राष्ट्रपति और राज्यपाल की संवैधानिक शक्तियों पर सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय

राष्ट्रपति और राज्यपाल की संवैधानिक शक्तियों पर सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति और राज्यपाल की संवैधानिक शक्तियों को लेकर एक महत्वपूर्ण सलाहात्मक मत (Advisory Opinion) जारी किया है। पांच जजों की संविधान पीठ ने स्पष्ट किया कि न तो राष्ट्रपति और न ही राज्यपाल के लिए न्यायालय कोई समय-सीमा तय कर सकता है, और न ही किसी विधेयक को ‘माना गया स्वीकृत’ (Deemed Assent) घोषित किया जा सकता है। यह मत संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत राष्ट्रपति द्वारा किए गए 16वें संदर्भ (Presidential Reference) पर दिया गया है।

समय-सीमा निर्धारित करने का अधिकार न्यायालय के पास नहीं

पीठ ने कहा कि यदि न्यायालय राष्ट्रपति या राज्यपाल को विधेयकों पर कार्रवाई करने के लिए निश्चित समय-सीमा निर्धारित करे, तो यह शक्तियों के पृथक्करण (Separation of Powers) के सिद्धांत का उल्लंघन होगा। संविधान के अनुच्छेद 200 और 201 में ऐसी कोई समय-सीमा का उल्लेख नहीं है। अतः न्यायपालिका द्वारा बनाई गई कोई कृत्रिम समय-सीमा संविधान की मूल भावना के विपरीत होगी और संवैधानिक व्यवस्था को पुनर्लेखित करने के समान होगी।

अत्यधिक निष्क्रियता पर सीमित न्यायिक हस्तक्षेप संभव

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यद्यपि न्यायालय राज्यपाल या राष्ट्रपति को समयबद्ध कार्रवाई का आदेश नहीं दे सकता, फिर भी लंबे समय तक बिना कारण और अनिश्चितकालीन निष्क्रियता की स्थिति में न्यायालय हस्तक्षेप कर सकता है। ऐसे मामलों में न्यायालय केवल एक सीमित आदेश (Limited Mandamus) जारी कर सकता है ताकि राज्यपाल अपने संवैधानिक दायित्व का निर्वहन “उचित समय” में करें। हालांकि यह शक्ति केवल निष्क्रियता तक सीमित होगी, न कि निर्णय के गुण-दोष के मूल्यांकन तक।

अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल के विकल्प

संविधान के अनुच्छेद 200 के अनुसार राज्यपाल किसी राज्य विधेयक पर तीन प्रकार की कार्रवाई कर सकते हैं

  1. विधेयक को स्वीकृति (Assent) देना,
  2. उसे राष्ट्रपति के विचारार्थ सुरक्षित रखना, या
  3. स्वीकृति न देकर पुनर्विचार हेतु वापस भेजना (Money Bill को छोड़कर)।सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल किसी विधेयक को अनिश्चितकाल तक रोक नहीं सकते, क्योंकि यह विधायिका की सत्ता और संघीय ढांचे की भावना को कमजोर करता है।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • यह 16वां राष्ट्रपति संदर्भ (Presidential Reference) था, अनुच्छेद 143 के अंतर्गत।
  • पीठ में मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई, न्यायमूर्ति सूर्यकांत, विक्रम नाथ, पी.एस. नरसिम्हा, और ए.एस. चंदुरकर शामिल थे।
  • अदालत ने ‘Deemed Assent’ की अवधारणा को असंवैधानिक बताया।
  • अनुच्छेद 200 और 201 के तहत स्वीकृति संबंधी निर्णय गैर-न्यायिक (Non-Justiciable) माने गए, सिवाय अत्यधिक निष्क्रियता की समीक्षा के।

यह निर्णय संवैधानिक पदाधिकारियों के बीच संतुलन बनाए रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। सुप्रीम कोर्ट ने यह सुनिश्चित किया कि राष्ट्रपति और राज्यपाल की विवेकाधीन भूमिका बनी रहे, परंतु विधायी प्रक्रिया को अनिश्चितकालीन विलंब से भी संरक्षण मिले। इससे संघीय ढांचे और लोकतांत्रिक मूल्यों की मजबूती को नया आयाम मिला है।

Originally written on November 21, 2025 and last modified on November 21, 2025.

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