रोहन बोपन्ना का संन्यास: भारतीय टेनिस में एक युग का अंत
भारतीय टेनिस के दिग्गज खिलाड़ी रोहन बोपन्ना ने पेशेवर टेनिस से संन्यास की घोषणा कर दी है, जिससे उनके 22 वर्षों के शानदार करियर का समापन हुआ। 45 वर्षीय बोपन्ना ने पेरिस मास्टर्स 1000 में अपने अंतिम मैच के बाद यह निर्णय लिया, जहाँ उन्होंने अलेक्जेंडर बुब्लिक के साथ युगल खेला। उनके संन्यास के साथ ही भारतीय टेनिस में एक प्रेरणादायक अध्याय समाप्त हुआ है।
भारतीय टेनिस में बोपन्ना की अमिट छाप
पेरिस मास्टर्स में अंतिम मैच में करीबी हार के साथ बोपन्ना ने कोर्ट को अलविदा कहा। उनकी पहचान तेज़ सर्व और कुशल नेट प्ले के लिए थी, जिसने उन्हें युगल और मिक्स्ड डबल्स दोनों में विश्व स्तरीय खिलाड़ी बनाया। उनका करियर न केवल अनुशासन और धैर्य का प्रतीक रहा, बल्कि उन्होंने भारतीय टेनिस को अंतरराष्ट्रीय पटल पर सम्मान भी दिलाया।
ग्रैंड स्लैम सफलता और वैश्विक मान्यता
बोपन्ना के करियर की सबसे बड़ी उपलब्धियों में 2017 में गैब्रिएला डाब्रोस्की के साथ फ्रेंच ओपन मिक्स्ड डबल्स खिताब जीतना शामिल है। 2024 में, 43 वर्ष की आयु में उन्होंने मैथ्यू एबडेन के साथ ऑस्ट्रेलियन ओपन पुरुष युगल खिताब जीतकर विश्व नंबर 1 रैंकिंग हासिल की। उन्होंने अपने करियर में पांच ग्रैंड स्लैम फाइनल में स्थान बनाया, जिनमें यूएस ओपन, ऑस्ट्रेलियन ओपन और फ्रेंच ओपन शामिल हैं।
राष्ट्रीय प्रतिनिधित्व और व्यक्तिगत आभार
बोपन्ना ने भारत की ओर से कई डेविस कप मुकाबलों और ओलंपिक खेलों में भाग लिया, और टीम के प्रमुख आधार स्तंभ रहे। अपने विदाई संदेश में उन्होंने अपनी पत्नी सुप्रिया, बेटी त्रिधा और बहन रश्मि का आभार जताया, जिन्होंने पूरे करियर में उनका साथ दिया और प्रेरणा दी।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- रोहन बोपन्ना ने 2017 में गैब्रिएला डाब्रोस्की के साथ फ्रेंच ओपन मिक्स्ड डबल्स खिताब जीता।
- उन्होंने 2024 में पुरुष युगल में विश्व नंबर 1 रैंकिंग हासिल की।
- बोपन्ना ने डेविस कप और कई ओलंपिक खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व किया।
- वे कर्नाटक के कूर्ग से हैं, जो भारतीय खेल जगत में कई सितारों का गढ़ माना जाता है।
प्रेरणा और दीर्घायुता की मिसाल
बोपन्ना का करियर दो एटीपी फाइनल्स और अनेक एटीपी खिताबों से सुसज्जित रहा, जो उनके लंबे और सफल खेल जीवन का प्रमाण है। उम्र की सीमाओं को पार कर उन्होंने जिस तरह निरंतर उत्कृष्टता दिखाई, वह युवा खिलाड़ियों के लिए एक प्रेरणा है। उनके संन्यास के साथ ही भारत को एक ऐसा खेल दूत मिला है, जिसकी छवि आने वाली पीढ़ियों के लिए मार्गदर्शक बनी रहेगी।