मोटापे के दीर्घकालिक इलाज के लिए WHO ने जारी की पहली GLP-1 दिशा-निर्देश
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने पहली बार मोटापे के दीर्घकालिक इलाज के लिए जीएलपी-1 (GLP-1) थेरेपी को सिफारिशों में शामिल किया है। यह कदम वैश्विक स्तर पर चिकित्सकीय दृष्टिकोण में एक बड़ा परिवर्तन माना जा रहा है। विश्वभर में एक अरब से अधिक लोग मोटापे से प्रभावित हैं, और डब्ल्यूएचओ का उद्देश्य सुरक्षित, साक्ष्य-आधारित उपचार विकल्पों का विस्तार करना है, साथ ही वह इस क्षेत्र में लागत और समान पहुंच की चुनौतियों को भी रेखांकित करता है।
नई सिफारिशें और उनका दायरा
डब्ल्यूएचओ की गाइडलाइन में दो शर्तीय (conditional) सिफारिशें शामिल हैं। पहली वयस्क मोटापा रोगी (गर्भवती महिलाओं को छोड़कर) दीर्घकालिक मोटापा प्रबंधन के लिए जीएलपी-1 दवाओं का उपयोग कर सकते हैं। दूसरी इस थेरेपी को संतुलित आहार और नियमित शारीरिक गतिविधि के साथ जोड़ा जाना चाहिए। संगठन का कहना है कि मोटापा एक आजीवन स्थिति है जिसके लिए व्यापक देखभाल आवश्यक है, और केवल दवा से इस वैश्विक समस्या का समाधान संभव नहीं।
दिशा-निर्देशों के पीछे का कारण और चिंताएँ
सेमाग्लूटाइड, टिरज़ेपाटाइड और लिराग्लूटाइड जैसी जीएलपी-1 एगोनिस्ट दवाओं ने नैदानिक परीक्षणों में महत्वपूर्ण परिणाम दिखाए हैं। हालांकि, इनके लंबे समय तक और उच्च मात्रा में उपयोग से जुड़ी अनिश्चितताएँ अब भी बनी हुई हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि इन दवाओं को सावधानीपूर्वक अपनाया जाना चाहिए, क्योंकि इनकी लागत, टिकाऊ आपूर्ति और स्वास्थ्य तंत्र पर संभावित बोझ चिंता का विषय हैं। डब्ल्यूएचओ का अनुमान है कि मौजूदा उत्पादन दरों पर 2030 तक केवल 10 प्रतिशत से भी कम पात्र व्यक्तियों को ये उपचार उपलब्ध हो पाएंगे।
समानता, किफ़ायतीपन और आपूर्ति की चुनौतियाँ
डब्ल्यूएचओ की सबसे बड़ी चिंता इन दवाओं तक पहुंच में असमानता है। उच्च मांग, सीमित उत्पादन क्षमता और महंगे दाम स्वास्थ्य असमानताओं को बढ़ा सकते हैं। संगठन ने चेतावनी दी है कि यदि वैश्विक स्तर पर समन्वित प्रयास नहीं किए गए, तो जीएलपी-1 दवाएँ अमीर और गरीब देशों के बीच स्वास्थ्य अंतर को और गहरा कर सकती हैं। इसके समाधान के लिए उत्पादन क्षमता बढ़ाने, दवाओं की कीमत कम करने और संयुक्त खरीद मॉडल (pooled procurement) अपनाने की सिफारिश की गई है, जैसा कि अन्य प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों में किया जाता है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- डब्ल्यूएचओ ने 2025 में मोटापे के इलाज हेतु जीएलपी-1 थेरेपी पर पहली गाइडलाइन जारी की।
- सिफारिशों में सेमाग्लूटाइड, टिरज़ेपाटाइड और लिराग्लूटाइड दवाएँ शामिल हैं।
- पात्रता वयस्कों (BMI ≥ 30) के लिए है, गर्भवती महिलाओं को छोड़कर।
- मौजूदा रुझान के अनुसार 2030 तक 10% से कम पात्र लोगों को ही यह उपचार मिलेगा।
वैश्विक परिप्रेक्ष्य और आगे की दिशा
यह दिशा-निर्देश डब्ल्यूएचओ के उस पहले कदम पर आधारित है जिसमें उसने मधुमेह के उच्च जोखिम वाले समूहों के लिए जीएलपी-1 दवाओं को आवश्यक दवाओं की सूची में जोड़ा था। अब संगठन 2026 से सदस्य देशों के साथ मिलकर इन दवाओं की समान और प्राथमिक पहुंच सुनिश्चित करने की योजना बना रहा है। डब्ल्यूएचओ का अनुमान है कि यदि मोटापे का बोझ इसी गति से बढ़ता रहा, तो 2030 तक इससे जुड़ी आर्थिक लागत तीन ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच सकती है। यह दिशा-निर्देश मोटापे को केवल जीवनशैली नहीं, बल्कि एक गंभीर स्वास्थ्य स्थिति मानने की दिशा में वैश्विक स्वास्थ्य नीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ है।