वैश्विक तेल-गैस क्षेत्रों में तेजी से गिरावट: भारत की ऊर्जा सुरक्षा पर मंडराता खतरा

अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) ने 16 सितंबर 2025 को एक महत्वपूर्ण चेतावनी दी है कि दुनिया भर में तेल और गैस के भंडार पहले की तुलना में अधिक तेजी से घट रहे हैं। इस तेजी से गिरावट ने उत्पादकों को मजबूर कर दिया है कि वे मौजूदा उत्पादन को बनाए रखने के लिए कहीं अधिक निवेश करें। भारत जैसे आयात-निर्भर देशों के लिए यह स्थिति और भी गंभीर हो जाती है, क्योंकि यह देश अपनी तेल आवश्यकता का 85% और गैस का 45% आयात करता है।
रिपोर्ट की मुख्य बातें: गिरावट की गति और बढ़ता निवेश दबाव
IEA की रिपोर्ट “The Implications of Oil and Gas Field Decline Rates” के अनुसार, तेल और गैस क्षेत्रों की प्राकृतिक गिरावट दर (decline rate) में काफी तेजी आई है। विशेष रूप से शेल (shale) और गहरे समुद्री (deep offshore) संसाधनों पर बढ़ती निर्भरता इसके प्रमुख कारण हैं, क्योंकि ये संसाधन पारंपरिक ज़मीनी क्षेत्रों की तुलना में बहुत तेज़ी से समाप्त होते हैं।
- वर्ष 2024 में R&D वृद्धि दर 2.9% रही, जो 2025 में घटकर 2.3% रहने की संभावना है — यह 2010 की मंदी के बाद सबसे बड़ी गिरावट है।
- यदि नए निवेश न किए जाएं, तो हर वर्ष वैश्विक तेल उत्पादन 5.5 मिलियन बैरल प्रति दिन और गैस उत्पादन 270 अरब क्यूबिक मीटर तक घट सकता है।
निवेश का अधिकांश हिस्सा केवल मौजूदा उत्पादन बचाने में
IEA के अनुसार, आज तेल और गैस क्षेत्र में किया जा रहा लगभग 90% निवेश केवल मौजूदा उत्पादन को बनाए रखने के लिए होता है, न कि आपूर्ति बढ़ाने के लिए। इसके बिना वैश्विक बाजार से हर साल ब्राज़ील और नॉर्वे की संयुक्त उत्पादन क्षमता के बराबर तेल गायब हो सकता है।
भारत के लिए बढ़ते खतरे और आवश्यक रणनीतियाँ
तेल और गैस क्षेत्रों में गिरती आपूर्ति और बढ़ते मूल्य जोखिमों ने भारत के लिए ऊर्जा सुरक्षा के खतरे को बढ़ा दिया है। IEA ने भारत को निम्नलिखित रणनीतियों पर ध्यान केंद्रित करने की सलाह दी है:
- स्रोतों में विविधता (Diversification of sourcing)
- रणनीतिक भंडारण का विस्तार (Expansion of strategic reserves)
- घरेलू खोज और अन्वेषण को गति देना
- हरित वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों जैसे ग्रीन हाइड्रोजन और बायोफ्यूल को बढ़ावा देना
दीर्घकालिक परियोजनाओं का दबाव
IEA ने यह भी चेतावनी दी है कि नए तेल-गैस संसाधनों के विकास में औसतन 20 वर्ष का समय लगता है। इसमें खोज, मूल्यांकन, स्वीकृति और निर्माण की लंबी प्रक्रिया शामिल है। इसका अर्थ है कि आज यदि अन्वेषण में देरी होती है, तो बाजार 2030 और 2040 के दशक तक भी आपूर्ति संकट से जूझ सकता है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- भारत अपनी कुल कच्चे तेल की आवश्यकताओं का 85% से अधिक आयात करता है।
- IEA (International Energy Agency) की स्थापना 1974 में हुई थी और यह ऊर्जा नीति पर वैश्विक मार्गदर्शन प्रदान करती है।
- शेल और ऑफशोर तेल क्षेत्र पहले वर्ष में 35% और दूसरे वर्ष में 15% तक उत्पादन में गिरावट दर्ज करते हैं यदि फिर से निवेश न किया जाए।
- तेल और गैस के नए क्षेत्रों में उत्पादन शुरू होने में औसतन 20 साल लगते हैं।