श्रीलंका के उत्तर और पूर्व में तमिल विरोध: सेना की मौजूदगी पर उठे सवाल

श्रीलंका के उत्तर और पूर्व में तमिल विरोध: सेना की मौजूदगी पर उठे सवाल

श्रीलंका में 18 अगस्त को तमिल बहुल उत्तरी और पूर्वी क्षेत्रों में इलंकई तमिल अरसु काच्ची (ITAK) नामक प्रमुख तमिल पार्टी द्वारा प्रतीकात्मक हड़ताल का आह्वान किया गया। यह विरोध उस सैन्यीकरण के खिलाफ था जो 16 साल पहले समाप्त हुए गृहयुद्ध के बाद भी इन क्षेत्रों में कायम है। इस हड़ताल का उद्देश्य न केवल हालिया हिंसा के खिलाफ आवाज उठाना था, बल्कि सेना की अत्यधिक उपस्थिति और उसके प्रभाव पर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय ध्यान केंद्रित करना भी था।

सैन्य हिंसा की नई घटना और प्रतिक्रिया

इस विरोध की सीधी वजह मन्नार जिले के एथिरमनासिंघम कपिलराज की संदिग्ध सैन्य हमले में मृत्यु थी। 32 वर्षीय कपिलराज की मौत ने क्षेत्र में पुरानी पीड़ा और अविश्वास को फिर से सतह पर ला दिया। ITAK ने राष्ट्रपति अनुर कुमार डिसानायके को पत्र लिखकर न केवल निष्पक्ष जांच की मांग की, बल्कि सेना के उत्पीड़क व्यवहार की भी आलोचना की। सरकार ने जांच का वादा किया है और तीन सैनिकों को गिरफ्तार भी किया गया है।

श्रीलंका सरकार की सैन्य नीति

राष्ट्रपति डिसानायके, जो रक्षा मंत्री भी हैं, ने सेना को 2030 तक कम करने की योजना की घोषणा की है। इसके बावजूद, 2024 के बजट में रक्षा मंत्रालय को एलकेआर 442 बिलियन (लगभग 1.5 अरब डॉलर) आवंटित किए गए, जो शिक्षा बजट से कहीं अधिक है। विश्लेषकों के अनुसार, केवल वर्दी और आहार पर रक्षा खर्च में 2022 की तुलना में 258% की वृद्धि दर्ज की गई है। विशेषज्ञों का कहना है कि एक ऐसे देश के लिए जहां कोई बाहरी खतरा नहीं है, जीडीपी का लगभग 2% सैन्य खर्च असामान्य रूप से अधिक है।

उत्तर और पूर्व में सेना की स्थिति

हालांकि सेना के शिविरों की सटीक संख्या सार्वजनिक नहीं है, फिर भी उत्तरी और पूर्वी क्षेत्रों में सेना की उपस्थिति देश के अन्य हिस्सों की तुलना में काफी अधिक है। सेना स्थानीय व्यवसायों, होटलों और कृषि भूमि पर भी नियंत्रण बनाए हुए है, जिससे स्थानीय लोगों की आजीविका पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। विशेष रूप से मुल्लैतीवु जिला, जहां गृहयुद्ध का अंतिम और भीषण चरण हुआ था, आज भी कई चौराहों और चौकियों पर सशस्त्र सैनिकों की निगरानी में है।
2017 की एक रिपोर्ट के अनुसार, केवल मुल्लैतीवु में ही 1.3 लाख नागरिकों पर लगभग 60,000 सैन्यकर्मी तैनात थे। हालाँकि, सेना के प्रवक्ता ने दावा किया है कि 91% ज़मीन वापस की जा चुकी है और सैन्य उपस्थिति घटाई गई है, लेकिन उन्होंने कोई स्पष्ट आंकड़े नहीं दिए।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • श्रीलंका में गृहयुद्ध 2009 में एलटीटीई की हार के साथ समाप्त हुआ था।
  • ITAK श्रीलंका की सबसे पुरानी तमिल राजनीतिक पार्टी है।
  • राष्ट्रपति अनुर कुमार डिसानायके मार्च 2025 से श्रीलंका के राष्ट्रपति हैं।
  • श्रीलंका का रक्षा बजट शिक्षा बजट से कई गुना अधिक है।

मानवाधिकार और अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त के कार्यालय की हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि युद्ध समाप्त होने के 16 साल बाद भी सुरक्षा क्षेत्र में आवश्यक सुधार नहीं हुए हैं। उत्तर और पूर्व में निगरानी प्रणाली आज भी प्रभावी है, और सेना अब भी नागरिक मामलों और व्यापारिक गतिविधियों में हस्तक्षेप कर रही है। रिपोर्ट में श्रीलंका सरकार से आग्रह किया गया है कि सेना को नागरिक कार्यों से दूर रखा जाए और उत्तरी तथा पूर्वी क्षेत्रों में उसकी उपस्थिति को यथाशीघ्र घटाया जाए।

निष्कर्ष

तमिल समुदाय की इस हड़ताल ने यह स्पष्ट कर दिया है कि शांति और पुनर्निर्माण की प्रक्रिया अभी अधूरी है। सेना की अत्यधिक मौजूदगी न केवल स्थानीय जीवन को बाधित कर रही है, बल्कि देश की लोकतांत्रिक छवि पर भी असर डाल रही है। यदि श्रीलंका को एक समावेशी और शांतिपूर्ण राष्ट्र के रूप में उभरना है, तो उसे इन क्षेत्रों में विश्वास बहाली, न्यायसंगत जांच और सैन्य हस्तक्षेप में कटौती जैसे ठोस कदम उठाने होंगे। अन्यथा, वर्षों बाद भी युद्ध की छाया आम जनजीवन पर बनी रहेगी।

Originally written on August 23, 2025 and last modified on August 23, 2025.

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