राजस्थान की सिलिसर झील बनी भारत की 96वीं रामसर साइट: जैव विविधता और विरासत संरक्षण को मिला वैश्विक दर्जा
राजस्थान के अलवर जिले की सिलिसर झील (Siliserh Lake) को अंतरराष्ट्रीय महत्व की रामसर साइट घोषित किया गया है। यह भारत की 96वीं रामसर साइट है, जिसे Convention on Wetlands (1971) के तहत वैश्विक मान्यता प्राप्त हुई है। इस घोषणा के साथ-साथ छत्तीसगढ़ के कोपरा जलाशय को भी रामसर सूची में शामिल किया गया है, जिससे भारत के वेटलैंड संरक्षण प्रयासों को वैश्विक समर्थन मिला है।
रामसर दर्जा पाने से सिलिसर झील के जैव विविधता संरक्षण, जल सुरक्षा और जलवायु लचीलापन जैसे पारिस्थितिक पक्षों को वैश्विक मान्यता मिली है। यह मान्यता स्थानीय समुदायों की सहभागिता, संरक्षण उपायों को मज़बूत करने और स्थायी उपयोग को प्रोत्साहित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने इस उपलब्धि को क्षेत्रीय लोगों की साझी सफलता बताया और कहा कि यह कदम ईको-टूरिज्म, जल संसाधन प्रबंधन और स्थानीय आजीविका को सशक्त करेगा।
सिलिसर झील को इसके प्राकृतिक सौंदर्य और जैव विविधता के लिए जाना जाता है। यहाँ 100 से अधिक पक्षी और जानवरों की प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जिनमें प्रवासी पक्षी जैसे क्रेन, और स्थानीय प्रजातियाँ जैसे किंगफिशर शामिल हैं। यह झील एक महत्वपूर्ण आवास और आहार स्थल के रूप में कार्य करती है, जिससे यह पक्षी प्रेमियों और प्रकृति पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बन चुकी है।
झील की निकटता सारिस्का टाइगर रिज़र्व से इसकी पारिस्थितिक महत्ता को और बढ़ा देती है।
सिलिसर झील का निर्माण 1845 में महाराजा विनय सिंह द्वारा कराया गया था। इसका मूल उद्देश्य अलवर शहर को पीने का पानी प्रदान करना था। आज भी झील के चारों ओर मौजूद ऐतिहासिक जल-आवाहन संरचनाएँ इसकी इंजीनियरिंग और विरासत मूल्य को दर्शाती हैं।
रामसर मान्यता के माध्यम से अब यह क्षेत्र संरक्षण, पर्यटन और सतत विकास के एकीकृत मॉडल का उदाहरण बन सकता है।
रामसर दर्जा सिलिसर झील को एक स्थायी पर्यटन स्थल के रूप में स्थापित करने में सहायक होगा। इससे बढ़ती पर्यटक रुचि स्थानीय लोगों के लिए आर्थिक अवसर प्रदान करेगी। साथ ही, सख्त संरक्षण मानदंड यह सुनिश्चित करेंगे कि आर्थिक गतिविधियों और पारिस्थितिक संतुलन के बीच उचित तालमेल बना रहे।
इस मान्यता से स्पष्ट है कि भारत अब अपने वेटलैंड्स को केवल जल स्रोत या पर्यटन स्थल नहीं, बल्कि पारिस्थितिक धरोहर के रूप में देख रहा है और उनका संरक्षण वैश्विक प्राथमिकता बना रहा है।