लद्दाख में छठी अनुसूची और राज्य का दर्जा: आत्मनिर्णय की मांग के पीछे का संघर्ष

लद्दाख में एक बार फिर राज्य के दर्जे और भारतीय संविधान की छठी अनुसूची के तहत स्वायत्तता की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन तेज हो गए हैं। हाल ही में हुए हिंसक प्रदर्शन, जिसमें एक भाजपा कार्यालय को आग के हवाले कर दिया गया और पुलिस को आंसू गैस के गोले छोड़ने पड़े, ने इस आंदोलन को राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में ला दिया है। प्रसिद्ध जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक ने भी 15 दिन की भूख हड़ताल के बाद शांतिपूर्ण आंदोलन की अपील की है।
आंदोलन की पृष्ठभूमि
2019 में अनुच्छेद 370 के निरसन और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम के तहत जम्मू-कश्मीर को दो केंद्रशासित प्रदेशों में बांटा गया — एक जम्मू-कश्मीर (विधानसभा सहित) और दूसरा लद्दाख (बिना विधानसभा)। लद्दाख को जम्मू-कश्मीर से अलग कर केंद्र के प्रत्यक्ष नियंत्रण में लाना एक ऐतिहासिक कदम था, जिसे शुरू में स्थानीय जनता ने समर्थन दिया।
लेकिन समय के साथ यह समर्थन असंतोष में बदल गया, जब लोगों ने महसूस किया कि उन्हें पर्याप्त संवैधानिक सुरक्षा और प्रशासनिक स्वायत्तता नहीं मिली है। स्थानीय भर्ती, भूमि अधिकार, पर्यावरणीय संतुलन और सांस्कृतिक संरक्षण के मुद्दे केंद्र में आ गए हैं।
लद्दाख के लिए छठी अनुसूची की मांग
भारतीय संविधान की छठी अनुसूची अनुच्छेद 244 के तहत पूर्वोत्तर भारत के जनजातीय क्षेत्रों के लिए स्वायत्त जिला परिषदों (ADCs) का प्रावधान करती है। लद्दाख की 90% से अधिक आबादी अनुसूचित जनजातियों से संबंधित है, ऐसे में वहां की जनता यह मांग कर रही है कि उन्हें भी पूर्वोत्तर की तरह स्वायत्त प्रशासनिक अधिकार मिले।
छठी अनुसूची के तहत भूमि, वन, जल, स्वास्थ्य, कृषि, ग्राम परिषदों, और स्थानीय पुलिस व्यवस्था जैसे मामलों पर स्थानीय कानून बनाने की शक्ति मिलती है, जिससे क्षेत्रीय पहचान और संसाधनों की सुरक्षा सुनिश्चित होती है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- छठी अनुसूची फिलहाल असम, मेघालय, मिजोरम और त्रिपुरा के कुछ जनजातीय क्षेत्रों में लागू है।
- वर्तमान में पूर्वोत्तर भारत में कुल 10 स्वायत्त जिला परिषदें (ADCs) कार्यरत हैं।
- लद्दाख की 90% से अधिक जनसंख्या अनुसूचित जनजातियों से संबंधित है।
- सोनम वांगचुक को 2018 में रेमन मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।