लिपुलेख व्यापार विवाद: भारत-नेपाल सीमा विवाद की नई परतें

भारत और चीन के बीच उत्तराखंड के लिपुलेख दर्रे के माध्यम से फिर से शुरू होने वाले सीमा व्यापार को लेकर भारत और नेपाल के बीच कूटनीतिक तनाव एक बार फिर सतह पर आ गया है। नेपाल ने इस फैसले का विरोध करते हुए कहा है कि लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा उसके क्षेत्र का हिस्सा हैं, जबकि भारत ने इन दावों को “ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित नहीं” बताया है। यह विवाद दोनों देशों के बीच लंबे समय से चला आ रहा है और अब चीन के साथ भारत की व्यापारिक गतिविधियों के पुनः आरंभ होने के कारण एक बार फिर सुर्खियों में है।

लिपुलेख का महत्व और भारत की स्थिति

भारत ने स्पष्ट रूप से कहा है कि लिपुलेख दर्रे से भारत-चीन सीमा व्यापार 1954 से हो रहा है और यह दशकों से चल रहा है। हाल के वर्षों में यह व्यापार कोविड-19 और अन्य कारणों से रुका हुआ था, जिसे अब दोबारा शुरू किया गया है। भारत के विदेश मंत्रालय ने नेपाल की आपत्ति को निराधार बताते हुए कहा है कि यह दावा ऐतिहासिक तथ्यों और सबूतों पर आधारित नहीं है।
लिपुलेख दर्रा कैलाश मानसरोवर यात्रा का पारंपरिक मार्ग है, जो उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले से होकर जाता है। इस मार्ग पर 80 किलोमीटर लंबी सड़क का निर्माण भारतीय सीमा सड़क संगठन (BRO) द्वारा किया गया था, जिसे 2020 में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने उद्घाटित किया था। यह मार्ग न केवल तीर्थ यात्रा बल्कि व्यापार और रणनीतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण माना जाता है।

नेपाल की आपत्ति और उसका आधार

नेपाल सरकार का कहना है कि उसकी आधिकारिक संविधान सम्मिलित नक्शे में लिम्पियाधुरा, कालापानी और लिपुलेख को महाकाली (सरयू) नदी के पूर्व में नेपाल का अभिन्न हिस्सा दर्शाया गया है। नेपाल ने बार-बार भारत और चीन दोनों को सूचित किया है कि इस क्षेत्र में किसी भी प्रकार की सड़क निर्माण या व्यापारिक गतिविधि उसकी संप्रभुता का उल्लंघन है।
2020 में नेपाल की संसद ने नया राजनीतिक नक्शा पारित किया था, जिसमें इन क्षेत्रों को नेपाल का हिस्सा बताया गया था। नेपाल का तर्क है कि काली नदी की उत्पत्ति लिम्पियाधुरा से होती है, इसलिए नदी के पूर्व का सारा क्षेत्र उसके अधिकार क्षेत्र में आता है।

इतिहास, भू-राजनीति और रणनीतिक अहमियत

1816 की सुगौली संधि और 1923 की द्विपक्षीय संधि के अनुसार, नेपाल ने काली नदी के पश्चिम का क्षेत्र त्यागा था। लेकिन काली की उत्पत्ति को लेकर भारत और नेपाल की राय भिन्न है। भारत का कहना है कि नदी का स्रोत दर्रे से नीचे है, और कालापानी ऐतिहासिक रूप से भारतीय प्रशासनिक सीमा का हिस्सा रहा है। भारत का यह भी दावा है कि पुरानी राजस्व और प्रशासनिक अभिलेख इस बात की पुष्टि करते हैं।
1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद से भारत ने कालापानी में इंडो-तिब्बतन बॉर्डर पुलिस (ITBP) की तैनाती कर रखी है, जो इस क्षेत्र की सामरिक निगरानी करता है। नेपाल इसे अतिक्रमण मानता है। साथ ही, नेपाल को यह भी आपत्ति है कि भारत और चीन ने नेपाल को विश्वास में लिए बिना लिपुलेख व्यापार को बढ़ाने की योजना बनाई।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • सुगौली संधि (1816) के तहत नेपाल ने काली नदी के पश्चिम का क्षेत्र ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को सौंप दिया था।
  • लिपुलेख दर्रा भारत, नेपाल और चीन के त्रिजंक्सन क्षेत्र में स्थित है और कैलाश मानसरोवर यात्रा का प्रमुख मार्ग है।
  • कालापानी क्षेत्र में ITBP की तैनाती भारत-चीन युद्ध (1962) के बाद से है।
  • नेपाल का आधिकारिक नक्शा, जिसमें लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा नेपाल का हिस्सा दर्शाए गए हैं, 2020 में नेपाल की संसद से पारित हुआ था।

भारत और नेपाल के बीच लिपुलेख विवाद भू-राजनीतिक जटिलताओं, ऐतिहासिक समझौतों, और क्षेत्रीय संप्रभुता की व्याख्याओं का मिश्रण है। जबकि दोनों पक्ष अपने-अपने दावों को लेकर अडिग हैं, भारत ने यह स्पष्ट किया है कि वह नेपाल के साथ सौहार्दपूर्ण बातचीत और कूटनीतिक मार्ग से सभी लंबित सीमा मुद्दों को सुलझाने के लिए तैयार है। ऐसे समय में जब चीन भारत के पड़ोस में अपने प्रभाव को बढ़ा रहा है, यह और भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि भारत-नेपाल संबंध स्थायित्व और विश्वास पर आधारित बने रहें।

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