मारकंडा नदी प्रदूषण मामला: एनजीटी के निर्देशों से उद्योगों की जांच तेज़

माचल प्रदेश के सिरमौर जिले में स्थित मारकंडा नदी में बढ़ते जल प्रदूषण को लेकर राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (NGT) ने सख्त रुख अपनाया है। 15 अक्टूबर को जारी आदेश में न्यायमूर्ति अरुण कुमार त्यागी ने हिमाचल और हरियाणा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों तथा सिरमौर के उपायुक्त को विस्तृत रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है। यह निर्देश 2022 में दायर एक याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया गया, जिसमें नदी में औद्योगिक अपशिष्टों के कारण जल प्रदूषण और जनस्वास्थ्य पर प्रभाव को उठाया गया था।
मारकंडा नदी: एक पवित्र जलधारा संकट में
मारकंडा नदी, जो शिवालिक पहाड़ियों से निकलती है, हिमाचल में लगभग 24 किलोमीटर बहने के बाद हरियाणा में 125 किलोमीटर का सफर तय कर घग्गर नदी में मिलती है। यह नदी धार्मिक दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण मानी जाती है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से इसमें बढ़ते औद्योगिक अपशिष्टों के कारण इसकी पवित्रता और पारिस्थितिक संतुलन पर खतरा मंडरा रहा है।
याचिकाकर्ता धर्मवीर, जो हरियाणा के नारायणगढ़ (अंबाला) के निवासी हैं, ने आरोप लगाया कि सिरमौर जिले के काला अंब औद्योगिक क्षेत्र की इकाइयाँ कैमई ड्रेन के माध्यम से अपशिष्ट जल मारकंडा नदी में बहा रही हैं। इससे न केवल जल प्रदूषित हो रहा है, बल्कि नीचे के इलाकों में रहने वाले ग्रामीणों और पशुओं में गंभीर बीमारियाँ फैल रही हैं।
एनजीटी के आदेश और जाँच के दिशा-निर्देश
NGT ने अपने आदेश में हिमाचल प्रदेश राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को निर्देश दिया है कि वे यह रिपोर्ट प्रस्तुत करें:
- कितने ड्रेनों का पानी मारकंडा नदी में गिरता है?
- इन ड्रेनों की स्थिति क्या है और क्या इनमें से किसी को टैप किया गया है या नहीं?
- क्या नदी में अपशोधित सीवेज बह रहा है?
साथ ही, बोर्ड को यह भी जांच करनी है कि काला अंब औद्योगिक क्षेत्र में कितनी इकाइयाँ संचालित हैं, उनमें से कितनी कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (CETP) से जुड़ी हैं और कितनी ज़ीरो लिक्विड डिस्चार्ज (ZLD) श्रेणी में आती हैं।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- मारकंडा नदी हिमाचल और हरियाणा की सीमा से निकलती एक पवित्र नदी है, जो घग्गर नदी में मिलती है।
- कोमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (CETP) औद्योगिक अपशिष्ट जल को सामूहिक रूप से शुद्ध करने का संयंत्र होता है।
- ज़ीरो लिक्विड डिस्चार्ज (ZLD) ऐसी तकनीक है जिसमें उद्योगों से कोई भी तरल अपशिष्ट बाहर नहीं जाता।
- राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (NGT) भारत की एक विशेष न्यायिक संस्था है, जो पर्यावरण संरक्षण और उससे जुड़े मामलों की सुनवाई करती है।
आगे की कार्यवाही और सामूहिक ज़िम्मेदारी
NGT ने हरियाणा और हिमाचल प्रदेश के प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों को आदेश दिया है कि वे सभी सीवेज और अपशिष्ट जल के डिस्चार्ज प्वाइंट्स से सैंपल लेकर उनकी प्रयोगशाला जांच करवाएं और रिपोर्ट जमा करें। यदि जांच में प्रदूषकों की उपस्थिति पाई जाती है, तो दोनों राज्यों के बोर्डों को उसके कारण और सुधारात्मक उपाय भी प्रस्तुत करने होंगे।
इसके अतिरिक्त, सिरमौर के उपायुक्त को यह निर्देश दिया गया है कि वे नदी किनारे की ज़मीन की मिल्कियत और उपयोग की प्रकृति पर भी विस्तृत रिपोर्ट तैयार करें। वहीं, काला अंब इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कंपनी को यह स्पष्ट करना होगा कि औद्योगिक इकाइयों से CETP तक अपशिष्ट जल कैसे पहुँचाया जाता है और प्रयोगशाला परीक्षण के क्या परिणाम हैं।