यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर में दीपावली की ऐतिहासिक पहचान
दीपावली, भारत का प्रमुख और विश्व प्रसिद्ध त्योहार, अब आधिकारिक रूप से यूनेस्को (UNESCO) की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर की सूची में शामिल हो गया है। यह ऐतिहासिक उपलब्धि न केवल भारत में बल्कि विश्व भर में दीपावली के सांस्कृतिक, सामाजिक और मानवीय महत्व को पहचान देने वाली है। यूनेस्को की ongoing सत्र में नई दिल्ली में इस घोषणा के बाद पूरे देश में उत्साह और गर्व की लहर दौड़ गई है। इस शामिल होने से यह सुनिश्चित होगा कि दीपावली की प्राचीन परंपराएँ आने वाली पीढ़ियों तक संरक्षित और प्रचलित रहें।
यूनेस्को मान्यता का वैश्विक महत्व
यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर सूची का उद्देश्य विश्व की विविध सांस्कृतिक प्रथाओं, रीति‑रिवाजों और उत्सवों को मान्यता देना और उन्हें संरक्षण प्रदान करना है। इस सूची में शामिल होने के लिए किसी परंपरा को उसकी ऐतिहासिक निरंतरता, सांस्कृतिक गहराई और सामाजिक सामूहिकता के लिए चुना जाता है। दीपावली के चयन में इन सभी पहलुओं का ध्यान रखा गया है।
दीपावली का अर्थ ही है “प्रकाश का त्योहार” — जो अंधकार पर उजाले की, ज्ञान पर अज्ञानता की, और विभाजन पर सामंजस्य की विजय का प्रतीक है। भारत में ही नहीं, बल्कि दुनिया भर के अनेक देशों में यह त्योहार विविध समुदायों द्वारा धूम‑धाम से मनाया जाता है।
यूनेस्को की यह मान्यता भारत की सांस्कृतिक विरासत को वैश्विक मंच पर और अधिक प्रतिष्ठित बनाती है। इससे न केवल भारत के भीतर परंपराओं का संरक्षण सुदृढ़ होगा बल्कि विदेशों में रहने वाले भारतीय और अन्य समुदायों को भी अपनी जड़ों से जुड़े रहने में मदद मिलेगी।
देशभर में उत्सव और आयोजन
यूनेस्को की घोषणा के बाद भारत के कई प्रमुख शहरों में दीपावली को सम्मान देने के लिए विशेष कार्यक्रमों का आयोजन किया गया।
- नई दिल्ली में विशाल प्रकाश व्यवस्था, सार्वजनिक सजावट और सामूहिक दीप प्रज्ज्वलन समारोह आयोजित किए गए।
- मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, बेंगलुरु और अन्य महानगरों में सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ, संगीत एवं नृत्य कार्यक्रम, तथा ऐतिहासिक परिसरों में विशेष प्रकाश शो आयोजित हुए।
- ग्रामीण क्षेत्रों में भी ग्रामीण युवा और संगठन परंपरागत रीति‑रिवाजों के प्रदर्शन के साथ दीपावली की खुशी में शामिल हुए।
देश के नागरिकों ने इस मान्यता को अपने सांस्कृतिक गर्व का प्रतिनिधित्व बताया है। दीयों की रोशनी, रंगोली की विविध रंगतें, मिठाइयों का स्वाद और सामाजिक मेलजोल—ये सभी मिलकर दीपावली को सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि एक सामाजिक उत्सव बनाते हैं।
दीपावली का आध्यात्मिक और सामाजिक महत्व
दीपावली का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व व्यापक है। यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की, अज्ञान पर ज्ञान की, और अन्धकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक है। हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, भगवान राम के अयोध्या लौटने के अवसर पर दीप जलाए गए थे। इसके अतिरिक्त, यह त्योहार माँ लक्ष्मी—धन, समृद्धि और खुशहाली की देवी—की पूजा के साथ भी जुड़ा हुआ है।
समाजशास्त्रीय दृष्टि से दीपावली परिवार और समुदायों के बीच सामंजस्य, साझा उत्साह और खुशियों का त्योहार है। यह आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देता है, क्योंकि लोग नए कपड़े, मिठाइयाँ, उपहार और दीये खरीदते हैं।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर सूची का उद्देश्य विश्व की जीवंत सांस्कृतिक परंपराओं को संरक्षित करना है।
- दीपावली भारत में पांच दिनों तक मनाया जाता है, जिसमें मुख्य दिन ‘दीपोत्सव’ के रूप में दीप जलाए जाते हैं।
- यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की, अन्धकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक माना जाता है।
- दुनिया भर में लाखों लोग, चाहे वे भारतीय मूल के हों या अन्य समुदायों के, दीपावली को अलग‑अलग सांस्कृतिक ढंग से मनाते हैं।
दीपावली का यूनेस्को की सूची में शामिल होना भारत की सांस्कृतिक पहचान के विस्तार और संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह न केवल परंपराओं को संरक्षित करेगा, बल्कि आने वाली पीढ़ियों तक इसके मूल्य और संदेश को व्यापक रूप से पहुँचाने में मदद करेगा।