राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संथाली भाषा में संविधान किया जारी: ओल चिकी लिपि में प्रकाशित संस्करण

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संथाली भाषा में संविधान किया जारी: ओल चिकी लिपि में प्रकाशित संस्करण

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने आज नई दिल्ली स्थित राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक विशेष समारोह में संथाली भाषा में भारतीय संविधान का विमोचन किया। यह संविधान ओल चिकी लिपि में प्रकाशित किया गया है, जो संथाली भाषी समुदायों के लिए भाषा समावेशन और सशक्तिकरण की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम माना जा रहा है।

संथाली नागरिकों को सशक्त बनाने की पहल

अपने संबोधन में राष्ट्रपति ने इसे संथाली समुदाय के लिए गर्व और आनंद का क्षण बताया। उन्होंने कहा कि अब संथाली भाषी लोग अपने ही भाषा और लिपि में संविधान को पढ़ सकेंगे, समझ सकेंगे और उसमें निहित मूल्यों व अधिकारों से गहराई से जुड़ सकेंगे।

राष्ट्रपति ने इस बात पर विशेष बल दिया कि मातृभाषा में संविधान तक पहुँच न केवल लोकतांत्रिक भागीदारी को सशक्त करती है बल्कि सामाजिक समावेशन को भी प्रोत्साहित करती है।

ओल चिकी लिपि की शताब्दी वर्ष की महत्ता

राष्ट्रपति मुर्मू ने इस बात की भी सराहना की कि यह प्रकाशन ओल चिकी लिपि के शताब्दी वर्ष के साथ संयोग में किया गया है, जिससे इस पहल का सांस्कृतिक महत्व और अधिक बढ़ गया है। उन्होंने विधि एवं न्याय मंत्रालय के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि यह संथाली समुदाय की भाषायी और सांस्कृतिक विरासत को सम्मान देने का सशक्त उदाहरण है।

जनजातीय कल्याण में नेतृत्व की भूमिका

इस अवसर पर उपराष्ट्रपति ने राष्ट्रपति मुर्मू का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि उन्होंने झारखंड की राज्यपाल रहते हुए जनजातीय कल्याण, भाषा, संस्कृति और पहचान को बढ़ावा देने की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य किए थे। केंद्रीय विधि एवं न्याय राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल भी इस कार्यक्रम में उपस्थित रहे।

संविधान और संथाली भाषा का संबंध

संथाली भाषा को भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में 92वें संशोधन अधिनियम, 2003 के माध्यम से शामिल किया गया था। यह पूर्वी भारत के झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और बिहार राज्यों में व्यापक रूप से बोली जाती है। ओल चिकी लिपि की रचना 20वीं सदी के प्रारंभ में की गई थी, जो संथाली भाषा की लिपिक पहचान को मजबूती देती है।

इस विमोचन के माध्यम से भारत में भाषायी विविधता के संरक्षण और समावेशी शासन के लक्ष्य की दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम उठाया गया है।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

• संथाली भाषा की लिपि ओल चिकी है, जिसकी रचना 1925 में पंडित रघुनाथ मुरमू ने की थी।

• संथाली को 2003 में 92वें संविधान संशोधन अधिनियम के माध्यम से आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया।

• यह भाषा झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और बिहार के बड़े जनजातीय समुदायों द्वारा बोली जाती है।

• ओल चिकी लिपि का यह वर्ष शताब्दी वर्ष के रूप में मनाया जा रहा है।

संविधान का संथाली में प्रकाशन भारत के लोकतंत्र और बहुभाषी समाज की शक्ति का प्रतीक है, जो प्रत्येक नागरिक को उसकी भाषा में अधिकारों और कर्तव्यों की समझ प्रदान करता है।

Originally written on December 27, 2025 and last modified on December 27, 2025.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *