म्यांमार संकट में भारत की भूमिका: हितों से परे मानवीय मूल्यों की पुकार

म्यांमार में फरवरी 2021 में सैन्य तख्तापलट के बाद से अब तक 5,000 से अधिक नागरिक मारे जा चुके हैं और 25 लाख से अधिक लोग विस्थापित हुए हैं। लेकिन इसके बावजूद भारत ने इस दमनकारी शासन के साथ औपचारिक रिश्ते बनाए रखे हैं। इस स्थिति में एक सवाल बार-बार उठता है — क्या भारत केवल “हितों” के आधार पर विदेश नीति चलाएगा, या “मूल्य” भी उसकी दिशा निर्धारित करेंगे?

लोकतंत्र और मानव सुरक्षा: नई नीति की दो धुरी

भारत को अब म्यांमार को लेकर अपनी नीति को पुनःपरिभाषित करना चाहिए — ऐसी नीति जो केवल रणनीतिक हितों पर आधारित न होकर लोकतांत्रिक मूल्यों और मानव सुरक्षा के सिद्धांतों पर टिकी हो। इसके लिए चार ठोस कदम उठाए जा सकते हैं:

भारतीय लोकतंत्र की शक्ति से प्रभाव निर्माण

भारत को चाहिए कि वह दुनिया के सबसे बड़े संघीय लोकतंत्र के रूप में अपनी पहचान का उपयोग म्यांमार की लोकतांत्रिक ताक़तों के साथ सहयोग के लिए करे। म्यांमार की लोकतांत्रिक प्रतिरोध सरकार (National Unity Government) और विभिन्न जातीय संगठन भारत को संघीय व्यवस्था का आदर्श मानते रहे हैं। भारत द्वारा क्षमता निर्माण कार्यक्रमों, संविधान निर्माण सलाह और राजनीतिक संवाद के ज़रिए इन ताक़तों को समर्थन देना न केवल म्यांमार के भविष्य को संबल देगा, बल्कि चीन जैसे प्रभावी देशों पर भारत की रणनीतिक बढ़त भी सुनिश्चित करेगा।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • म्यांमार की सेना ने 1 फरवरी 2021 को सत्ता हथिया ली थी।
  • अब तक 25 लाख लोग आंतरिक रूप से विस्थापित हुए हैं (UNOCHA, 2024)।
  • भारत ने फरवरी 2024 में भारत-म्यांमार सीमा पर ‘Free Movement Regime’ को निलंबित किया था।
  • भारत में मिजोरम राज्य में लगभग 50,000 से अधिक म्यांमार शरणार्थी रह रहे हैं।

म्यांमार को सैन्य साजो-सामान की आपूर्ति बंद करना

भारतीय रक्षा उपक्रमों द्वारा म्यांमार को नेविगेशन उपकरण, संचार प्रणाली और नौसेना डीजल जैसी वस्तुओं की आपूर्ति की रिपोर्टें चिंता बढ़ाती हैं। जब म्यांमार की सेना इन संसाधनों का प्रयोग निर्दोष नागरिकों के विरुद्ध कर रही हो, तब भारत की ऐसी आपूर्ति उसकी नैतिक स्थिति को कमजोर करती है। अतः भारत को सभी प्रकार के सैन्य या अर्ध-सैन्य सहयोग को तत्काल रोक देना चाहिए।

मानवीय गलियारों की स्थापना

भारत को म्यांमार सीमा पर तीन संवेदनशील क्षेत्रों — सगाइंग, चिन और राखाइन — के लिए मानवीय सहायता गलियारे खोलने चाहिए। इसमें सीमा पार राहत सामग्री, दवाइयां, भोजन और अस्थायी आश्रय सामग्री भेजना शामिल हो सकता है। मिजोरम में पहले से सक्रिय राहत नेटवर्क भारत के लिए मॉडल बन सकते हैं। साथ ही, भारत को सीमा बाड़ लगाने की योजना को वापस लेकर ‘Free Movement Regime’ को पुनः लागू करना चाहिए।

शरणार्थियों की वापसी पर रोक

भारत ने मणिपुर से 115 म्यांमार शरणार्थियों को वापस भेजा है, जो अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार सिद्धांत ‘non-refoulement’ का उल्लंघन है। भारत भले ही 1951 शरणार्थी सम्मेलन का पक्षकार नहीं है, लेकिन संविधान और अंतरराष्ट्रीय परंपराएं उसे मानवीय दृष्टिकोण अपनाने की अनुमति देती हैं। असम में बंद 27 चिन शरणार्थियों की रिहाई और उनकी मानवोचित देखरेख की व्यवस्था भारत की वैश्विक प्रतिष्ठा को बल देगी।

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