सांग्ये ग्यात्सो के अनुसार, इस कठिन दौर के बाद शावकों का यह जन्म संरक्षण प्रयासों की दृढ़ता और जीवटता को दर्शाता है। पार्क के रेड पांडा प्रजनन कार्यक्रम की शुरुआत नीदरलैंड के रॉटरडैम चिड़ियाघर से आई मादा ‘प्रीति’ और दार्जिलिंग के पद्मजा नायडू हिमालयन जूलॉजिकल पार्क से आए नर ‘जुगल’ से हुई थी।

अद्वितीय व्यवहार और जैव विविधता की रक्षा

रेड पांडा सामान्यतः सर्दियों (नवंबर-जनवरी) में प्रजनन करते हैं और लगभग पांच महीने के गर्भकाल के बाद जून-अगस्त में शावकों को जन्म देते हैं। इस बार खास बात यह रही कि नर पांडा मिराक ने मादा लकी-II के साथ घोंसला बनाने में भाग लिया, जो प्रजाति में दुर्लभ व्यवहार है। सामान्यतः नर पांडा शावकों की परवरिश में हिस्सा नहीं लेते।
पार्क के अनुसार, शावकों को एक वर्ष तक मां के साथ रखा जाएगा और उसके बाद उनकी सेहत और प्रजनन क्षमता के मूल्यांकन के आधार पर उन्हें प्रजनन रणनीतियों में शामिल किया जाएगा। यह कार्य राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्टडबुक के माध्यम से ट्रैक किया जाता है जिससे आनुवांशिक विविधता को बनाए रखा जा सके।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • रेड पांडा (Ailurus fulgens) को IUCN ने संकटग्रस्त प्रजाति घोषित किया है।
  • यह प्रजाति केवल Ailuridae परिवार की जीवित सदस्य है।
  • रेड पांडा के पैर के तलवों में मौजूद ग्रंथियाँ गंध छोड़कर क्षेत्र चिह्नित करती हैं।
  • यह जानवर सिर के बल पेड़ों से नीचे चढ़ सकने की क्षमता रखने वाले गिने-चुने प्राणी हैं।

संरक्षण की दिशा में आगे की राह

रेड पांडा मुख्यतः बांस के पत्तों और कोमल कोंपलों पर निर्भर रहते हैं और उनकी जैविक संरचना इन्हीं खाद्य स्रोतों के लिए अनुकूलित है। उनकी जीवनशैली, सीमित ऊर्जा व्यय, और सर्द मौसम में मेटाबॉलिज्म कम करने की क्षमता उन्हें कठिन हिमालयी परिस्थितियों में जीवित रखती है।
पश्चिमी सिक्किम के बुलबुले में स्थित यह 205 हेक्टेयर पार्क न केवल लाल पांडा बल्कि हिम तेंदुआ, हिमालयी काले भालू, मोनाल और हिमालयी पाम सिवेट जैसी दुर्लभ प्रजातियों का घर है। इस ताजे शावक जन्म ने न केवल वैज्ञानिकों और संरक्षणवादियों को उत्साहित किया है, बल्कि यह दर्शाता है कि समर्पित प्रयासों से विलुप्तप्राय प्रजातियों को बचाया जा सकता है।
लाल पांडा संरक्षण की यह सफलता न केवल सिक्किम के लिए गौरव की बात है, बल्कि यह उन सभी प्रयासों को प्रेरणा देती है जो जैव विविधता की रक्षा के लिए समर्पित हैं।

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