वैश्विक भूख से लड़ाई में भारत की निर्णायक भूमिका: पोषण की ओर बढ़ते कदम

संयुक्त राष्ट्र की नवीनतम रिपोर्ट “द स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रिशन इन द वर्ल्ड 2025” के अनुसार, वैश्विक स्तर पर कुपोषण की स्थिति में गिरावट आई है। वर्ष 2024 में दुनिया की 8.2% आबादी — लगभग 673 मिलियन लोग — कुपोषित थे, जो 2023 के 688 मिलियन से कम है। हालांकि यह अभी भी महामारी-पूर्व 2018 के 7.3% स्तर से अधिक है, लेकिन यह गिरावट सकारात्मक संकेत है। इस वैश्विक परिवर्तन में भारत ने एक निर्णायक भूमिका निभाई है।
भारत में भूख की स्थिति में गिरावट
भारत में 2020-22 की तुलना में 2022-24 में कुपोषण की व्यापकता 14.3% से घटकर 12% हो गई है। इसका अर्थ है कि लगभग 3 करोड़ लोग अब भूख से मुक्त हुए हैं। यह उपलब्धि ऐसे समय में आई है जब कोविड-19 महामारी ने देश की सामाजिक-आर्थिक प्रणाली को बुरी तरह प्रभावित किया था।
खाद्य सुरक्षा में पीडीएस की क्रांतिकारी भूमिका
इस बदलाव के केंद्र में है सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS), जिसका तकनीकी और प्रशासनिक रूप से कायाकल्प हुआ है। इसके प्रमुख पहलू:
- आधार-आधारित लक्ष्यीकरण और बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण
- रियल टाइम इन्वेंट्री ट्रैकिंग और इलेक्ट्रॉनिक पॉइंट ऑफ सेल सिस्टम
- वन नेशन वन राशन कार्ड, जिससे प्रवासी मजदूरों और वंचित वर्गों को किसी भी स्थान पर राशन की सुविधा
वर्तमान में पीडीएस के माध्यम से 80 करोड़ से अधिक लोगों को सब्सिडी वाले खाद्यान्न मिल रहे हैं। महामारी के समय इस प्रणाली ने खाद्य सहायता को प्रभावी रूप से स्केल किया।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- भारत में PDS का डिजिटलीकरण 2015 के बाद तेज़ हुआ।
- PM POSHAN योजना (2021) ने स्कूल पोषण कार्यक्रम को विविध और पौष्टिक भोजन पर केंद्रित किया।
- आईसीडीएस और मिड डे मील योजनाओं में भी पोषण संवेदनशीलता को शामिल किया गया है।
- UN की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में स्वस्थ आहार की लागत अभी भी 60% आबादी के लिए पहुंच से बाहर है।
पोषण, मोटापा और सूक्ष्म पोषक तत्वों की चुनौती
जहां एक ओर भूख कम हो रही है, वहीं माइक्रोन्यूट्रिएंट की कमी, मोटापा और कुपोषण में वृद्धि एक नई चुनौती बनकर उभरी है। खासकर शहरी गरीब और ग्रामीण जनसंख्या इनसे प्रभावित हो रही है। इस स्थिति से निपटने के लिए केवल कैलोरी नहीं, बल्कि गुणवत्तापूर्ण पोषण देना आवश्यक है।
कृषि-खाद्य प्रणाली का रूपांतरण
भारत के लिए अब समय है कि वह अपने कृषि-खाद्य प्रणाली में बदलाव लाए:
- पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थों (जैसे दालें, फल, सब्जियां, पशु-उत्पत्ति खाद्य) की उत्पादन और कीमतों को नियंत्रित करना
- फसल कटाई के बाद संरचना (cold chain, डिजिटल लॉजिस्टिक्स) में निवेश
- महिला नेतृत्व वाले खाद्य उद्यमों और FPOs को समर्थन देना
- AgriStack, e-NAM, जियोस्पेशियल डेटा टूल्स जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म से बाजार तक पहुंच और योजनाबद्ध कृषि सुनिश्चित करना
वैश्विक योगदान और भारत की नेतृत्व भूमिका
FAO के अनुसार, भारत की यह प्रगति केवल राष्ट्रीय उपलब्धि नहीं, बल्कि वैश्विक योगदान भी है। भारत अपने डिजिटल शासन, सामाजिक सुरक्षा मॉडल और डेटा आधारित कृषि योजनाओं को ग्लोबल साउथ के साथ साझा करने में सक्षम है।
भारत ने यह साबित कर दिया है कि राजनीतिक इच्छाशक्ति, स्मार्ट निवेश और समावेशिता के साथ भूख पर काबू पाया जा सकता है — और इसे बड़े स्तर पर दोहराया जा सकता है।
SDG 2 (Zero Hunger) की समयसीमा अब मात्र पाँच साल दूर है। भारत की हालिया प्रगति इस लक्ष्य की प्राप्ति की आशा देती है। अब आवश्यक है कि यह गति केवल भरण-पोषण नहीं, बल्कि पोषण, लचीलापन और अवसरों में परिवर्तित हो। वैश्विक भूख समाप्त करने का मार्ग अब भारत से होकर गुजरता है।