मूलगंध कुटी विहार, सारनाथ

मूलगंध कुटी विहार, सारनाथ

सारनाथ, उत्तर प्रदेश में ऐतिहासिक रुचि का स्थान है। यह वह स्थान है जहाँ भगवान बुद्ध ने निर्वाण प्राप्त करने के बाद सबसे पहले अपने संदेश का प्रचार किया था। इस जगह का उल्लेख कुछ और भी मायने रखता है। इसके अलावा, सारनाथ में अशोक स्तंभ के पास स्थित मूलगंध कुटी विहार भी है।

मंदिर और भगवान का इतिहास
वर्ष 1931 में, महा बोधि समाज ने उत्तर प्रदेश के सारनाथ में इस आधुनिक मंदिर का निर्माण किया, जो अपने मुरल्स और फ्रेस्को के लिए प्रसिद्ध है।

मंदिर का स्थापत्य
मूलगंध कुटी विहार पारंपरिक वास्तुशिल्प डिजाइनों से अलग है। यह चाक और पनीर के रूप में किसी भी बौद्ध वास्तुशिल्प पैटर्न से अलग है। इस मंदिर में सुंदर भित्ति चित्र और भित्ति चित्र हैं। जापान के सबसे बड़े चित्रकार कोसेत्सु नोसू ने ये रंगीन भित्ति चित्र बनाए। इन सुंदर और करामाती भित्ति चित्रों और भित्तिचित्रों में बौद्ध साहित्य के समृद्ध भंडार हैं। मुल्गन्धा के भीतरी भाग में भित्तिचित्र प्रदर्शित किए गए हैं और मुरल्स बाहरी सजावट करते हैं। दीवारें और खंभे इन भित्ति चित्रों और भित्ति चित्रों को प्रदर्शित करते हैं।

इन सबके अलावा, विहार के प्रवेश द्वार में एक बहुत बड़ी घंटी है। जापान के शाही वंशजों ने इस कांस्य घंटी को उपहार में दिया है। गर्भगृह में बुद्ध की आदमकद स्वर्णिम प्रतिमा भी है। अन्य प्रदर्शनों में बोधि वृक्ष भी शामिल है, जिसका जलपान श्रीलंका से लाया गया था। यह बोधिवृक्ष मूल वृक्ष से उत्पन्न हुआ है जिसके तहत बुद्ध बोधगया में बैठे थे और 2500 साल पहले ज्ञान प्राप्त किया था।

Originally written on January 8, 2020 and last modified on January 8, 2020.

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