राज्यपाल की स्वीकृति में देरी पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला: संघीय संतुलन पर असर
अप्रैल 2025 में भारत के सुप्रीम कोर्ट ने State of Tamil Nadu बनाम Governor of Tamil Nadu मामले में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया, जिसमें राज्यपालों द्वारा विधेयकों पर असेंशन देने में अनिश्चित देरी को असंवैधानिक ठहराया गया। अदालत ने यह माना कि ऐसी देरी नीतिगत निर्णयों में ठहराव लाती है और लोकतांत्रिक व्यवस्था को नुकसान पहुँचाती है। इस फैसले ने राज्यपालों के विवेकाधिकार को सीमित कर राज्य विधानसभाओं की सर्वोच्चता को मजबूती दी।
सुप्रीम कोर्ट का अप्रैल 2025 निर्णय
अदालत ने स्पष्ट किया कि राज्यपाल अनिश्चित काल तक विधेयकों को लंबित नहीं रख सकते। फैसले में यह भी कहा गया कि यदि राज्यपाल समयबद्ध तरीके से कार्य नहीं करते, तो न्यायालय इसे “मौन स्वीकृति” के रूप में मान सकता है। इस निर्णय को विपक्षी शासित राज्यों ने संघीय ढांचे की रक्षा की दिशा में एक बड़ा कदम माना।
राष्ट्रपति संदर्भ और न्यायिक पुनर्विचार
हालाँकि, इस निर्णय के क्रियान्वयन से पहले ही केंद्र सरकार ने राष्ट्रपति के माध्यम से एक संवैधानिक संदर्भ (Special Reference No.1 of 2025) सुप्रीम कोर्ट को भेजा। इस पर संविधान पीठ ने कहा कि अदालतें राज्यपाल या राष्ट्रपति पर समयसीमा थोप नहीं सकतीं, क्योंकि ऐसा करना संविधान में निहित शक्तियों के विरुद्ध होगा। साथ ही, ‘मौन स्वीकृति’ की अवधारणा को भी खारिज कर दिया गया।
यह निर्णय राज्यपालों को विधेयकों पर अधिक विवेक प्रदान करता है, जिससे वे पुनर्विचार के बाद भी विधेयकों को राष्ट्रपति के पास भेज सकते हैं। आलोचकों ने इसे केंद्र सरकार को अधिक शक्ति प्रदान करने वाला निर्णय बताया।
अनुच्छेद 200 और संवैधानिक संवाद
संविधान का अनुच्छेद 200 राज्यपाल को किसी विधेयक को स्वीकृति देने, अस्वीकार करने, या पुनर्विचार के लिए लौटाने की शक्ति देता है। विशेष संदर्भ में अदालत ने इस अनुच्छेद को राज्यपाल और राज्य विधानसभा के बीच संवाद का माध्यम माना। किंतु अनेक मामलों में यह संवाद ठहराव और असमर्थता में बदल गया है। अप्रैल के फैसले ने इसी असंतुलन को सुधारने की कोशिश की थी।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- अनुच्छेद 200 राज्यपाल को राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर निर्णय लेने की शक्ति देता है।
- सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल 2025 में पहली बार विधेयकों पर समयसीमा निर्धारित करने की कोशिश की।
- नवंबर 2025 में विशेष संदर्भ पर संविधान पीठ ने समयसीमा और ‘मौन स्वीकृति’ दोनों को खारिज कर दिया।
- राष्ट्रपति द्वारा सुप्रीम कोर्ट से परामर्श लेना अनुच्छेद 143 के तहत किया जाता है।
भारत में राज्यपाल की भूमिका और उनके विवेकाधिकार पर यह निर्णय एक बार फिर बहस का विषय बन गया है। जहां एक ओर यह केंद्र के अधिकारों को मजबूत करता है, वहीं दूसरी ओर राज्यों को अपनी विधायिका की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष जारी रखना होगा। यह मुद्दा आने वाले समय में भारत के संघीय ढांचे की दिशा तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।