यूरोपीय देशों में फ्रांस के परमाणु हथियार तैनात करने की योजना: सामरिक रणनीति या खतरे की घंटी?

14 मई को फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने यह संकेत दिया कि फ्रांस अपने परमाणु हथियारों को अन्य यूरोपीय देशों में तैनात करने के प्रस्ताव के लिए “संवाद को तैयार” है। यह बयान रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते यूरोप की बदलती सुरक्षा परिस्थितियों के बीच आया है।

फ्रांस की नीति में बदलाव का कारण

फ्रांस की यह पहल उसके “यूरोपीय सामरिक स्वायत्तता” (European Strategic Autonomy) की नीति के अंतर्गत आती है, जिसका उद्देश्य यूरोपीय संघ की स्वतंत्र सुरक्षा और रक्षा क्षमताओं को मजबूत करना है। मैक्रों ने पेरिस की सोरबोन यूनिवर्सिटी में दिए अपने भाषण में एक “संप्रभु यूरोप” की आवश्यकता पर बल दिया।
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा NATO सहयोगियों को दी जाने वाली सुरक्षा गारंटी पर सवाल उठाने के बाद यूरोपीय देशों में सुरक्षा को लेकर आशंका बढ़ी है, जिससे फ्रांस का यह कदम एक सामरिक विकल्प बन सकता है।

क्या है “न्यूक्लियर शेयरिंग” मॉडल?

“न्यूक्लियर शेयरिंग” (Nuclear Sharing) का अर्थ है किसी परमाणु हथियार संपन्न देश का अपने सहयोगी गैर-परमाणु देशों की धरती पर परमाणु हथियार तैनात करना। NATO के अंतर्गत अमेरिका ने यह मॉडल अपनाया है, जिसमें बेल्जियम, जर्मनी, इटली, नीदरलैंड और तुर्किये में B61 परमाणु बम तैनात हैं। इन हथियारों की कानूनी और तकनीकी नियंत्रण अमेरिका के पास ही रहता है।

क्या फ्रांस के पास पर्याप्त हथियार हैं?

फ्रांस के पास लगभग 290 परमाणु हथियार हैं, जिन्हें पनडुब्बियों से लॉन्च होने वाली मिसाइलों और Rafale लड़ाकू विमानों से दागा जा सकता है। 2023 की एक रिपोर्ट के अनुसार, फ्रांस की वर्तमान क्षमता अन्य देशों में हथियार तैनाती के लिए सीमित हो सकती है। इस उद्देश्य के लिए हथियारों की संख्या बढ़ानी पड़ सकती है, साथ ही विदेशी धरती पर फ्रांसीसी वायुसेना और समर्थन ढांचे की तैनाती भी आवश्यक होगी।

क्या यह रूस के खिलाफ निवारण को मजबूत करेगा?

इस तरह की तैनाती समर्थकों के अनुसार रूस के विरुद्ध निवारण को मजबूत कर सकती है और यूरोप की सामूहिक सुरक्षा प्रतिबद्धता को प्रदर्शित कर सकती है। परंतु यह कदम रूस द्वारा उकसावे के रूप में देखा जा सकता है, जैसा कि बेलारूस में रूसी परमाणु हथियारों की तैनाती से पहले देखा गया। रूस पहले ही NATO की पूर्वी विस्तार नीति के खिलाफ चेतावनी दे चुका है।

क्या यह अंतरराष्ट्रीय कानून के अंतर्गत वैध है?

1968 की परमाणु अप्रसार संधि (NPT) के तहत, परमाणु संपन्न देश (जैसे फ्रांस) किसी अन्य को परमाणु हथियार या उनका नियंत्रण स्थानांतरित नहीं कर सकते। NATO के मौजूदा मॉडल को सदस्य देश यह कहकर वैध ठहराते हैं कि “कानूनी स्वामित्व या नियंत्रण” केवल युद्ध की स्थिति में ही हस्तांतरित होता है, शांति काल में नहीं।
हालांकि, परमाणु निरस्त्रीकरण समर्थक और कई शोध संस्थान इस कानूनी तर्क को विवादास्पद मानते हैं।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • फ्रांस यूरोप का एकमात्र EU सदस्य देश है जो परमाणु हथियार रखता है और NATO के साझा परमाणु ढांचे का हिस्सा नहीं है।
  • NATO के तहत 5 देशों में अमेरिकी परमाणु बम तैनात हैं: बेल्जियम, जर्मनी, इटली, नीदरलैंड, तुर्किये।
  • रूस ने 2023 में बेलारूस में अपने टैक्टिकल परमाणु हथियार तैनात किए थे।
  • परमाणु अप्रसार संधि (NPT) 1968 में अस्तित्व में आई और भारत, इज़राइल, पाकिस्तान जैसे कुछ देशों ने इसे आज तक हस्ताक्षर नहीं किया है।

फ्रांस की यह नई रणनीतिक सोच यूरोप की सुरक्षा संरचना में एक बड़ा परिवर्तन ला सकती है। यह कदम एक ओर यूरोपीय एकता और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देता है, वहीं दूसरी ओर रूस के साथ सामरिक संतुलन को और अधिक तनावपूर्ण भी बना सकता है। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि आने वाले समय में यूरोप इस चुनौतीपूर्ण प्रस्ताव को कैसे संभालता है।

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