सहमति की आयु पर फिर बहस: सुप्रीम कोर्ट में पॉक्सो कानून के तहत आयु घटाने पर विचार
सुप्रीम कोर्ट में लंबित जनहित याचिका (Nipun Saxena बनाम भारत संघ) में सहमति आधारित यौन संबंध की न्यूनतम आयु को 18 से घटाने का मुद्दा फिर से सुर्खियों में है। वर्तमान में पॉक्सो अधिनियम, 2012 के तहत 18 वर्ष से कम आयु के साथ किसी भी प्रकार का यौन संबंध अपराध माना जाता है।
पॉक्सो और “सहमति” की जटिल हकीकत
यद्यपि कई मामलों को “सहमति” वाले संबंध के रूप में पेश किया जाता है, वास्तविकता अधिक जटिल है।
- अधिकतर पीड़िताएं हाशिए पर रहने वाले समुदायों से आती हैं और हिंसक घरों, यौन शोषण, भेदभाव और जबरन शादी से बचने की कोशिश करती हैं।
- कई मामलों में पीड़िता 12 से 16 वर्ष की होती है और पुरुष उससे काफी बड़ा।
- अक्सर, माता-पिता द्वारा “लापता व्यक्ति” की रिपोर्ट के बाद पुलिस उन्हें बरामद करती है, मामला दर्ज होता है, पुरुष गिरफ्तार होता है और लड़की को आश्रय गृह भेजा जाता है।
विवादास्पद अदालत टिप्पणियां
- पश्चिम बंगाल मामला: कलकत्ता हाईकोर्ट ने 14 वर्षीय पीड़िता और 25 वर्षीय आरोपी के मामले में “गैर-शोषणकारी सहमति संबंध” कहा और आरोपी को बरी किया।
- सुप्रीम कोर्ट ने इन टिप्पणियों पर आपत्ति जताई, दोषसिद्धि बहाल की लेकिन जेल की सजा नहीं दी ताकि अब 21 वर्ष की पीड़िता को और नुकसान न हो।
- निचली अदालतें भी कई बार ऐसे मामलों को “रोमियो-जूलियट” प्रेम कहानी मानकर नरमी बरतती हैं, भले ही आयु का अंतर बड़ा हो।
आंकड़े बताते हैं रुझान
- एनसीआरबी के अनुसार, पॉक्सो के तहत मामलों की संख्या 2012 में 8,541 से बढ़कर 2021 में 53,874 हो गई।
- 2021 में मुंबई में दर्ज पॉक्सो मामलों में 54% में आरोपी प्रेमी, मित्र या शादी का वादा करने वाले थे।
- भारत में 2022 में 16 लाख बाल विवाह हुए, पर केवल 900 मामले दर्ज हुए। गरीबी, शिक्षा की कमी और यौन हिंसा का डर आज बाल विवाह के प्रमुख कारण हैं।
आयु घटाने की मांग और चुनौतियां
- बाल अधिकार कार्यकर्ता आयु 18 से घटाकर 16 वर्ष करने की मांग कर रहे हैं, बशर्ते संबंध में बल, दबाव या सत्ता में रहने वाले व्यक्ति का शोषण न हो।
- उनका तर्क है कि यह किशोरियों को अपनी पसंद के निर्णय लेने का अधिकार देगा और आपराधिक न्याय प्रणाली का दुष्प्रभाव कम करेगा।
- लेकिन सवाल है कि सीमा 16 पर क्यों रोकी जाए, जबकि कई मामलों में पीड़िता 14 या 12 वर्ष की होती है?
- सहमति की परिभाषा: यह उत्साही हो सकती है, डर से दी जा सकती है, भ्रमित हो सकती है, या धोखे से ली जा सकती है। नाबालिग से इसे स्पष्ट रूप से समझने की अपेक्षा अवास्तविक है।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
- जस्टिस अभय एस. ओका ने कहा: “पीड़िता को सूचित निर्णय लेने का कोई अवसर नहीं मिला। समाज ने उसे दोषी ठहराया, कानून ने उसे विफल किया और परिवार ने त्याग दिया।”
- उन्होंने राज्य को पीड़िता और उसके बच्चे की देखभाल व सुरक्षा सुनिश्चित करने का निर्देश दिया।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- पॉक्सो अधिनियम, 2012: बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों से निपटने के लिए विशेष कानून।
- आयु की सहमति: भारत में 18 वर्ष; कई देशों में 14 से 17 वर्ष के बीच।
- अनिवार्य रिपोर्टिंग: पॉक्सो के तहत किसी भी नाबालिग के साथ यौन गतिविधि की जानकारी होने पर पुलिस को सूचित करना कानूनी बाध्यता है।
- चाइल्ड मैरिज एक्ट, 2006: लड़कियों के लिए शादी की न्यूनतम उम्र 18 वर्ष, लड़कों के लिए 21 वर्ष।
विशेषज्ञ मानते हैं कि आयु सीमा में बिना सोचे-समझे बदलाव से लाखों कमजोर किशोरियां और अधिक खतरे में पड़ सकती हैं। समाधान के लिए ज़रूरी है कि कानून निर्माता भारत की किशोर लड़कियों की ज़मीनी हकीकत, उनकी असुरक्षाएं और उन परिस्थितियों को समझें जो उन्हें “भागकर शादी” करने पर मजबूर करती हैं।
Originally written on
August 11, 2025
and last modified on
August 11, 2025.