शंघाई सहयोग संगठन (SCO) में राजनाथ सिंह का बयान: आतंकवाद पर अडिग भारत की स्पष्ट नीति

26 जून को चीन के क़िंगदाओ में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की बैठक में भारत के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने उस समय सबका ध्यान खींचा जब उन्होंने ड्राफ्ट संयुक्त बयान पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया। इसका कारण उस मसौदे में 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले का उल्लेख न होना था, जबकि पाकिस्तान के बलूचिस्तान में मार्च में हुई ट्रेन हाईजैकिंग की घटना का उल्लेख किया गया था।
क्या है SCO?
शंघाई सहयोग संगठन (SCO) एक क्षेत्रीय सुरक्षा और सहयोग संगठन है जिसमें भारत, चीन, रूस, पाकिस्तान, ईरान, बेलारूस, कजाकिस्तान, किर्गिज़स्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान शामिल हैं। इसकी स्थापना 15 जून 2001 को शंघाई में हुई थी, जबकि इसकी जड़ें 1996 में बने ‘शंघाई फाइव’ समूह में हैं। यह विश्व का सबसे बड़ा क्षेत्रीय संगठन है जो मुख्यतः एशियाई देशों के बीच सुरक्षा, आतंकवाद विरोधी प्रयासों और रणनीतिक सहयोग पर केंद्रित है। संगठन का क्षेत्रीय आतंकवाद रोधी ढांचा (RATS) इस दिशा में कार्य करता है।
बैठक में क्या हुआ?
बैठक के दौरान जब अंतिम संयुक्त बयान पर हस्ताक्षर की बारी आई, तो रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने अपना पेन रखकर हस्ताक्षर से इनकार कर दिया। कारण यह था कि मसौदे में पाकिस्तान के बलूचिस्तान में हुई घटना का उल्लेख था, लेकिन भारत में हुए पहलगाम हमले का कोई जिक्र नहीं था।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा, “भारत चाहता था कि आतंकवाद पर चिंताओं को मसौदे में दर्शाया जाए, जो एक सदस्य देश को स्वीकार्य नहीं था। इसलिए यह बयान पारित नहीं हो सका।”
राजनाथ सिंह ने अपने भाषण में आतंकवाद को लेकर कड़ा रुख दिखाया और कहा, “अशांति और समृद्धि एक साथ नहीं चल सकतीं। जिन देशों की नीति में आतंकवाद को साधन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, उन्हें इसके परिणाम भुगतने होंगे। SCO को दोहरे मापदंड नहीं अपनाने चाहिए।”
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- SCO की स्थापना 2001 में चीन के शंघाई शहर में हुई थी।
- RATS (Regional Anti-Terrorist Structure) इसका स्थायी ढांचा है जो आतंकवाद विरोधी कार्यों में समन्वय करता है।
- 2024 में SCO की अध्यक्षता चीन कर रहा है, और बैठक क़िंगदाओ में हुई।
- इस बार भारत की आपत्ति के चलते SCO बैठक का संयुक्त बयान जारी नहीं हो सका।
राजनाथ सिंह की प्रतिक्रिया का महत्व
SCO एक ऐसा मंच है जहां आम तौर पर चीन और रूस की मजबूत पकड़ होती है। वर्तमान में रूस की यूक्रेन युद्ध में व्यस्तता के चलते चीन का प्रभाव बढ़ा है। चीन, पाकिस्तान का प्रबल समर्थक रहा है और अक्सर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान के खिलाफ प्रस्तावों को रोकता रहा है।
ऐसे में भारत का संयुक्त बयान से हटना एक सशक्त कूटनीतिक संकेत है — कि आतंकवाद पर भारत किसी तरह का समझौता नहीं करेगा। राजनाथ सिंह का यह निर्णय भारत की ‘आतंकवाद के खिलाफ जीरो टॉलरेंस’ नीति को अंतरराष्ट्रीय मंच पर दोहराता है।
भारत ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया है कि जब तक आतंकवाद पर ठोस कार्यवाही नहीं होती, तब तक सहयोग और सामान्य कूटनीतिक व्यवहार संभव नहीं है। अब आगामी शरद ऋतु में तियानजिन में होने वाली SCO राष्ट्राध्यक्षों की बैठक पर सबकी निगाहें होंगी, जहां यह देखना दिलचस्प होगा कि भारत अपने रुख को कैसे आगे बढ़ाता है।