संचार साथी ऐप पर सरकार की सफाई: उपयोगकर्ता को हटाने की पूरी स्वतंत्रता

संचार साथी ऐप पर सरकार की सफाई: उपयोगकर्ता को हटाने की पूरी स्वतंत्रता

स्मार्टफोन में संचार साथी (Sanchar Saathi) ऐप को अनिवार्य रूप से प्री-इंस्टॉल करने के निर्देश को लेकर उठे विवाद के बीच केंद्र सरकार ने जनता की चिंताओं को शांत करने की कोशिश की है। सरकार ने स्पष्ट किया है कि नागरिकों के पास इस ऐप को किसी भी समय अनइंस्टॉल करने की पूरी स्वतंत्रता होगी। यह स्पष्टीकरण गोपनीयता, साइबर सुरक्षा और सरकारी हस्तक्षेप को लेकर उठे व्यापक बहस के बाद सामने आया है।

सार्वजनिक विवाद के बाद उपयोगकर्ता की स्वतंत्रता पर स्पष्टता

संचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा कि मौजूदा टेलीकॉम साइबर सुरक्षा नियमों के तहत स्मार्टफोन निर्माताओं को संचार साथी ऐप प्री-लोड करना होगा, लेकिन नागरिकों पर इसे उपयोग करने या अपने फोन में बनाए रखने का कोई दायित्व नहीं है। उन्होंने बताया कि ऐप केवल तभी सक्रिय होता है जब उपयोगकर्ता स्वयं इसे रजिस्टर करता है, अन्यथा यह निष्क्रिय रहता है। सिंधिया ने यह भी जोड़ा कि यह कदम उपभोक्ता सुरक्षा को ध्यान में रखकर उठाया गया है, न कि निगरानी के उद्देश्य से।

ऐप के उद्देश्य को लेकर सरकार का पक्ष

सरकार का कहना है कि संचार साथी ऐप का मकसद केवल साइबर फ्रॉड और फर्जी मोबाइल कनेक्शनों पर नियंत्रण करना है। इस ऐप के माध्यम से उपयोगकर्ता खोए हुए फोन को ट्रैक कर सकते हैं और किसी भी संदिग्ध मोबाइल कनेक्शन की शिकायत कर सकते हैं। मंत्री ने यह भी स्पष्ट किया कि यह प्लेटफ़ॉर्म कॉल मॉनिटरिंग या जासूसी से संबंधित नहीं है। वहीं, सरकारी सूत्रों ने बताया कि नियमों की भाषा केवल निर्माताओं पर लागू होती है ताकि वे ऐप की प्री-इंस्टॉलेशन प्रक्रिया को छिपा न सकें या उसकी सुविधाओं को निष्क्रिय न करें।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • ऐप का उद्देश्य: फर्जी मोबाइल कनेक्शन की पहचान और खोए फोन का पता लगाना
  • अब तक डाउनलोड: 1.5 करोड़ से अधिक
  • कानूनी आधार: दूरसंचार अधिनियम 2023 और साइबर सुरक्षा नियम 2024
  • परिणाम: 2.7 करोड़ फर्जी कनेक्शन अब तक बंद किए गए
  • ऐप निर्माता: दूरसंचार विभाग (DoT)

गोपनीयता चिंताएँ और राजनीतिक विरोध

कांग्रेस सहित विपक्षी दलों ने इस कदम को “सरकारी हस्तक्षेप” करार देते हुए कहा कि इस तरह की अनिवार्यता नागरिकों की निजता के अधिकार का उल्लंघन है। विपक्ष का तर्क है कि इस प्रकार का प्री-इंस्टॉलेशन राज्य के निगरानी तंत्र को सामान्य बना देता है। उन्होंने इस निर्देश को असंवैधानिक बताते हुए इसे वापस लेने की मांग की।

उद्योग जगत की प्रतिक्रिया और साइबर सुरक्षा विमर्श

वैश्विक स्मार्टफोन निर्माता कंपनियों ने भी इस निर्णय को लेकर चिंता जताई है। उनका कहना है कि किसी भी सरकारी ऐप का अनिवार्य प्री-लोडिंग डेटा सुरक्षा और उपयोगकर्ता गोपनीयता पर असर डाल सकता है। उद्योग संगठन सरकार से औपचारिक बातचीत के माध्यम से इस नीति में स्पष्टता और सुधार की अपेक्षा कर रहे हैं।

Originally written on December 3, 2025 and last modified on December 3, 2025.

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