श्रीलंकाई तमिल शरणार्थियों की वापसी पर अस्थायी रोक: यूएनएचसीआर ने जताई सुरक्षा की चिंता

संयुक्त राष्ट्र की शरणार्थी एजेंसी यूएनएचसीआर ने हाल ही में श्रीलंकाई तमिल शरणार्थियों की स्वैच्छिक वापसी की प्रक्रिया को अस्थायी रूप से स्थगित कर दिया है। यह निर्णय उन खबरों के बाद लिया गया है जिनमें बताया गया कि श्रीलंका लौटने पर कुछ शरणार्थियों को आव्रजन कानूनों के उल्लंघन के आरोप में हिरासत में लिया गया।

शरणार्थियों की गिरफ्तारी और कानूनी उलझन

14 अगस्त, 2025 को त्रिची से कोलंबो लौटने वाले सात शरणार्थियों की वापसी अंतिम समय में रोक दी गई। इससे पहले 12 अगस्त को यूएनएचसीआर द्वारा वापसी की सुविधा प्रदान किए गए फ्रीमन रिचर्ड वेल्वावंद्रम नामक शरणार्थी को कोलंबो एयरपोर्ट पर गिरफ्तार किया गया और बाद में न्यायिक मजिस्ट्रेट के सामने पेश कर जमानत पर रिहा किया गया। हालांकि उनके दस्तावेजों में कोई सुरक्षा संबंधी खतरे का उल्लेख नहीं था।
इसी प्रकार, मई 2025 में जाफना एयरपोर्ट पर एक अन्य तमिल शरणार्थी को गिरफ्त में लिया गया। अगस्त के पहले सप्ताह में भारत के मंडपम शिविर में वर्षों से रह रहे एक तमिल दंपत्ति को भी बिना यूएनएचसीआर की मदद के जाफना पहुंचने पर हिरासत में ले लिया गया। इन्हें वैध पासपोर्ट या यात्रा दस्तावेजों के बिना देश छोड़ने के आरोप में गिरफ्तार किया गया।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • 2002 से अब तक यूएनएचसीआर ने 18,643 श्रीलंकाई तमिल शरणार्थियों की स्वैच्छिक वापसी सुनिश्चित की है।
  • यह पहला अवसर है जब लौटने वाले शरणार्थियों को श्रीलंकाई आव्रजन कानूनों के तहत गिरफ्तार किया गया है।
  • श्रीलंकाई तमिल शरणार्थियों की बड़ी संख्या तमिलनाडु के मंडपम और अन्य शिविरों में निवास करती है।
  • यूएनएचसीआर की नीतियों के अनुसार, शरणार्थियों को केवल तभी गिरफ्तार किया जाना चाहिए जब उनके खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हों।

सुरक्षित और सम्मानजनक वापसी की मांग

यूएनएचसीआर और संबंधित अधिकारियों का कहना है कि शरणार्थियों की वापसी का मूल सिद्धांत उनकी सुरक्षा और गरिमा सुनिश्चित करना है। चूंकि अधिकतर शरणार्थी गृहयुद्ध और जातीय हिंसा के कारण देश छोड़कर भागे थे, इसलिए उनके पास वैध यात्रा दस्तावेज न होना एक मानवीय स्थिति मानी जानी चाहिए।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “जब तक श्रीलंकाई अधिकारियों से यह आश्वासन नहीं मिलता कि शरणार्थियों को केवल आव्रजन उल्लंघन के आधार पर गिरफ्तार नहीं किया जाएगा, तब तक पुनर्वास की प्रक्रिया स्थगित रहेगी।” यह मामला भारत और श्रीलंका की सरकारों के साथ कूटनीतिक स्तर पर उठाया जा रहा है।
यह स्थिति श्रीलंकाई तमिल शरणार्थियों के लिए न केवल भावनात्मक, बल्कि कानूनी और सामाजिक दृष्टिकोण से भी संवेदनशील है। यह जरूरी है कि शरणार्थियों की वापसी केवल कानूनों के आधार पर नहीं, बल्कि मानवीय मूल्यों और सम्मान की भावना के साथ सुनिश्चित की जाए।

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