लद्दाख में चांगथांग और कराकोरम वन्यजीव अभयारण्यों की सीमाओं का होगा पुनर्निर्धारण
लद्दाख के दो प्रमुख वन्यजीव अभयारण्यों — चांगथांग और कराकोरम — की सीमाओं और क्षेत्रफल में बड़े बदलाव का प्रस्ताव अब अंतिम स्वीकृति के लिए केंद्र सरकार के पास भेजा जा रहा है। इन क्षेत्रों का महत्व न केवल जैव विविधता और पर्यटन की दृष्टि से है, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा और सीमावर्ती गांवों की स्थायित्वपूर्ण आबादी के लिहाज से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
संशोधित क्षेत्रफल और प्रस्तावित परिवर्तन
लद्दाख राज्य वन्यजीव बोर्ड की 19 सितंबर को हुई 13वीं बैठक में यह प्रस्ताव रखा गया कि कराकोरम वन्यजीव अभयारण्य का संशोधित क्षेत्रफल 16,550 वर्ग किलोमीटर और चांगथांग का 9,695 वर्ग किलोमीटर किया जाए। 1987 में अधिसूचित इन अभयारण्यों का क्षेत्रफल क्रमशः 5,000 और 4,000 वर्ग किलोमीटर के आसपास था।
हालांकि, प्रस्तावित संशोधन के अंतर्गत कराकोरम से 1,742 वर्ग किलोमीटर (मुख्यतः नुब्रा-श्योक क्षेत्र) और चांगथांग से 164 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र को बाहर किया जाएगा। यह क्षेत्र उन गांवों और मानवीय बस्तियों के इर्द-गिर्द हैं, जो लंबे समय से संरक्षित क्षेत्र के नियमों के कारण बुनियादी ढांचे के विकास में बाधाएं झेल रहे हैं।
अधिसूचना की खामियों और नई सिफारिशों का आधार
1987 की अधिसूचना में उत्तर-दक्षिण-पूर्व-पश्चिम सीमाओं का स्पष्ट वर्णन नहीं था, जिससे यह भ्रम उत्पन्न हुआ कि वास्तविक संरक्षित क्षेत्र अधिसूचित क्षेत्र से तीन से चार गुना अधिक है। इसी भ्रम को दूर करने और वन्यजीव संरक्षण तथा स्थानीय विकास के बीच संतुलन बनाने के लिए यह ‘सीमा पुनर्निर्धारण’ प्रस्तावित किया गया है।
वन्यजीव संस्थान (WII) द्वारा किए गए विस्तृत अध्ययन के आधार पर इन अभयारण्यों में “हाई कंज़र्वेशन वैल्यू एरियाज़” (HCVAs) की पहचान की गई है — कराकोरम में 10 और चांगथांग में 17। ये क्षेत्र सर्वोच्च स्तर की सुरक्षा और गतिविधियों पर प्रतिबंध की मांग करते हैं। साथ ही, कराकोरम में 9 वर्ग किमी का वन्यजीव गलियारा भी चिह्नित किया गया है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- कराकोरम और चांगथांग अभयारण्यों की मूल अधिसूचना 1987 में हुई थी।
- कराकोरम का प्रस्तावित क्षेत्र 16,550 वर्ग किमी और चांगथांग का 9,695 वर्ग किमी होगा।
- कराकोरम से 1,742 वर्ग किमी और चांगथांग से 164 वर्ग किमी क्षेत्र को बाहर किया जाएगा।
- WII ने कराकोरम में 10 और चांगथांग में 17 HCVAs की पहचान की है।
स्थानीय विकास, पर्यटन और राष्ट्रीय सुरक्षा का संतुलन
बैठक में लद्दाख के मुख्य सचिव पवन कोटवाल और स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषद, लेह के मुख्य कार्यकारी पार्षद ताशी ग्याल्सन ने बताया कि वन्यजीव अधिनियम के कारण स्थानीय लोगों को पर्यटन से जुड़े बुनियादी ढांचे जैसे होमस्टे और गेस्ट हाउस बनाने में कठिनाई हो रही है। अनुमति की प्रक्रिया लंबी और जटिल होने के कारण यह आजीविका के अवसरों को सीमित कर रही है।