मोटापे से लड़ाई में नया मोड़: जब कोशिकाएँ ऊर्जा “बर्बाद” करके वजन घटाएं
वैज्ञानिक आज एक पुराने, और कभी खतरनाक माने गए विचार की ओर फिर से रुख कर रहे हैं — ऐसा तरीका जिससे शरीर की कोशिकाएँ सामान्य से ज्यादा ऊर्जा जलाएँ, और वह भी बिना किसी अतिरिक्त मेहनत के। ऑस्ट्रेलिया की यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी सिडनी के शोधकर्ताओं ने ऐसे दवाओं का विकास किया है जो माइटोकॉन्ड्रिया को अधिक मेहनत करने के लिए मजबूर करती हैं, जिससे कोशिकाएँ ऊर्जा को ATP में बदलने के बजाय गर्मी के रूप में बाहर निकाल दें। यह खोज मोटापा और चयापचय संबंधी रोगों के इलाज में एक नया आयाम जोड़ सकती है।
माइटोकॉन्ड्रिया क्या हैं और क्यों महत्वपूर्ण हैं?
माइटोकॉन्ड्रिया को अक्सर कोशिकाओं का “पावरहाउस” कहा जाता है। ये कोशिकाओं में भोजन से प्राप्त पोषक तत्वों को ATP (Adenosine Triphosphate) नामक रासायनिक ऊर्जा में बदलते हैं, जो मांसपेशियों से लेकर मस्तिष्क तक हर गतिविधि को ऊर्जा प्रदान करती है।
मोटापे की समस्या तब पैदा होती है जब ऊर्जा का सेवन (खाना) ऊर्जा की खपत (शारीरिक गतिविधि) से अधिक हो जाता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि केवल भूख को दबाने या व्यवहार में बदलाव पर निर्भर रहने के बजाय यदि कोशिका स्तर पर ऊर्जा की खपत बढ़ाई जाए, तो वजन घटाने के बेहतर परिणाम मिल सकते हैं। यहीं पर माइटोकॉन्ड्रिया की भूमिका अहम हो जाती है।
माइटोकॉन्ड्रियल “अनकपलिंग” क्या है?
सामान्य परिस्थितियों में, माइटोकॉन्ड्रिया पोषक तत्वों को ATP में बदलते हैं। लेकिन जब “माइटोकॉन्ड्रियल अनकपलर” नामक यौगिकों का उपयोग किया जाता है, तो यह प्रक्रिया बाधित हो जाती है। इसके परिणामस्वरूप, ऊर्जा ATP के रूप में संग्रहीत नहीं होती, बल्कि गर्मी के रूप में नष्ट हो जाती है। इससे शरीर को अपनी ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने के लिए अधिक वसा जलानी पड़ती है।
जैसा कि प्रमुख शोधकर्ता ट्रिस्टन रॉलिंग बताते हैं, यह प्रक्रिया कोशिकाओं को जानबूझकर थोड़ी “अक्षम” बनाती है, जिससे शरीर को अधिक कैलोरी जलानी पड़ती है और वजन कम हो सकता है।
पहले के “अनकपलर” क्यों खतरनाक थे?
यह विचार नया नहीं है। 20वीं सदी की शुरुआत में खोजे गए पहले अनकपलर घातक साबित हुए। उन्होंने शरीर में ऊर्जा जलने की प्रक्रिया को अनियंत्रित कर दिया, जिससे शरीर का तापमान असामान्य रूप से बढ़ गया और अंग विफलता व मृत्यु के मामले सामने आए। उन दवाओं में कोई नियंत्रण तंत्र नहीं था कि शरीर कितनी तेजी से ऊर्जा जलाए।
नई “माइल्ड” अनकपलिंग दवाओं की विशेषता
ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिकों ने हाल ही में Chemical Science पत्रिका में प्रकाशित शोध में बताया कि उन्होंने ऐसे रासायनिक यौगिक बनाए हैं जो माइल्ड अनकपलिंग करते हैं। इनसे माइटोकॉन्ड्रिया की ऊर्जा रूपांतरण प्रक्रिया धीमी होती है, लेकिन इस सीमा तक कि कोशिकाएँ सहन कर सकें। इस तरह, शरीर अधिक वसा जलाता है, लेकिन बिना गंभीर साइड इफेक्ट्स के।
इस नियंत्रण की वजह से ये दवाएँ पहले के खतरनाक यौगिकों की तरह जानलेवा नहीं हैं।
वजन घटाने से परे: व्यापक स्वास्थ्य लाभ
शोध में एक और महत्वपूर्ण बात सामने आई — ये यौगिक ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस भी कम करते हैं, जो बुढ़ापा, इंसुलिन प्रतिरोध और न्यूरोडीजेनेरेटिव बीमारियों से जुड़ा होता है। इससे संभावना है कि ये दवाएँ सिर्फ वजन घटाने में नहीं, बल्कि मेटाबॉलिक स्वास्थ्य सुधार, बुढ़ापे की गति कम करने और डिमेंशिया जैसे रोगों से सुरक्षा में भी कारगर हो सकती हैं।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- माइटोकॉन्ड्रिया शरीर की कोशिकाओं में ऊर्जा उत्पादन के केंद्र होते हैं।
- ATP (एडेनोसिन ट्राइफॉस्फेट) वह रसायन है जो कोशिकाओं की ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करता है।
- माइटोकॉन्ड्रियल अनकपलिंग वह प्रक्रिया है जिसमें ऊर्जा ATP के रूप में संग्रहीत होने की बजाय गर्मी के रूप में बाहर निकलती है।
- पिछले अनकपलर ज्यादा गर्मी उत्पन्न करके मृत्यु तक पहुंचाने वाले साबित हुए थे।
भविष्य की दिशा
यह शोध अभी प्रारंभिक और प्रयोगशाला स्तर पर है। कोई भी दवा फिलहाल चिकित्सकीय उपयोग के लिए तैयार नहीं है और इसे व्यापक सुरक्षा परीक्षणों से गुजरना होगा। लेकिन यह शोध इस दिशा में महत्वपूर्ण आधार बनाता है कि भविष्य में कैसे ऊर्जा खर्च को सीधे कोशिका स्तर पर बढ़ाकर मोटापे और संबंधित रोगों का इलाज किया जा सकता है।
विश्व स्तर पर मोटापा और चयापचय रोगों से जूझती स्वास्थ्य प्रणालियों के लिए यह दृष्टिकोण एक बदलावकारी समाधान साबित हो सकता है — जब इलाज का केंद्र ‘कम खाना’ नहीं, बल्कि ‘ज्यादा जलाना’ बन जाए।