श्री देवराजस्वामी मंदिर विवाद: मद्रास हाईकोर्ट ने ठेंगलाई संप्रदाय के अधिकार की पुष्टि की
मद्रास उच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक निर्णय में स्पष्ट किया है कि कांचीपुरम स्थित प्रसिद्ध श्री देवराजस्वामी मंदिर में प्रमुख धार्मिक वाचन और अनुष्ठान केवल ठेंगलाई (Thengalai) संप्रदाय द्वारा ही संपन्न किए जाएंगे। यह निर्णय लंबे समय से चल रहे ठेंगलाई और वडगलै (Vadagalai) संप्रदायों के बीच धार्मिक अधिकारों के विवाद को समाप्त करता है।
धार्मिक नेतृत्व को लेकर दशकों पुराना विवाद
मामला इस प्रश्न पर केंद्रित था कि मंदिर में “श्री शैलसा दयापात्रम्,” “वळि तिरुनामम,” और “नालायिर दिव्य प्रबंधम” जैसे पारंपरिक स्तोत्रों का पाठ कौन कर सकता है। वडगलै संप्रदाय ने इन वाचन अधिकारों में समान भागीदारी की मांग करते हुए कई याचिकाएँ दायर की थीं। न्यायालय की पीठ ने इस विवाद से उत्पन्न कई रिट याचिकाओं, अपीलों और अवमानना याचिकाओं को एक साथ सुनते हुए अंतिम निर्णय सुनाया।
अद्यापक मिरासी अधिकारों की फिर पुष्टि
न्यायमूर्ति आर. सुरेश कुमार और न्यायमूर्ति एस. साउंधर की खंडपीठ ने 1882, 1915, 1939 और 1969 के ऐतिहासिक निर्णयों का हवाला देते हुए कहा कि “अध्यापक मिरासी अधिकार” (Adhyapaka Mirasi Rights) विशेष रूप से कांचीपुरम में निवास करने वाले ठेंगलाई संप्रदाय के पास ही हैं। इन अधिकारों के अनुसार केवल ठेंगलाई पुजारी ही पारंपरिक स्तोत्रों का नेतृत्व कर सकते हैं, जबकि वडगलै भक्त केवल सहभागी के रूप में इन वाचनों में सम्मिलित हो सकते हैं, स्वतंत्र रूप से इनका नेतृत्व नहीं कर सकते।
संवैधानिक दलीलों को अदालत ने किया खारिज
वडगलै पक्ष की ओर से यह तर्क दिया गया कि पुराने (पूर्व-संविधान) निर्णय मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं। इस पर न्यायालय ने स्पष्ट किया कि व्यक्तिगत धार्मिक स्वतंत्रता का अर्थ यह नहीं कि किसी विशेष पंथ या मंदिर की स्थापित परंपराओं को बदला जा सके। जब तक किसी के पूजा करने के अधिकार में बाधा नहीं आती, तब तक अदालतों को मान्य धार्मिक प्रथाओं में हस्तक्षेप का अधिकार नहीं है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- मंदिर: श्री देवराजस्वामी मंदिर, कांचीपुरम
- प्रमुख संप्रदाय: ठेंगलाई और वडगलै (श्रीवैष्णव परंपरा के दो उपसंप्रदाय)
- कानूनी विषय: अध्यापक मिरासी (Adhyapaka Mirasi) अधिकार
- ऐतिहासिक निर्णय: 1882, 1915, 1939, 1969
- हालिया आदेश: समानांतर वाचन की अनुमति देने वाला अंतरिम आदेश रद्द
न्यायालय के निर्देश और आगे की प्रक्रिया
अदालत ने पहले दिए गए उस अंतरिम आदेश को रद्द कर दिया जिसमें दोनों संप्रदायों को समानांतर वाचन की अनुमति दी गई थी। साथ ही, उसने वडगलै संप्रदाय की सभी याचिकाओं को खारिज करते हुए संबंधित अधिकारियों को निर्देश दिया कि मंदिर में अनुष्ठान और वाचन सदियों से प्रचलित परंपराओं के अनुसार ही संपन्न हों।