श्री गुरु तेग बहादुर जी की 350वीं शहादत वर्षगांठ : धार्मिक स्वतंत्रता का अमर प्रतीक

श्री गुरु तेग बहादुर जी की 350वीं शहादत वर्षगांठ : धार्मिक स्वतंत्रता का अमर प्रतीक

सिख धर्म के नौवें गुरु, श्री गुरु तेग बहादुर जी की 350वीं शहादत वर्षगांठ इस वर्ष विशेष श्रद्धा और गौरव के साथ मनाई जा रही है। दिल्ली के गुरुद्वारा श्री सीस गंज साहिब और श्री आनंदपुर साहिब में हो रहे प्रमुख आयोजन उनके अद्वितीय बलिदान और सार्वभौमिक शिक्षाओं की याद दिलाते हैं। यह अवसर गुरु गोबिंद सिंह जी के 350वें गुरुता वर्ष के साथ भी जुड़ा है, जो पिता-पुत्र दोनों के अतुलनीय योगदान की ऐतिहासिक संगति को दर्शाता है।

धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा का ऐतिहासिक उदाहरण

सन 1675 में गुरु तेग बहादुर जी ने धर्म की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए अपने प्राण न्यौछावर किए। उस समय कश्मीर के पंडितों को जबरन धर्म परिवर्तन के लिए बाध्य किया जा रहा था, तब उन्होंने गुरु से सहायता मांगी। गुरु तेग बहादुर जी ने न केवल उनका पक्ष लिया, बल्कि मानव अधिकारों और धार्मिक स्वातंत्र्य की रक्षा के लिए अपने जीवन का बलिदान दिया। गुरु गोबिंद सिंह जी ने इस शहादत को ‘धर्म की चिह्नों की रक्षा’ के रूप में वर्णित किया, जो मानवीय गरिमा के सम्मान का शाश्वत संदेश है।

सिद्धांत जो समय से परे हैं

गुरु तेग बहादुर जी का बलिदान किसी एक समुदाय या राजनीतिक विचारधारा से सीमित नहीं था। यह “सरबत दा भला” अर्थात् सबके कल्याण की सिख भावना का सजीव उदाहरण है। उन्होंने करुणा, न्याय और धार्मिक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पक्ष में खड़े होकर यह दिखाया कि सच्चा धर्म मानवता की सेवा में निहित है। आज के सामाजिक और राजनीतिक परिवेश में भी उनके सिद्धांत समानता और सहिष्णुता की दिशा में मार्गदर्शक हैं।

साहस और पहचान की विरासत

गुरु तेग बहादुर जी के साथ उनके शिष्य भाई मती दास, भाई सती दास और भाई दयाला जी की शहादत भी सिख इतिहास में अमर है। उनकी दृढ़ता ने सिख समुदाय की पहचान को और मजबूत बनाया। वर्तमान समय में यह संदेश और भी प्रासंगिक है कि सिख अपने “साबत सूरत” स्वरूप को बनाए रखें, अपने धार्मिक प्रतीकों जैसे कृपाण और कड़ा की गरिमा की रक्षा करें और निडरता से अपने विश्वास पर कायम रहें। गुरु जी का सिद्धांत “ना डरना और ना डराना” जीवन जीने की सच्ची प्रेरणा है।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • गुरु तेग बहादुर जी सिख धर्म के नौवें गुरु थे।
  • उनका बलिदान सन 1675 में दिल्ली में हुआ।
  • गुरुद्वारा सीस गंज साहिब उसी स्थान पर स्थित है जहाँ उनकी शहादत हुई थी।
  • इस वर्ष उनकी 350वीं शहादत वर्षगांठ गुरु गोबिंद सिंह जी के 350वें गुरुता वर्ष के साथ मनाई जा रही है।

आधुनिक समाज में गुरु जी की प्रासंगिकता

आज जब समाज में धार्मिक पहचान और स्वतंत्रता को लेकर नई चुनौतियाँ हैं, तब गुरु तेग बहादुर जी का संदेश पहले से अधिक महत्वपूर्ण है। उनकी शिक्षाएँ हमें एकता, आत्मचिंतन और न्याय के लिए प्रतिबद्ध रहने का आह्वान करती हैं। इस वर्षगांठ के आयोजन सिख संस्थाओं द्वारा न केवल श्रद्धांजलि के रूप में मनाए जा रहे हैं, बल्कि यह सामाजिक समानता, संवैधानिक अधिकारों की रक्षा और धार्मिक सौहार्द के संवर्धन का भी प्रतीक बन रहे हैं।

Originally written on November 25, 2025 and last modified on November 25, 2025.

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