राजस्थान के जालोर में जातीय पंचायत का विवादित फरमान: विवाहित महिलाओं के लिए स्मार्टफोन पर प्रतिबंध
राजस्थान के जालोर जिले के घाज़ीपुर गांव में एक जातीय पंचायत द्वारा विवाहित महिलाओं के लिए स्मार्टफोन के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने का फैसला लिया गया है। यह निर्णय 21 दिसंबर 2025 को चौधरी उपजाति की सुंदरमाता पाटी पंचायत की बैठक में लिया गया और यह गणतंत्र दिवस 2026 से लागू होगा। इस फरमान ने महिला अधिकार समूहों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के बीच तीखी प्रतिक्रिया को जन्म दिया है।
पंचायत का निर्णय और उसका दायरा
पंचायत का यह निर्णय जालोर के भीनमाल-खानपुर क्षेत्र के 15 गांवों पर लागू होगा। इस फरमान के तहत बेटियों, बहुओं और युवतियों को कैमरा युक्त स्मार्टफोन ले जाने की अनुमति नहीं होगी—चाहे वे शादी में जा रही हों, सामाजिक समारोह में, या फिर पड़ोस में। केवल साधारण कीपैड फोन, वह भी सिर्फ कॉल करने के लिए, इस्तेमाल करने की छूट दी गई है।
पंचायत सदस्य हिम्मतराम द्वारा यह निर्णय पढ़कर सुनाया गया और बुजुर्गों तथा अन्य सदस्यों की “सहमति” से इसे पारित कर दिया गया। पंचायत के मुखिया सुजानाराम चौधरी ने इसका नेतृत्व किया।
समुदाय की ओर से दिए गए तर्क
पंचायत के मुखिया ने कहा कि यह प्रतिबंध बच्चों की आंखों की सुरक्षा और मोबाइल लत को रोकने के उद्देश्य से लगाया गया है। उनके अनुसार, घर की महिलाएं जब स्मार्टफोन रखती हैं, तो बच्चे उन्हें उपयोग करते हैं जिससे उनकी स्क्रीन के प्रति लत बढ़ जाती है। उनका तर्क है कि इससे पारिवारिक अनुशासन में सुधार और बच्चों के विकास में सहायता मिलेगी।
पढ़ाई के लिए आंशिक छूट
हालांकि यह फरमान शिक्षा प्राप्त कर रही छात्राओं के लिए कुछ हद तक छूट देता है। वे केवल घर पर पढ़ाई के लिए स्मार्टफोन का उपयोग कर सकती हैं, लेकिन उन्हें भी सार्वजनिक स्थानों या सामाजिक आयोजनों में फोन ले जाने की अनुमति नहीं होगी।
यह प्रतिबंध घाज़ीपुर, पावली, कालड़ा, मनोजियावास, राजीकावास, डटलावास, राजपुरा, कोड़ी, सिडरोड़ी, अल्दी, रोप्सी, खानादेवाल, साविधर, हाथमी की ढाणी और खानपुर जैसे गांवों में लागू होगा।
सामाजिक प्रतिक्रिया और आलोचना
इस निर्णय की खबर जब सोशल मीडिया पर वीडियो के माध्यम से फैली, तो चारों ओर से निंदा की लहर उठी। कई लोगों ने इसे महिलाओं की स्वतंत्रता और अधिकारों पर हमला बताया। महिला संगठनों ने कहा कि यह निर्णय महिलाओं को नियंत्रित करने और परिवार की “इज्जत” और “गोपनीयता” के नाम पर उनके डिजिटल अधिकारों को कुचलने की कोशिश है।
कई लोगों ने सवाल उठाया कि क्या ऐसी पंचायतों के पास इस तरह के फैसले लेने का कोई कानूनी अधिकार है? साथ ही, कई ने इस फरमान की खुली अवहेलना करने की अपील की। इस पूरे घटनाक्रम ने ग्रामीण भारत में चल रहे लैंगिक समानता, डिजिटल पहुंच और जातीय पंचायतों के प्रभाव पर गहन बहस को फिर से जीवंत कर दिया है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
• जातीय पंचायतें भारत के संविधान में मान्यता प्राप्त नहीं हैं; इनका कोई वैधानिक अधिकार नहीं होता।
• ऐसे प्रतिबंध भारतीय संविधान के मौलिक अधिकारों, जैसे कि स्वतंत्रता और समानता, का उल्लंघन कर सकते हैं।
• डिजिटल पहुंच को अब शिक्षा, सशक्तिकरण और विकास का एक अनिवार्य अंग माना जाता है।
• महिला अधिकारों और लैंगिक समानता की बहस में ऐसे जातिगत और सामाजिक प्रतिबंध बार-बार सामने आते हैं।
इस घटना ने स्पष्ट कर दिया है कि भारत में सामाजिक सुधार की राह में अब भी कई चुनौतियाँ मौजूद हैं, खासकर तब जब परंपरा के नाम पर आधुनिक अधिकारों को सीमित करने की कोशिश की जाती है।