विदेशी प्रजातियों से जैव विविधता को खतरा: भारत में छुपी हुई लागत और वैश्विक चुनौती

एक अंतरराष्ट्रीय शोध टीम द्वारा हाल ही में प्रकाशित एक अध्ययन में यह खुलासा हुआ है कि गैर-स्वदेशी पौधों और जानवरों के कारण वैश्विक पारिस्थितिकी तंत्र को अब तक 2.2 ट्रिलियन डॉलर से अधिक का आर्थिक नुकसान हो चुका है। यह अध्ययन Nature Ecology & Evolution में प्रकाशित हुआ और इसमें InvaCost डेटाबेस से 1960 से अब तक की जानकारी का विश्लेषण किया गया। सबसे चौंकाने वाला तथ्य यह है कि वास्तविक लागत अब तक के अनुमानों से 16 गुना अधिक हो सकती है।

भारत में विदेशी प्रजातियों से नुकसान: आंकड़े कम, प्रभाव गहरा

भारत में इस अध्ययन ने एक अत्यंत चिंताजनक स्थिति को उजागर किया है। देश में जैविक घुसपैठ प्रबंधन पर खर्च की गई लागतों की रिपोर्टिंग में 1.16 बिलियन प्रतिशत की विसंगति पाई गई — जो विश्व में सर्वाधिक है। इसका तात्पर्य है कि भारत में इस क्षेत्र में किया गया विशाल खर्च या तो दर्ज नहीं हुआ है या फिर आधिकारिक रूप से स्वीकार नहीं किया गया। विशेषज्ञों का मानना है कि इसकी वजह भारत में केंद्रीकृत डेटा प्रणाली की कमी, विभिन्न एजेंसियों में तालमेल की कमी और सीमित संसाधन हो सकते हैं।
पूर्व शोधकर्ता एस. संडिल्यान के अनुसार, भारत में विदेशी प्रजातियों से निपटने के लिए नीतिगत प्रयास अपर्याप्त हैं, और दस्तावेजीकरण में भारी कमी है, जो इस “छुपी हुई लागत” को जन्म देती है।

कौन हैं यह जैविक घुसपैठिए?

वैश्विक स्तर पर पौधों को सबसे महंगा जैविक आक्रमणकारी पाया गया है, जिनके प्रबंधन में 1960 से 2022 तक $926.38 बिलियन खर्च हुए हैं। इसके बाद कीट-पतंगे (arthropods) और स्तनधारी (mammals) क्रमशः $830.29 बिलियन और $263.35 बिलियन की लागत पर रहे। भारत में आम लंताना (Lantana camara) जैसी प्रजातियाँ कृषि और पारिस्थितिकी तंत्र दोनों को प्रभावित कर रही हैं।
वैश्वीकरण, व्यापार और यात्रा के बढ़ते प्रवाह के कारण यह प्रजातियाँ नए पारिस्थितिक तंत्रों में पहुंचती हैं और वहाँ की स्वदेशी प्रजातियों को विस्थापित करती हैं। हालांकि, विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि हर गैर-स्वदेशी प्रजाति को समाप्त कर देना उचित नहीं, क्योंकि कई कृषि उत्पाद भी मूल रूप से विदेशी ही हैं।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • InvaCost डेटाबेस दुनिया का पहला सार्वजनिक डेटाबेस है जो जैविक घुसपैठ के आर्थिक प्रभावों का आंकलन करता है।
  • अंतरराष्ट्रीय समझौता Ballast Water Management Convention शिपिंग द्वारा समुद्री जीवों के प्रसार को रोकने का प्रयास करता है।
  • Convention on Biological Diversity के अंतर्गत भारत समेत सभी देश जैविक घुसपैठ को नियंत्रित करने के लिए बाध्य हैं।
  • वैश्विक लागत का 71.45% यूरोप में दर्ज किया गया, मुख्यतः उच्च कृषि उत्पाद मूल्य और बेहतर रिपोर्टिंग के कारण।

समाधान की दिशा में कदम

शोधकर्ताओं का मानना है कि जैविक घुसपैठ से निपटने के लिए केवल नीति नहीं, बल्कि सटीक डेटा संग्रह और पारदर्शी रिपोर्टिंग अनिवार्य है। विभिन्न रणनीतियों — जैसे रोकथाम, उन्मूलन, नियंत्रण और प्रसार धीमा करना — को स्थानीय परिस्थिति के अनुसार लागू करना होगा। भारत को विशेष रूप से अपने प्रबंधन प्रयासों का अधिक सटीक दस्तावेजीकरण और समन्वयित रणनीति तैयार करनी होगी।
अध्ययन यह स्पष्ट करता है कि जैविक घुसपैठ न केवल पारिस्थितिकीय संकट है, बल्कि यह एक बड़ा आर्थिक खतरा भी है। भारत जैसे विकासशील देशों के लिए यह दोहरी चुनौती है: एक ओर वैश्वीकरण से आर्थिक अवसरों को साधना, दूसरी ओर जैव विविधता की रक्षा करना। भविष्य के लिए यह अध्ययन एक चेतावनी के रूप में देखा जाना चाहिए — नीतिगत सजगता और वैज्ञानिक दृष्टिकोण अब टालने योग्य विकल्प नहीं रहे।

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