मुंबई में भीषण वर्षा का कहर: जलवायु परिवर्तन और आपदा प्रबंधन की चेतावनी

मुंबई और उसके उपनगरों में लगातार चार दिनों से हो रही मूसलधार बारिश ने जनजीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया है। भारतीय मौसम विभाग (IMD) ने अगले 24 घंटों में भारी बारिश जारी रहने की चेतावनी दी है, जिसके बाद वर्षा की तीव्रता में कुछ कमी आने की संभावना है। विशेषज्ञों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से ऐसे चरम मौसम की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं और इसके लिए पूर्व चेतावनी प्रणाली और अनुकूलन रणनीतियाँ अब आवश्यक हो गई हैं।
अतिवृष्टि के पीछे मौसम तंत्रों का समन्वय
मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार, महाराष्ट्र के तटीय क्षेत्रों में इस बार की बारिश के पीछे कई सक्रिय मौसम तंत्रों का एक साथ सक्रिय होना मुख्य कारण रहा। विदर्भ में बना कम दबाव क्षेत्र, उत्तर-पूर्वी अरब सागर में चक्रवातीय परिसंचरण, बंगाल की खाड़ी में बना दबाव क्षेत्र और सक्रिय अपतटीय मानसून ट्रफ मिलकर वर्षा को तीव्र बना रहे हैं।
मुंबई में 16 से 19 अगस्त के बीच 800 मिमी से अधिक बारिश दर्ज की गई है, जो अगस्त माह के औसत 560.8 मिमी को बहुत पीछे छोड़ चुकी है।
जलवायु परिवर्तन की भूमिका
जलवायु वैज्ञानिक डॉ. रघु मर्तुगुड़े के अनुसार, भारी वर्षा मुंबई के लिए नई बात नहीं है, लेकिन अब यह घटनाएं अधिक तीव्र और अचानक हो रही हैं। इसके पीछे ‘नॉर्थवर्ड स्विंग’ नामक प्रक्रिया है जिसमें मानसूनी हवाएँ अरब सागर से अत्यधिक नमी लेकर पश्चिमी घाट की ओर जाती हैं। इसके लिए मध्य-पूर्व में हो रही तीव्र गर्मी और वैश्विक तापमान वृद्धि को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है।
एक अध्ययन में पाया गया है कि 1979 से 2022 के बीच पाकिस्तान और उत्तर-पश्चिम भारत में वर्षा में 46% वृद्धि का कारण मध्य-पूर्व की तीव्र गर्मी रही है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- मुंबई में 16 से 19 अगस्त 2025 के बीच 800 मिमी से अधिक वर्षा हुई, जो अगस्त के औसत 560.8 मिमी से कहीं अधिक है।
- अरब सागर के गर्म होने से पश्चिमी तट पर नमी की मात्रा में वृद्धि हो रही है, जिससे अतिवृष्टि की घटनाएँ बढ़ रही हैं।
- BMC अब AI-ML आधारित ‘मल्टी-हैज़र्ड रिस्क एटलस’ तैयार कर रही है।
- CEEW ने ठाणे के लिए वर्षा आधारित ‘फ्लड रिस्क मैनेजमेंट प्लान’ तैयार किया है, जो 52 वर्षों के वर्षा आंकड़ों पर आधारित है।
समाधान की दिशा में सुझाव
IIT बॉम्बे के प्रोफेसर डॉ. सुबिमल घोष ने नागरिकों के लिए केंद्रीकृत पूर्व चेतावनी प्रणालियों की आवश्यकता पर बल दिया है। उन्होंने मुंबई फ्लड मॉनिटरिंग सिस्टम का उदाहरण देते हुए कहा कि ऐसे रियल-टाइम डेटा प्लेटफॉर्म्स से समय पर सूचनाएं मिल सकती हैं।
पूर्व IMD प्रमुख के.जी. रमेश ने कहा कि विभिन्न एजेंसियों के बीच बेहतर समन्वय, जोखिम क्षेत्रों की पहचान, और त्वरित निकासी योजनाएं तैयार करना अब अत्यावश्यक है।
CEEW के विशेषज्ञ डॉ. विश्वास चितले ने सुझाव दिया कि नगरों को अब ‘इंटेंसिटी-ड्यूरेशन-फ्रीक्वेंसी’ (IDF) प्रणाली अपनानी चाहिए जिससे यह ज्ञात हो सके कि किन क्षेत्रों में अधिक वर्षा की संभावना है और जल निकासी की योजना उसी के अनुरूप बने।
निष्कर्ष
मुंबई में हाल की वर्षा केवल एक मौसमीय घटना नहीं, बल्कि यह जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभाव और हमारी तैयारी की परीक्षा है। जब तक नागरिक-केन्द्रित चेतावनी प्रणालियाँ, ठोस शहरी योजनाएँ और पर्यावरणीय संतुलन की नीति नहीं अपनाई जाती, तब तक मुंबई जैसी महानगरों में अतिवृष्टि जनजीवन को बाधित करती रहेगी। यह समय है जब हम ‘मौसम का पूर्वानुमान’ केवल समाचार न समझें, बल्कि उससे अपनी सुरक्षा की योजना बनाएं।