विलुप्ति की कगार पर भारतीय भेड़िया: IUCN ने दी नई पहचान और चेतावनी
भारतीय उपमहाद्वीप में पाए जाने वाले दुर्लभ भारतीय भेड़िये (Canis lupus pallipes) को अब अंतरराष्ट्रीय संरक्षण मानकों में एक अलग पहचान मिली है। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (IUCN) ने पहली बार इसे ग्रे वुल्फ की उप-प्रजाति के बजाय एक संभावित स्वतंत्र प्रजाति के रूप में मान्यता देने की सिफारिश की है। यह बदलाव न केवल वैज्ञानिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इस प्राचीन प्रजाति के संरक्षण को वैश्विक प्राथमिकता भी दिला सकता है।
घटती संख्या और संकटग्रस्त स्थिति
IUCN के कैनिड विशेषज्ञों के अनुसार, भारत और पाकिस्तान में भारतीय भेड़िये की कुल अनुमानित आबादी लगभग 3,093 (2,877-3,310 के बीच) है। यह इसे “वulnerable” श्रेणी में रखता है, जो कि लुप्तप्राय की ओर बढ़ते खतरे का संकेत है। चिंताजनक रूप से, इसकी अधिकांश आबादी संरक्षित क्षेत्रों से बाहर निवास करती है, जहाँ यह मानवजनित खतरों और संघर्षों का सीधा शिकार बनती है।
भारतीय भेड़िया: एक प्राचीन प्रजाति
यह भेड़िया दुनिया की सबसे प्राचीन भेड़िया वंशावलियों में से एक है, जो मानव आगमन से भी पहले भारतीय उपमहाद्वीप में विकसित हुआ था। यह बाघ की तरह 11 देशों में नहीं पाया जाता, बल्कि लगभग पूरी तरह से भारत तक ही सीमित है। पाकिस्तान में इसकी संख्या 10 से 20 के बीच ही बची है।
संरक्षित क्षेत्रों से बाहर, खतरे के करीब
IUCN की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय भेड़िये के केवल 12.4% क्षेत्रफल ही संरक्षित क्षेत्रों में आते हैं। बाकी आबादी बिना किसी सरकारी संरक्षण या प्रबंधन के रहती है और सीधे मानवजनित हस्तक्षेपों का सामना करती है—जैसे भूमि उपयोग में बदलाव, शिकार, और मानव-पशु संघर्ष।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
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वर्तमान में IUCN द्वारा Canis वंश (genus) में 7 प्रजातियाँ मान्यता प्राप्त हैं:
- Canis lupus (ग्रे वुल्फ)
- Canis latrans (कोयोट)
- Canis aureus (गोल्डन जैकाल)
- Canis simensis (इथियोपियन वुल्फ)
- Canis familiaris (पालतू कुत्ता)
- Canis rufus (रेड वुल्फ)
- Canis lupaster (अफ्रीकन वुल्फ)
- भारतीय भेड़िया को यदि स्वतंत्र प्रजाति माना जाए, तो यह आठवीं स्वीकृत प्रजाति होगी।
- IUCN की 2016 की रिपोर्ट में ग्रे वुल्फ को “least concern” श्रेणी में रखा गया था, लेकिन भारतीय भेड़िया की स्थिति इससे कहीं अधिक संकटपूर्ण है।
- वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (WII), देहरादून के अनुसार, भारतीय भेड़िये की आबादी बाघ की तुलना में कहीं अधिक असुरक्षित है, क्योंकि यह संरक्षित क्षेत्रों में नहीं बल्कि खुले और असंगठित पारिस्थितिक तंत्र में जीवित है।