सब-नेपच्यून ग्रहों पर नए अध्ययन ने बदल दी वैज्ञानिकों की धारणा

सब-नेपच्यून ग्रहों पर नए अध्ययन ने बदल दी वैज्ञानिकों की धारणा

खगोलविदों द्वारा खोजे गए अधिकांश बाह्यग्रहों में सब-नेपच्यून (Sub-Neptunes) श्रेणी के ग्रह शामिल हैं। अब तक यह माना जाता था कि इन ग्रहों की हाइड्रोजन-प्रधान वायुमंडलीय परतों के नीचे पिघले हुए मैग्मा के महासागर मौजूद रहते हैं। लेकिन हाल ही में किए गए एक नए मॉडलिंग अध्ययन ने इस धारणा को चुनौती दी है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इन ग्रहों में से कई के अंदर वास्तव में ठोस सिलिकेट सतहें हो सकती हैं, न कि द्रवित लावा महासागर।

नए अध्ययन के निष्कर्ष

शोधकर्ताओं बोडी ब्रेज़ा, मैथ्यू सी. निक्सन और एलाइज़ा एम.-आर. केम्प्टन ने सैकड़ों हजारों संभावित आंतरिक-संरचना और वायुमंडलीय संयोजनों का मॉडल तैयार किया। परिणामों से पता चला कि बड़ी संख्या में सब-नेपच्यून ग्रहों में आज ठोस चट्टानी परतें मौजूद हैं। अध्ययन में पाया गया कि जब वायुमंडल और मेंटल के बीच का दाब बहुत अधिक होता है, तो सिलिकेट खनिज “पोस्ट-पेरोव्स्काइट” जैसे ठोस रूपों में बदल जाते हैं, जिससे “रॉक फ्लोर” यानी चट्टानी सतहें बनती हैं।

मैग्मा से ठोस सतह बनने के प्रमुख कारक

इस परिवर्तन को प्रभावित करने वाले तीन प्रमुख घटक पाए गए—

  1. ग्रह के वायुमंडल और मेंटल का अनुपात तथा वायुमंडल का औसत आणविक भार (Mean Molecular Weight)।
  2. ग्रह की सतह का तापमान; अपेक्षाकृत ठंडे ग्रहों पर ठोस सतह बनने की संभावना अधिक होती है।
  3. ग्रह के बढ़ती उम्र के साथ रेडिएटिव-कन्वेक्टिव सीमा पर बढ़ता दबाव, जो सिलिकेट को ठोस रूप में स्थिर कर सकता है।

इन सभी कारकों के संयुक्त प्रभाव से कई ग्रहों पर मैग्मा महासागर की जगह ठोस सतहें बन जाती हैं।

प्रमुख ग्रहों से प्रमाण

सब-नेपच्यून ग्रहों में सबसे प्रसिद्ध उदाहरण GJ 1214 b है। जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप (JWST) के हालिया विश्लेषणों से पता चला है कि इस ग्रह का वायुमंडल धुंधला और भारी (उच्च MMW वाला) है, जो आंतरिक सिलिकेट को ठोस रूप में दबा सकता है। इसी प्रकार TOI-270 d जैसे अन्य ग्रहों में भी उच्च MMW वाली वायुमंडलीय स्थितियाँ पाई गई हैं, जो इस नई परिकल्पना को और मजबूत बनाती हैं।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • सब-नेपच्यून ग्रह आकार में पृथ्वी और नेपच्यून के बीच होते हैं तथा आकाशगंगा में सबसे सामान्य ग्रह हैं।
  • Mean Molecular Weight (MMW) वायुमंडलीय अणुओं के औसत द्रव्यमान को दर्शाता है; अधिक MMW का अर्थ है अधिक सतही दबाव।
  • JWST की ट्रांसमिशन स्पेक्ट्रा तकनीक वायुमंडल की ऊपरी परतों की संरचना और कणों का विश्लेषण करती है।
  • रेडिएटिव–कन्वेक्टिव सीमा वह बिंदु है जहाँ ऊर्जा का परिवहन विकिरण से संवहन में बदलता है, जिससे आंतरिक दबाव प्रभावित होता है।

भविष्य के अध्ययन पर प्रभाव

यदि अधिकांश सब-नेपच्यून ग्रहों की सतहें ठोस हैं, तो उनके वायुमंडलीय तत्वों और धात्विकता का विश्लेषण इस नई स्थिति को ध्यान में रखकर करना होगा। अब वैज्ञानिक ऐसे मॉडल विकसित कर रहे हैं जो ग्रह के आंतरिक भाग और वायुमंडल के पारस्परिक प्रभाव को जोड़ते हैं। इन नए ढाँचों के माध्यम से यह पहचानने में मदद मिलेगी कि कौन-से ग्रह वास्तव में लावा महासागर से ढके हैं और कौन-से ठोस सतह वाले हैं, जिससे भविष्य के JWST अभियानों की प्राथमिकताएँ अधिक सटीक रूप से तय की जा सकेंगी।

Originally written on November 11, 2025 and last modified on November 11, 2025.

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