वैश्विक व्यापार प्रणाली का संकट: ‘G-शून्य’ से ‘G-माइनस-टू’ युग की ओर
वर्ष 2025 वैश्विक व्यापार व्यवस्था के लिए एक निर्णायक मोड़ बन गया है। जहां एक ओर अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने संरक्षणवाद को अभूतपूर्व रूप से बढ़ावा दिया, वहीं दूसरी ओर चीन ने पुनः अपने निर्यात-केन्द्रित नीति को आक्रामक ढंग से लागू करना शुरू कर दिया है। इन दोनों आर्थिक महाशक्तियों के कदम न केवल वैश्विक व्यापार के मूल ढांचे को बाधित कर रहे हैं, बल्कि विकासशील देशों के लिए गंभीर चुनौतियाँ भी उत्पन्न कर रहे हैं।
संरक्षणवाद और व्यापार असंतुलन की नई दुनिया
शीत युद्ध के बाद की वैश्विक व्यवस्था में यह धारणा प्रचलित रही कि प्रमुख शक्तियाँ कम से कम वैश्विक सार्वजनिक वस्तुओं — जैसे कि खुले बाजार और स्थिर व्यापार नियम — को बनाए रखेंगी। परंतु आज का परिदृश्य “G-शून्य” नहीं बल्कि “G-माइनस-टू” बन चुका है, जहां अमेरिका और चीन न केवल नेतृत्व से पीछे हट चुके हैं, बल्कि सक्रिय रूप से वैश्विक व्यवस्था को नुकसान पहुँचा रहे हैं।
चीन की औद्योगिक नीति और कृत्रिम रूप से कमजोर रखी गई मुद्रा (रॅनमिन्बी) ने लंबे समय से उसके निर्यात को प्रतिस्पर्धी बनाए रखा है। इसके कारण वह विकासशील देशों के पारंपरिक औद्योगिक क्षेत्रों — जैसे वस्त्र, फर्नीचर और सामान्य निर्माण — में प्रतिस्पर्धा को समाप्त करता रहा है। इससे इन देशों की औद्योगीकरण की संभावनाओं पर असर पड़ा है।
अमेरिका की संरक्षणवादी रणनीति और ‘लिबरेशन डे’ टैरिफ
डोनाल्ड ट्रंप के संरक्षणवादी रुख को समझने के लिए चीन की नीतियों को संदर्भ में देखना आवश्यक है। अप्रैल 2025 में घोषित “लिबरेशन डे” टैरिफ ने अमेरिका को दुनिया की सबसे संरक्षणवादी बड़ी अर्थव्यवस्था बना दिया। आयात पर औसत टैरिफ 2% से बढ़कर 17% हो गया। इसके अलावा, इन टैरिफ का आधार अक्सर अस्पष्ट राष्ट्रीय सुरक्षा तर्कों पर टिका होता है, जिसे अमेरिकी अदालतें चुनौती देने में संकोच करती हैं। इससे वैश्विक साझेदारों के लिए एक अस्थिर व्यापार वातावरण पैदा हुआ है।
विकासशील देशों पर प्रभाव और प्रतिक्रिया
अमेरिका के बाजारों से बाहर होते चीन ने अपने सस्ते उत्पादों का रुख अफ्रीका, दक्षिण-पूर्व एशिया और लैटिन अमेरिका की ओर कर दिया है। इससे स्थानीय उद्योगों पर दबाव बढ़ा है और इन देशों ने भी संरक्षणवादी कदम उठाने शुरू किए हैं। उदाहरण के लिए, मैक्सिको ने चीन और भारत से आयातित वस्तुओं पर टैरिफ लगाए हैं। लेकिन वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं की जटिलता के कारण यह प्रतिक्रिया व्यापक व्यापार रुकावटों का कारण बन रही है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- अमेरिका ने 2025 में “लिबरेशन डे” टैरिफ के तहत आयात शुल्क को औसतन 17% तक बढ़ा दिया।
- चीन का रॅनमिन्बी मुद्रा लंबे समय से कम मूल्यांकित है, जिससे उसका निर्यात सस्ता बना रहता है।
- “G-माइनस-टू” शब्दावली का प्रयोग उन स्थितियों के लिए किया जा रहा है जहां अमेरिका और चीन दोनों अन्य देशों को आर्थिक नुकसान पहुँचा रहे हैं।
- वैश्विक व्यापार अवरोधों के कारण विकासशील देशों में औद्योगीकरण की गति धीमी हो गई है।
यह स्पष्ट है कि अमेरिका और चीन की आपसी प्रतिद्वंद्विता ने वैश्विक व्यापार व्यवस्था को नेतृत्व विहीन नहीं, बल्कि व्यवस्थित रूप से बाधित कर दिया है। विकासशील देशों के लिए अब सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वे अपने निर्यात अवसरों को बचाए रखें, वैकल्पिक बाजारों की तलाश करें और इन दो दिग्गजों के बीच पिसने से खुद को बचाएं। यदि यह प्रवृत्ति जारी रही, तो वैश्वीकरण का अस्तित्व ही संकट में पड़ सकता है।