समावेशी शहरों की ओर: जब शहर की योजना लोगों को नहीं पहचानती
आज के दौर में शहरों को आर्थिक विकास के इंजन, नवाचार के केंद्र और शासन व तकनीक के प्रयोगशालाओं के रूप में देखा जाता है। लेकिन इस समूची कल्पना में एक मूलभूत तत्व अक्सर छूट जाता है — शहरों में रहने वाले लोग। जिनके आगमन, श्रम और जीवन से ही शहर हर दिन नया रूप लेते हैं। आधुनिक शहरी नियोजन में डिज़ाइन, आकांक्षा और वास्तविकता के बीच बढ़ता हुआ अंतर एक गहरी खामी को दर्शाता है: क्या हम वास्तव में उन्हीं लोगों के लिए शहर बना रहे हैं जो उसमें रहते हैं?
“फिट होने” की अनकही कीमत
शहरों की ओर प्रवास एक मौन सामाजिक अपेक्षा के साथ आता है — स्थानीय संस्कृति में घुलने-मिलने की मजबूरी। भाषा इसका पहला और कठोर परीक्षण बनती है। जो प्रवासी या नए निवासी स्थानीय भाषा नहीं बोल पाते, वे एक “अदृश्य कर” का सामना करते हैं — वह कर जो उनकी पहचान, वैधता और स्वीकार्यता को धीरे-धीरे चुनौती देता है।
यह केवल संचार की बात नहीं है; भाषा उस “कौन अपना है और कौन नहीं” की रेखा खींचती है। बहुभाषी और बहुसांस्कृतिक वास्तविकताओं वाले शहरों में एक भाषा पर ज़ोर सामाजिक असुरक्षा का प्रतीक बन जाता है।
जब भाषा के साथ आर्थिक अवसर भी छिनते हैं
यह अदृश्य कर शीघ्र ही प्रत्यक्ष आर्थिक नुकसान में बदल जाता है। नौकरी के आवेदन, घर का पट्टा, स्वास्थ्य सेवाएँ या सरकारी योजनाएँ — सबकुछ एक एकल भाषा प्रणाली पर आधारित होता है। जो लोग उस भाषा में दक्ष नहीं होते, वे औपचारिक तंत्र से बाहर धकेल दिए जाते हैं। ऐसे लोग अक्सर अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में समाहित हो जाते हैं, जहाँ कम मजदूरी, कम सुरक्षा और अधिक शोषण सामान्य है।
विडंबना यह है कि शहर इन्हीं श्रमिकों पर — निर्माण, सफाई, सेवा — बहुत हद तक निर्भर करता है। लेकिन उन्हें पूरी नागरिक सुविधाएँ और अवसर नहीं दिए जाते। यह बहिष्करण संयोग नहीं, बल्कि संरचनात्मक रूप से निर्मित है।
शहरी योजना की मूलभूत भ्रांति
आधुनिक शहरी योजना की एक बड़ी कमजोरी यह है कि यह स्थिर और समान नागरिक की कल्पना पर आधारित होती है। इंफ्रास्ट्रक्चर को उस व्यक्ति के लिए डिज़ाइन किया जाता है जो पहले से शहर की भाषा, प्रणाली और नियमों से परिचित है। प्रवासी और नए निवासी, संख्या में अधिक होते हुए भी, नीति दस्तावेजों में अदृश्य बने रहते हैं।
यहाँ तक कि “स्मार्ट सिटी” योजनाएँ भी इस पूर्वग्रह को बढ़ावा देती हैं। डिजिटल सेवा प्रणाली, डेटा-आधारित शासन और स्वचालित तंत्र उन्हीं लोगों के लिए सुलभ हैं जो डिजिटल साक्षरता, सही कागजात और भाषिक दक्षता रखते हैं। “स्मार्ट” का मतलब अक्सर “विशेष” होता है, सबके लिए नहीं।
जब शासन शहरी हकीकत से कट जाता है
स्थानीय निकाय और योजना समितियाँ अक्सर शहर की जनसांख्यिकीय विविधता को प्रतिबिंबित नहीं करतीं। परिणामस्वरूप, स्कूलों, परिवहन या सार्वजनिक स्थानों की योजना नए प्रवासियों की जरूरतों को नहीं पहचानती। भाषा विविधता, सेवा समय में लचीलापन, और विकल्प आधारित पहुँच की जरूरतें अक्सर नीति के दायरे से बाहर रह जाती हैं।
तकनीकी रूप से उत्तम इन्फ्रास्ट्रक्चर, यदि सामाजिक रूप से विसंगत हो, तो वह उद्देश्यहीन हो जाता है।
शहरों को गतिशील तंत्र की तरह सोचना होगा
शहर कोई तैयार नक्शा नहीं, बल्कि एक जीवंत पारिस्थितिकी तंत्र होते हैं — जहां लोग हर दिन आते हैं, बसते हैं, संघर्ष करते हैं और योगदान देते हैं। समावेशन के लिए यह मानना होगा कि पुराने और नए के बीच का संघर्ष अवश्यंभावी है, पर साध्य भी।
छोटी-छोटी नीतियाँ बड़ा असर डाल सकती हैं — जैसे सार्वजनिक कर्मचारियों के लिए सांस्कृतिक संवेदनशीलता प्रशिक्षण, बहुभाषीय संचार, और लचीली सेवा समय-सारणी। यह केवल प्रतीकात्मक उपाय नहीं हैं, बल्कि शासन की गुणवत्ता को बेहतर बनाते हैं।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- भारत की 40% से अधिक आबादी अब शहरी क्षेत्रों में रहती है।
- स्मार्ट सिटी मिशन की शुरुआत 2015 में हुई थी, लेकिन इसकी कई परियोजनाएँ डिजिटल पहुँच तक सीमित हैं।
- भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भाषाओं को मान्यता दी गई है, लेकिन शहरी सेवाओं में अक्सर केवल 1-2 प्रमुख भाषाओं का ही प्रयोग होता है।
- शहरी योजनाओं में प्रवासी श्रमिकों की संख्या और जरूरतों पर अक्सर कोई पृथक डेटा नहीं होता।
निष्कर्ष: जब शहर इंसान को केंद्र में रखे
भविष्य के शहर केवल बेहतर सड़कों, ऊँची इमारतों और स्मार्ट तकनीकों से नहीं बनेंगे। उन्हें चाहिए संवेदना (Empathy) — वह समझ कि एक शहर की सफलता केवल आर्थिक आंकड़ों से नहीं, बल्कि इससे मापी जाती है कि उसके निवासी खुद को कितना सुरक्षित, स्वीकार्य और “घर जैसा” महसूस करते हैं।
शहरों की योजना और शासन में मानवीय अनुभव को केंद्र में लाना ही वह पुल है जो डिज़ाइन और हकीकत के बीच के अंतर को पाट सकता है। वास्तविक समावेशन ही शहर को वाकई “जन-केन्द्रित” और लोकतांत्रिक बना सकता है।