रेडियोधर्मी तकनीक से गैंडों की सुरक्षा: दक्षिण अफ्रीकी विश्वविद्यालय की अनोखी “Rhisotope Project” पहल

गैंडों के शिकार को रोकने के लिए दक्षिण अफ्रीका में एक विश्वविद्यालय ने एक अनूठी और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से प्रेरित पहल शुरू की है। University of the Witwatersrand ने अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के सहयोग से “Rhisotope Project” की शुरुआत की है, जिसमें गैंडे के सींगों में कम मात्रा में रेडियोधर्मी तत्वों (radioisotopes) को इंजेक्ट किया जाता है ताकि उन्हें अंतरराष्ट्रीय सीमा पर आसानी से ट्रैक किया जा सके।

कैसे काम करती है यह रेडियोआइसोटोप तकनीक?

रेडियोआइसोटोप्स किसी तत्व का अस्थिर रूप होते हैं जो विकिरण छोड़ते हैं। इन्हीं के माध्यम से गैंडे के सींग को “टैग” किया जाता है ताकि उन्हें सीमा, बंदरगाह और हवाई अड्डों पर पहले से स्थापित रेडिएशन पोर्टल मॉनिटर (RPM) उपकरणों द्वारा पहचाना जा सके।
यह एक गैर-हानिकारक प्रक्रिया है जिसे सफलतापूर्वक गैंडों पर परीक्षण किया गया है:

  • इंजेक्शन से गैंडे की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ा।
  • घेंट विश्वविद्यालय की टीम द्वारा सफेद रक्त कोशिकाओं में माइक्रोन्यूक्लीआई (सूक्ष्म न्यूक्लियस) की जांच की गई, जो सेल डैमेज का संकेत देते हैं। कोई नुकसान नहीं पाया गया।
  • 3D प्रिंटेड नकली सींगों पर परीक्षण से यह साबित हुआ कि पूरा 40-फुट कंटेनर भी रेडिएशन डिटेक्शन से छिप नहीं सकता।

परियोजना का उद्देश्य और महत्व

Rhisotope परियोजना का मुख्य उद्देश्य है:

  • सींगों को मानव उपयोग के लिए बेकार और जहरीला बनाना।
  • तस्करी को रोकने के लिए उन्हें अंतरराष्ट्रीय सीमा पर सुगम्य रूप से पहचानने योग्य बनाना।
  • पारंपरिक डीहॉर्निंग (सींग काटना) जैसे विधियों से बेहतर विकल्प प्रदान करना, जो गैंडों के सामाजिक व्यवहार और जीवनशैली को प्रभावित करते हैं।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • Rhisotope Project की शुरुआत University of the Witwatersrand, दक्षिण अफ्रीका द्वारा की गई।
  • इसे IAEA (International Atomic Energy Agency) का तकनीकी सहयोग प्राप्त है।
  • गैंडों की सींग में मौजूद केराटिन को ध्यान में रखते हुए 3D प्रिंटेड सींगों से तकनीक की प्रभावशीलता सिद्ध की गई।
  • दुनिया में गैंडों की आबादी 20वीं सदी की शुरुआत में 5 लाख थी, जो घटकर अब केवल 27,000 रह गई है।

गैंडों के शिकार की गंभीरता

गैंडे के सींगों की एशियाई बाजारों में भारी मांग है, खासकर पारंपरिक औषधि और प्रतीकात्मक संपत्ति के रूप में। पिछले एक दशक में दक्षिण अफ्रीका में 10,000 से अधिक गैंडे मारे जा चुके हैं, और 2025 की पहली तिमाही में ही 103 गैंडों के मारे जाने की पुष्टि हुई है।
हालांकि Rhisotope परियोजना कोई जादुई समाधान नहीं है, लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है कि यह शिकारियों के लिए एक मजबूत निवारक (deterrent) सिद्ध हो सकता है। साथ ही, यह गैंडों के व्यवहार में न्यूनतम हस्तक्षेप करता है, जिससे यह दीर्घकालिक रूप से अधिक प्रभावी संरक्षण उपाय साबित हो सकता है।

भविष्य की योजनाएँ

इस तकनीक की सफलता को देखते हुए, शोधकर्ता अब इसे अन्य संकटग्रस्त प्रजातियों जैसे हाथी और पैंगोलिन पर भी लागू करने की दिशा में काम कर रहे हैं।
यह परियोजना यह दर्शाती है कि विज्ञान और संरक्षण का संगम यदि सही दिशा में किया जाए, तो यह न केवल जानवरों को बचा सकता है, बल्कि तस्करी जैसे वैश्विक अपराधों को भी चुनौती दे सकता है।

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