सहारिया जनजाति में टीबी की उच्च दर के पीछे अनूठी आनुवंशिक कड़ी की खोज

एक नवीनतम आनुवंशिक अध्ययन में यह खुलासा हुआ है कि मध्य भारत की सहारिया जनजाति में तपेदिक (टीबी) की अत्यधिक दर के पीछे एक विशिष्ट आनुवंशिक कारण हो सकता है। यह अध्ययन बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) और चार अन्य संस्थानों के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया, जिसे अंतरराष्ट्रीय जर्नल Mitochondrion में प्रकाशित किया गया है।

सहारिया जनजाति और टीबी के बीच संबंध

मध्य प्रदेश की सहारिया जनजाति, जिसे विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (PVTG) के रूप में मान्यता प्राप्त है, में टीबी की दर 1,518 से 3,294 प्रति 1 लाख की आबादी है, जो राष्ट्रीय औसत से कई गुना अधिक है। इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने विशेष रूप से मातृ वंशानुक्रम (माइटोकॉन्ड्रिया) की भूमिका का विश्लेषण किया और पाया कि सहारिया जनजाति में दो दुर्लभ मातृ हॅप्लोग्रुप—N5 और X2—मौजूद हैं, जो आस-पास की अन्य जनजातियों या जातीय समूहों में पूरी तरह अनुपस्थित हैं।

जीन बहाव और प्रारंभिक लोहे युग की भूमिका

अध्ययन के अनुसार, ये दुर्लभ मातृ जीन सहारिया जनजाति में पश्चिम भारत से प्रारंभिक लोहे युग के दौरान जीन बहाव के माध्यम से पहुंचे। यह जीन प्रवाह सहारिया समुदाय की आनुवंशिक संरचना को इस तरह प्रभावित करता है कि वे टीबी जैसी बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं। इस परिकल्पना को जीन वैज्ञानिक प्रो. ज्ञानेश्वर चौबे और उनकी टीम ने विविध माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए नमूनों के उच्च-रिजॉल्यूशन विश्लेषण से प्रमाणित किया।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • सहारिया जनजाति मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ सहित कई राज्यों में फैली है और PVTG श्रेणी में आती है।
  • सहारिया जनजाति में पाए गए दुर्लभ हॅप्लोग्रुप N5 और X2 आस-पास की किसी अन्य जनजाति में नहीं पाए जाते।
  • ‘Founder Effect’ की वजह से ये दुर्लभ मातृ वंश सहारिया समुदाय में केंद्रित हो गए हैं।
  • यह पहला अध्ययन है जिसने किसी जनसंख्या की आनुवंशिक संरचना और रोग संवेदनशीलता के बीच अंतःक्रिया को स्पष्ट रूप से प्रस्तुत किया है।

सार्वजनिक स्वास्थ्य रणनीति के लिए अनुसंधान का महत्व

अध्ययन की मुख्य शोधकर्ता देबश्रुति दास ने कहा कि भारत में टीबी का बोझ सबसे अधिक है और ऐसी कमजोर जनजातियों में आनुवंशिक संवेदनशीलता को समझना स्वास्थ्य नीति के लिए अत्यंत आवश्यक है। यह शोध भविष्य में टीबी जैसे संक्रामक रोगों की रोकथाम के लिए लक्षित उपायों को विकसित करने में मदद करेगा।
सह-लेखक प्रो. प्रशांत सुरवझाला के अनुसार, यह अध्ययन न केवल आनुवंशिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि पर्यावरणीय और सामाजिक-आर्थिक कारक जैसे कुपोषण और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी भी सहारिया समुदाय में टीबी की उच्च दर के लिए जिम्मेदार हैं।
यह खोज भारतीय जनजातीय समुदायों की स्वास्थ्य स्थिति को समझने और सुधारने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। सहारिया जनजाति जैसे समुदायों की विशिष्ट आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए स्वास्थ्य कार्यक्रम बनाना अब और भी आवश्यक हो गया है।

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