वरिष्ठ असमिया अभिनेत्री रंजना शर्मा बोरदोलोई का निधन: असमिया सिनेमा की एक स्वर्णिम युग का अंत
असमिया सिनेमा की प्रसिद्ध अभिनेत्री रंजना शर्मा बोरदोलोई का 80 वर्ष की आयु में डिब्रूगढ़ में रविवार को निधन हो गया। 1960 और 1970 के दशक में असमिया फिल्म जगत की अग्रणी चेहरा रहीं रंजना शर्मा बोरदोलोई के निधन से राज्य की सांस्कृतिक विरासत में एक युग का अंत हो गया। उस दौर में जब महिलाओं की फिल्मी भागीदारी सामाजिक विरोध का सामना कर रही थी, उन्होंने एक साहसी अभिनेत्री के रूप में अपनी जगह बनाई।
असमिया सिनेमा में विशिष्ट अभिनय यात्रा
रंजना शर्मा बोरदोलोई ने कई ऐतिहासिक असमिया फिल्मों में अपनी अदाकारी से दर्शकों के दिलों में जगह बनाई। उनके उल्लेखनीय फिल्मों में “डॉ. बेजबरुआ” (1969), “मनीराम देवान” (1964), “मोरम तृष्णा” (1968), “लोटी‑घोटी” (1966), “प्रतिध्वनि” (1964), “रतनलाल” (1975), “सोनमाई” (1977), और “कोकादेउता नाती अरु हाथी” (1983) शामिल हैं। उनकी सशक्त स्क्रीन उपस्थिति और बहुआयामी अभिनय क्षमता ने असमिया सिनेमा के स्वर्णिम युग को आकार देने में अहम भूमिका निभाई।
फिल्मों से परे सांस्कृतिक योगदान
एक अभिनेत्री होने के साथ-साथ, रंजना शर्मा बोरदोलोई एक कुशल भरतनाट्यम नृत्यांगना भी थीं और अन्य पारंपरिक नृत्य शैलियों में भी दक्षता रखती थीं। उन्होंने रंगमंच और रेडियो नाटकों में भी सक्रिय योगदान दिया। वे भूपेन हजारिका जैसे सांस्कृतिक व्यक्तित्व के निर्देशन में बनी फिल्मों में भी नजर आईं। साथ ही वे 1957 में स्थापित प्रसिद्ध थिएटर समूह मंचरूपा की संस्थापक सदस्य थीं। आकाशवाणी के रेडियो नाटकों में उनके अभिनय ने उनके बहुमुखी प्रतिभा को दर्शाया।
सम्मान और सार्वजनिक पहचान
उनके बहुमूल्य योगदान के लिए असम सरकार ने उन्हें “बिष्णु राभा पुरस्कार” से सम्मानित किया। इसके साथ ही उन्हें कलाकार पेंशन भी प्रदान की गई, जो उनके आजीवन सांस्कृतिक सेवा और कला साधना का प्रतीक है। वे असमिया सांस्कृतिक पुनर्जागरण की प्रमुख स्तंभ मानी जाती थीं।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
• बिष्णु राभा पुरस्कार असम सरकार का एक प्रमुख सांस्कृतिक सम्मान है।
• असमिया सिनेमा का स्वर्ण युग 1960 और 1970 के दशक में माना जाता है।
• भूपेन हजारिका असम के सांस्कृतिक पुनर्जागरण के अग्रणी व्यक्तित्व थे।
• आकाशवाणी ने क्षेत्रीय कला और रंगमंच को बढ़ावा देने में ऐतिहासिक भूमिका निभाई है।
अंतिम विदाई और जन श्रद्धांजलि
सोमवार को उनके पार्थिव शरीर को डिब्रूगढ़ के कई सांस्कृतिक और शैक्षणिक संस्थानों जैसे अमोलापट्टी नाट्य मंदिर और डिब्रूगढ़ संगीत विद्यालय (जो उनके परिवार द्वारा स्थापित है) ले जाया गया, जहाँ लोगों ने उन्हें अंतिम श्रद्धांजलि दी। बाद में उनका अंतिम संस्कार विधिवत रूप से किया गया। सांस्कृतिक क्षेत्र से जुड़े अनेक लोगों ने उन्हें एक पथप्रदर्शक अभिनेत्री, समर्पित कलाकार और आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत के रूप में याद किया।