वार्षिक वैज्ञानिक सफलता: भारत में मौखिक कैंसर का क्रमागत आणविक वर्गीकरण
भारतीय चिकित्सीय अनुसंधान में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि के तौर पर, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (BHU) के शोधकर्ताओं ने दुनिया का पहला व्यवस्थित मौखिक (ओरल) कैंसर का आणविक वर्गीकरण विकसित किया है। यह अध्ययन 25 दिसंबर को प्रतिष्ठित जर्नल Mutation Research/Reviews in Mutation Research में प्रकाशित हुआ है। भारत और दक्षिण पूर्व एशिया जैसे उच्च रोगभार वाले क्षेत्रों में यह शोध मौखिक कैंसर के निदान और उपचार में क्रांतिकारी बदलाव लाने की क्षमता रखता है।
शोध का पृष्ठभूमि और महत्व
बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के सर्जिकल ऑन्कोलॉजी विभाग द्वारा नेतृत्व किए गए शोध में 8,000 से अधिक वैज्ञानिक अध्ययनों के जीनोमिक डेटा और साक्ष्य का विश्लेषण किया गया। मौखिक कैंसर के पारंपरिक, रूपात्मक (मॉर्फोलॉजी-आधारित) निदान से आगे बढ़ते हुए, शोध दल ने इसे आणविक स्तर पर वर्गीकृत करने का सफल प्रयास किया। इस तरह का वर्गीकरण न केवल रोग को बेहतर समझने में मदद करेगा, बल्कि प्रत्येक रोगी के लिए लक्ष्य आधारित (टार्गेटेड) चिकित्सा विकल्पों को चुनने में भी सहायता करेगा।
मुख्य आणविक मार्ग और उनकी पहचान
इस अध्ययन में मौखिक कैंसर के पाँच विशिष्ट जैविक उपप्रकार (मोलिक्यूलर सबटाइप) की पहचान की गई है:
Cell-Cycle Dysregulation (CCD)
यह उपप्रकार कोशिका चक्र से जुड़ी असामान्यताओं से संबंध रखता है, जहां कोशिकाओं का विभाजन अनियंत्रित रूप से होता है।
Immune-Mediated (IM)
इस प्रकार के कैंसर में प्रतिरक्षा प्रणाली की सक्रिय/प्रतिक्रियाशील भूमिका महत्वपूर्ण होती है, जिससे इम्यूनोथेरेपी जैसे उपचार प्रभावी हो सकते हैं।
Xenobiotic Metabolism-Associated (XMA)
यह मार्ग बाह्य रसायनों के चयापचय से जुड़ा है, जो मुख्यतः तंबाकू और पान मसाला जैसी वस्तुओं के सेवन से प्रभावित होता है।
Inflammatory Pathway Activation (IPA)
सूजन संबंधी जैविक मार्ग की सक्रियता इस उपप्रकार की विशेषता है।
Viral Protein Activation (VPA)
इसमें कुछ वायरल प्रोटीन सक्रिय होते हैं, हालांकि अध्ययन में यह स्पष्ट किया गया है कि भारत में अधिकांश मौखिक कैंसर मामलों में मानव पैपिलोमा वायरस (HPV) की भूमिका अपेक्षाकृत सीमित है।
इन उपप्रकारों के आधार पर चिकित्सा विशेषज्ञ HER2 इनहिबिटर्स, PARP इनहिबिटर्स, या व्यक्तिगत प्रतिरक्षा चिकित्सा (इम्यूनोथेरेपी) जैसे लक्षित उपचार चुन सकते हैं, जिससे एक समान कीमोथेरेपी पर निर्भरता कम हो जाती है।
भारतीय संदर्भ और प्रीसिज़न मेडिसिन
पश्चिमी देशों के मॉडल को अपनाने के बजाय, इस शोध में तंबाकू और पान उपयोग जैसे भारत-विशिष्ट जोखिम कारकों को प्राथमिकता दी गई है। यह दृष्टिकोण एविडेंस-आधारित और रोगी-विशिष्ट निर्णय लेने को प्रोत्साहित करता है, जिससे अप्रयुक्त या अनुचित उपचारों से बचा जा सके।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- मौखिक कैंसर का उच्च प्रकोप मुख्यतः तंबाकू और पान/बेटेल क्विड सेवन के कारण भारत में अधिक है।
- यह शोध दुनिया का पहला व्यवस्थित आणविक वर्गीकरण प्रदान करता है।
- पांच मौखिक कैंसर के आणविक उपप्रकारों की पहचान की गई है।
- अध्ययन पर प्रीसिजन मेडिसिन आधारित लक्षित उपचार को प्राथमिकता दी गई है।
नैदानिक प्रभाव और चुनौतियाँ
शोध दल के अनुसार यह वर्गीकरण “सही मरीज के लिए सही दवा” के सिद्धांत को समर्थन देता है, जिससे परीक्षण-त्रुटि आधारित उपचारों और परिवारों पर आर्थिक बोझ में कमी संभव है। हालांकि, परीक्षण लागत, लक्षित दवाओं की उपलब्धता, और देशव्यापी क्रियान्वयन से पूर्व मजबूत नैदानिक परीक्षणों की आवश्यकता जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं। स्थानीय संदर्भ में इन वर्गीकरणों को अपनाने से नैदानिक निर्णयों की गुणवत्ता, उपचार की सटीकता और रोगियों की जीवन गुणवत्ता में सुधार संभव है।
इस प्रकार, BHU का यह शोध मौखिक कैंसर की समझ और उपचार रणनीतियों में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है, खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ यह रोग प्रचलित है।