वायनाड के वर्षावनों में नई अर्ध-जलचरी मकड़ी ‘डोलोमीडेस इंडिकस’की खोज
केरल के शोधकर्ताओं ने वायनाड के घने वर्षावनों में ‘डोलोमीडेस इंडिकस’ नामक अर्ध-जलचरी मकड़ी की एक नई प्रजाति की पहचान की है। यह खोज न केवल भारत में पहली बार इस जीनस की ‘फिशिंग स्पाइडर’ के अस्तित्व की पुष्टि करती है, बल्कि पश्चिमी घाट की जैविक संपन्नता को उजागर करती है और इस संवेदनशील पारिस्थितिकी तंत्र में निरंतर शोध की आवश्यकता को रेखांकित करती है।
वायनाड की निर्मल जलधाराओं में खोज
केरल वन अनुसंधान संस्थान (KFRI) के वैज्ञानिकों ने यह प्रजाति लक्किडी और पेरिया के वन क्षेत्रों में खोजी। यह मकड़ी पारंपरिक जाले बुनने वाली प्रजातियों से भिन्न है — यह सक्रिय शिकारी है जो जल सतह पर शिकार करती है। यह पानी की सतह पर उत्पन्न कंपन से अपने शिकार की पहचान करती है और तेज़ी से सरककर कीटों या छोटी मछलियों को पकड़ लेती है।
शोधकर्ताओं ने एक मादा मकड़ी को लगभग 90 मिनट तक जलमग्न रहने की क्षमता के साथ देखा। यह मकड़ी जलरोधी रोमों की मदद से अपने शरीर के चारों ओर हवा की परत बनाए रखती है, जिससे वह लंबी अवधि तक पानी में रह सकती है।
वैज्ञानिक पुष्टि और पहचान की विशेषताएँ
शोधकर्ताओं ने शारीरिक निरीक्षण और डीएनए विश्लेषण के ज़रिए इस नई प्रजाति की पुष्टि की। यद्यपि भारत में ‘फिशिंग स्पाइडर्स’ की अनौपचारिक रिपोर्ट्स पूर्व में आई थीं, लेकिन यह पहली बार है जब किसी प्रजाति को आनुवंशिक और संरचनात्मक प्रमाणों के साथ विधिवत दर्ज किया गया है।
नर मकड़ियों के चेहरे से लेकर पीठ तक एक विशिष्ट ‘सफेद धार’ होती है, जबकि मादाएं आकार में बड़ी होती हैं और हरे-भूरे रंग की होती हैं, जिससे वे काई से ढंके तटों में आसानी से छुप जाती हैं। इन प्रजातियों के नमूने KFRI की कीट संग्रहशाला में संरक्षित किए गए हैं।
पारिस्थितिकी, व्यवहार और आवासीय संवेदनशीलता
डोलोमीडेस इंडिकस शीतल, तेज़ बहाव वाली वन धाराओं में पाई जाती है और गंदे या स्थिर जलस्रोतों से दूर रहती है। इसका व्यवहार — सतह पर शिकार करना, तैरना, फिसलना और लंबी अवधि तक गोता लगाना — इसे एक विशिष्ट अर्ध-जलचरी जीव बनाता है।
इसकी जीवनशैली और प्रवृत्तियाँ जल स्रोत की गुणवत्ता से अत्यधिक जुड़ी हुई हैं, जिससे यह प्रजाति पश्चिमी घाट की ताजे पानी की पारिस्थितिकी का एक महत्वपूर्ण संकेतक बनती है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- डोलोमीडेस इंडिकस, भारत में ‘डोलोमीडेस’ जीनस की पहली पुष्टि-प्राप्त प्रजाति है।
- यह वायनाड (केरल) के लक्किडी और पेरिया वन क्षेत्रों में पाई गई।
- जल सतह पर कंपन के माध्यम से शिकार करती है और लंबी अवधि तक पानी में रह सकती है।
- इसकी पुष्टि डीएनए विश्लेषण और विशेष संरचनात्मक चिन्हों, जैसे नर के सफेद धार से हुई।
पश्चिमी घाट के लिए संरक्षण महत्व
चूंकि ये मकड़ियाँ ताजे जल पर आश्रित शिकारी हैं, इसलिए इनका अस्तित्व पारिस्थितिकी तंत्र की सेहत को दर्शाता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि जलवायु परिवर्तन और भूमि उपयोग दबावों के चलते पश्चिमी घाट की जलधाराएँ गंभीर खतरे में हैं। ऐसी प्रजातियों की खोज यह दर्शाती है कि इन प्राकृतिक जलस्रोतों को संरक्षित रखना अत्यंत आवश्यक है।
डोलोमीडेस इंडिकस की खोज भारत में वैज्ञानिक अन्वेषण के क्षेत्र में एक नई प्रेरणा है और यह प्रमाण है कि हमारे देश के प्राकृतिक परिदृश्य अब भी कई रहस्यों को समेटे हुए हैं।