वैदिक मूर्तिकला की विशेषताएँ

वैदिक मूर्तिकला की विशेषताएँ

सिंधु घाटी सभ्यता के कमजोर होने के बाद वैदिक काल शुरू हुआ। इसमे मूर्तिकला की एक नई शैली विकसित हुई जिसे बाद में वैदिक भारतीय मूर्तिकला के रूप में जाना जाने लगा।आर्य सभ्यता ग्रामीण थी। आर्यों ने कोई स्मारक नहीं बनाया था। हालाँकि यह आर्य वास्तुशिल्प रूप थे जिनका अनुसरण भारत में आने वाले युगों के लिए किया गया था। भारतीय वैदिक मूर्तिकला से कोई जीवित नमूना नहीं है, लेकिन वेदों में पर्याप्त उदाहरण पाए जाते हैं। जिस तरह से भारतीय महाकाव्यों, रामायण और महाभारत में आर्यों के शहर और कस्बों का वर्णन किया गया है। इसलिए यह कहना पूरी तरह से गलत नहीं होगा कि बौद्ध मूर्तियां वैदिक भारत से प्रेरित थीं। इसके अलावा बरहट और सांची के स्तूप भी आर्य गांवों का बड़े पैमाने पर प्रतिनिधित्व करते हैं। वैदिक भारतीय मूर्तिकला में गोलाकार और आयताकार आकार, नक्काशीदार छतें, बांस के काम और लकड़ी का उपयोग शामिल है।

Originally written on April 15, 2021 and last modified on April 15, 2021.

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