मुख्य चुनाव आयुक्त के खिलाफ हटाने का प्रस्ताव: विपक्ष ने उठाए गंभीर सवाल, संविधान और कानून के प्रावधानों पर नजर

मुख्य चुनाव आयुक्त के खिलाफ हटाने का प्रस्ताव: विपक्ष ने उठाए गंभीर सवाल, संविधान और कानून के प्रावधानों पर नजर

चुनाव आयोग की प्रेस वार्ता में चुनावी धोखाधड़ी के आरोपों को “बिना आधार” कहकर खारिज करने के एक दिन बाद, विपक्षी INDIA गठबंधन ने संसद सत्र के दौरान मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) को हटाने का प्रस्ताव लाने पर विचार की घोषणा की है। कांग्रेस नेता गौरव गोगोई ने कहा, “हमने कानूनी और संवैधानिक दोनों स्तरों पर कार्रवाई पर विचार किया है।”

CEC की नियुक्ति और कार्यकाल की प्रक्रिया

संविधान के अनुच्छेद 324 और CEC एवं अन्य चुनाव आयुक्त अधिनियम, 2023 के तहत CEC की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और एक केंद्रीय मंत्री की समिति की सिफारिश पर होती है। नियुक्ति के लिए अनिवार्य है कि उम्मीदवार ने भारत सरकार में सचिव स्तर का पद संभाला हो और चुनाव संचालन में अनुभव हो।
CEC और EC का कार्यकाल अधिकतम 6 वर्ष या 65 वर्ष की आयु, जो पहले हो, तक सीमित होता है। CEC को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के बराबर वेतन और सुविधाएँ मिलती हैं।

CEC को हटाने की संवैधानिक प्रक्रिया

अनुच्छेद 324(5) और धारा 11(2) के अनुसार, CEC को हटाने की प्रक्रिया वही है जो सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के लिए है, यानी—

  • हटाने का आधार: सिद्ध दुराचार (proved misbehaviour) या अक्षमता (incapacity)।
  • प्रक्रिया: संसद के दोनों सदनों में विशेष प्रस्ताव लाना होता है, जिसमें दो-तिहाई बहुमत से पास करना आवश्यक है।
  • जांच: प्रस्ताव स्वीकार होने के बाद एक समिति आरोपों की जांच करती है।
  • राष्ट्रपति की भूमिका: संसद के अनुमोदन के बाद राष्ट्रपति CEC को हटा सकते हैं; इसमें कोई विवेकाधिकार नहीं होता।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • CEC को हटाने की प्रक्रिया अब तक कभी सफलतापूर्वक लागू नहीं हुई है।
  • अन्य चुनाव आयुक्तों (EC) को हटाने के लिए CEC की सिफारिश अनिवार्य है।
  • CEC को हटाना केवल सिद्ध दुराचार या अक्षमता के आधार पर ही संभव है—राजनीतिक असहमति इसके लिए पर्याप्त नहीं।
  • 2023 अधिनियम के अनुसार, CEC और EC की दोबारा नियुक्ति की अनुमति नहीं है।

चल रहे विवाद की पृष्ठभूमि

8 अगस्त को राहुल गांधी ने बेंगलुरु सेंट्रल लोकसभा क्षेत्र के महादेवपुरा विधानसभा क्षेत्र में लगभग एक लाख “फर्जी मतदाता” पाए जाने का दावा किया। उनका आरोप था कि इसी प्रकार के जालसाजी से देशभर में चुनाव परिणामों को प्रभावित किया गया।
CEC ज्ञानेश कुमार ने इन आरोपों को खारिज करते हुए राहुल गांधी से शपथपत्र या सार्वजनिक माफी की मांग की। विपक्ष ने इसे “जांच को भटकाने और धमकाने” का प्रयास करार दिया।

चुनाव आयोग की स्वतंत्रता और चुनौतियाँ

हालांकि 2023 अधिनियम ने कुछ स्वायत्तता दी है, लेकिन—

  • चयन प्रक्रिया में कार्यपालिका का वर्चस्व बना हुआ है।
  • EC की हटाने की प्रक्रिया कमजोर है, क्योंकि यह CEC की सिफारिश पर निर्भर है।
  • आयोग का स्वतंत्र सचिवालय नहीं है, जिससे इसकी प्रशासनिक स्वायत्तता सीमित रहती है।
  • पोस्ट-रिटायरमेंट सरकारी पदों पर नियुक्तियों की संभावना आयोग की निष्पक्षता को प्रभावित कर सकती है।

भविष्य की राह: सुधारों की ज़रूरत

  • SC के आदेश (Anoop Baranwal बनाम भारत सरकार) के अनुसार, CEC और EC की नियुक्ति के लिए न्यायपालिका की भागीदारी वाला कोलेजियम मॉडल अपनाया जाना चाहिए।
  • मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट (MCC) को कानूनी मान्यता दी जाए ताकि उसका उल्लंघन दंडनीय हो।
  • रिमोट वोटिंग सिस्टम जैसे RVM को लागू किया जाए जिससे आंतरिक प्रवासी मतदाता भी अपने मताधिकार का उपयोग कर सकें।
  • आधार-आधारित फेस रिकग्निशन प्रणाली से फर्जी मतदान की रोकथाम हो सके।
  • चुनाव अनुसंधान केंद्र की स्थापना से नीतिगत, तकनीकी और शोध आधारित चुनावी सुधार संभव होंगे।

वर्तमान विवाद और प्रस्तावित कार्रवाई भारत के चुनावी तंत्र की पारदर्शिता, जवाबदेही और स्वतंत्रता पर गहन विमर्श की आवश्यकता को रेखांकित करते हैं। यह समय है कि चुनाव आयोग को राजनीतिक प्रभाव से मुक्त कर संवैधानिक मूल्यों के अनुरूप पुनर्गठित किया जाए।

Originally written on August 20, 2025 and last modified on August 20, 2025.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *