सरिस्का टाइगर रिज़र्व की सीमा पुनर्गठन योजना: खनन उद्योग को राहत, संरक्षण पर बहस

राजस्थान सरकार द्वारा प्रस्तावित सरिस्का टाइगर रिज़र्व के क्रिटिकल टाइगर हैबिटेट (CTH) की सीमाओं के पुनर्गठन की योजना ने संरक्षण बनाम विकास की बहस को एक बार फिर जीवित कर दिया है। इस योजना के अमल में आने पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश से बंद हुए 50 से अधिक मार्बल और डोलोमाइट खदानों को फिर से संचालन की संभावना मिल सकती है।
क्या है प्रस्तावित बदलाव?
सरकार ने सरिस्का के मौजूदा CTH से 48.39 वर्ग किलोमीटर के “मानव-प्रभावित क्षतिग्रस्त क्षेत्र” को हटाकर, उसके बदले बफर ज़ोन से 90.91 वर्ग किलोमीटर “गुणवत्तापूर्ण टाइगर हैबिटेट” को CTH में जोड़ने का प्रस्ताव दिया है। इससे खनन क्षेत्र सरिस्का की एक किलोमीटर प्रतिबंधित सीमा से बाहर आ जाएँगे।
वन अधिकारियों की आपत्ति
पूर्व वन अधिकारियों का मानना है कि जिन पहाड़ियों को बाहर किया जा रहा है वे सरिस्का के दक्षिणी हिस्सों को जोड़ने में आवश्यक हैं। “ये क्षेत्र बाघों की आवाजाही के लिए महत्वपूर्ण गलियारे हैं, इन्हें हटाना आंतरिक संपर्क को तोड़ेगा,” एक अधिकारी ने कहा।
राजस्थान के प्रमुख वन बल प्रमुख (HoFF) अरिजीत बनर्जी ने कहा, “केवल वे क्षेत्र हटाए गए हैं जिन्हें बचाया नहीं जा सकता। यह पुनर्गठन ज़मीनी स्तर पर प्रबंधन को अधिक प्रभावी बनाएगा।”
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- सरिस्का टाइगर रिज़र्व को 2007–08 में 881 वर्ग किमी क्षेत्र के रूप में CTH घोषित किया गया था, लेकिन अधिसूचना अब तक लंबित रही।
- प्रस्तावित बदलाव से 50 से अधिक खदानें — जिनमें से 57 पिछले साल कोर्ट आदेश से बंद हुई थीं — अब संचालन की स्थिति में आ सकती हैं।
- यह निर्णय सरिस्का की सीमा तय करने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश (दिसंबर 2024) के पालन की दिशा में उठाया गया है।
- खनिज उद्योग का राजस्व केवल टेहला तहसील से सालाना ₹700–800 करोड़ आंका गया है।
खनन उद्योग की प्रतिक्रिया और भ्रष्टाचार की आशंकाएँ
स्थानीय खनन मालिकों ने इस प्रस्ताव का स्वागत किया है, लेकिन कुछ ने भ्रष्टाचार के आरोप भी लगाए हैं। डोलोमाइट खदान मालिक के. एस. राठौड़ ने प्रधानमंत्री कार्यालय को शिकायत भेजी कि कुछ अधिकारियों ने पुनः संचालन के लिए धन एकत्र करने की मांग की। सरिस्का के क्षेत्रीय निदेशक संग्राम सिंह कटियार ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि “सीमा निर्धारण पूरी तरह वैज्ञानिक और संरक्षण आधारित सलाह पर आधारित है।”
सुप्रीम कोर्ट और CEC की भूमिका
सुप्रीम कोर्ट ने मार्च 2024 में अपनी केंद्रीय सशक्त समिति (CEC) को सरिस्का की सीमा, चराई, गाँव पुनर्वास और स्टाफ की स्थिति पर रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा था। जुलाई 2024 में CEC की रिपोर्ट में कहा गया कि “अवैध खनन की वजह सीमा निर्धारण की अस्पष्टता है।” इसके बाद कोर्ट ने दिसंबर में राज्य को एक साल में प्रक्रिया पूर्ण करने का निर्देश दिया।
निष्कर्ष
सरिस्का टाइगर रिज़र्व का यह सीमा पुनर्गठन प्रस्ताव एक ओर खनन उद्योग को राहत देने वाला दिखता है, तो दूसरी ओर यह बाघ संरक्षण, पारिस्थितिकी संतुलन और पारदर्शिता पर गंभीर सवाल उठाता है। अब निगाहें सुप्रीम कोर्ट पर हैं, जो इस प्रस्ताव की अंतिम स्वीकृति देगा। इस प्रक्रिया में यह सुनिश्चित करना आवश्यक होगा कि बाघों का संरक्षण किसी प्रकार से औद्योगिक हितों की बलि न चढ़े।