लद्दाख के चांगथांग और कराकोरम वन्यजीव अभयारण्यों की सीमाओं में प्रस्तावित बदलाव
लद्दाख के दो प्रमुख वन्यजीव अभयारण्य — चांगथांग और कराकोरम — जिनका महत्व न केवल जैव विविधता के लिए बल्कि भारत की सामरिक सुरक्षा और स्थानीय अर्थव्यवस्था के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है, अब एक बड़े भू-क्षेत्रीय पुनर्गठन की प्रक्रिया में हैं। यह प्रस्ताव हाल ही में लद्दाख राज्य वन्यजीव बोर्ड की बैठक में पारित हुआ है और अब अंतिम स्वीकृति के लिए केंद्र सरकार को भेजा जाएगा।
अभयारण्यों का पुनर्निर्धारित क्षेत्रफल
1987 में अधिसूचित किए गए चांगथांग और कराकोरम अभयारण्यों का क्षेत्र क्रमशः लगभग 4,000 और 5,000 वर्ग किलोमीटर था। लेकिन अब, विस्तृत सर्वेक्षण और स्थानीय संवाद के आधार पर, इन क्षेत्रों का वास्तविक विस्तार कहीं अधिक पाया गया है। नए प्रस्ताव के अनुसार:
- कराकोरम वन्यजीव अभयारण्य: 16,550 वर्ग किमी
- चांगथांग वन्यजीव अभयारण्य: 9,695 वर्ग किमी
हालांकि, नए सीमांकन में कुछ क्षेत्रों को इन अभयारण्यों से बाहर भी रखा गया है — कराकोरम से 1,742 वर्ग किमी और चांगथांग से 164 वर्ग किमी। यह बहिष्करण मुख्यतः मानव बस्तियों के आसपास किया गया है, जिससे स्थानीय विकास की संभावनाएं खुल सकें।
संरक्षण और विकास का संतुलन
वन्यजीव संस्थान (WII) द्वारा दोनों अभयारण्यों में उच्च संरक्षण मूल्य वाले क्षेत्रों (High Conservation Value Areas – HCVA) की पहचान की गई है। कराकोरम में 10 और चांगथांग में 17 HCVAs चिह्नित किए गए हैं, जिन्हें विशेष सुरक्षा मिलेगी। इन क्षेत्रों में गतिविधियों पर सख्त नियंत्रण रहेगा, जिससे जैव विविधता की रक्षा सुनिश्चित हो सके।
स्थानीय जनजीवन और रणनीतिक महत्व
प्रस्तावित बदलावों का उद्देश्य बड़े व्यावसायिक प्रोजेक्ट्स को बढ़ावा देना नहीं, बल्कि स्थानीय लोगों के जीवन को सुविधाजनक बनाना है। पर्यटन पर निर्भर गांवों में अभी तक होमस्टे, अतिथि गृह जैसे लघु पर्यटन अवसंरचनाओं की अनुमति पाना कठिन रहा है। लद्दाख के मुख्य सचिव पवन कोटवाल ने बैठक में बताया कि वाइल्डलाइफ एक्ट के कारण आवश्यक सेवाओं जैसे बिजली, पानी और सड़कों की मंजूरी में काफी देरी होती है, जिससे सीमावर्ती गांवों से पलायन की स्थिति बन रही है।
लेह स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषद के प्रमुख ताशी ग्यालसन ने ज़ोर दिया कि सीमा क्षेत्रों में ग्रामीणों की उपस्थिति राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से भी आवश्यक है। इन अभयारण्यों की सीमाएं रणनीतिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों से लगती हैं और वहां की स्थायी आबादी सीमा निगरानी में सहायक होती है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- कराकोरम और चांगथांग अभयारण्यों को 1987 में अधिसूचित किया गया था।
- चांगथांग क्षेत्र भारत के सबसे ऊँचाई वाले ठंडे मरुस्थल क्षेत्रों में से एक है।
- Wildlife Institute of India (WII) भारत का प्रमुख वन्यजीव अनुसंधान संस्थान है, जिसकी स्थापना 1982 में हुई थी।
- लद्दाख में 67 गांव कराकोरम और 45 गांव चांगथांग अभयारण्य क्षेत्र में स्थित हैं, जिनका जीवन पर्यावरण कानूनों से प्रभावित होता रहा है।
यह प्रस्ताव लद्दाख में संरक्षण और विकास के बीच संतुलन स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है। जहां एक ओर इससे जैव विविधता की रक्षा होगी, वहीं दूसरी ओर सीमावर्ती इलाकों में रहने वाले नागरिकों को आवश्यक सुविधाएं और आजीविका के बेहतर अवसर मिलेंगे। यह कदम भारत की सामरिक स्थिति को भी मजबूती प्रदान करेगा।