मानसिक स्वास्थ्य संकट और आत्महत्या: वैश्विक और भारतीय परिप्रेक्ष्य में गंभीर चुनौती

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा हाल ही में जारी रिपोर्टों ‘वर्ल्ड मेंटल हेल्थ टुडे’ और ‘मेंटल हेल्थ एटलस 2024’ के अनुसार, मानसिक स्वास्थ्य विकारों और आत्महत्या की समस्या आज वैश्विक स्तर पर एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट बन चुकी है। भारत जैसे देश में, जहां मानसिक स्वास्थ्य देखभाल संसाधन सीमित हैं, यह समस्या और भी जटिल रूप ले लेती है।
आत्महत्या के आंकड़े और प्रमुख मानसिक विकार
2021 में वैश्विक स्तर पर लगभग 7.27 लाख लोगों ने आत्महत्या की, यानी हर 100 मौतों में से एक आत्महत्या से होती है। आत्महत्या की एक घटना के पीछे 20 से अधिक असफल प्रयास होते हैं। WHO के अनुसार:
- आत्महत्या आज भी युवाओं की प्रमुख मृत्यु का कारण बनी हुई है।
- डिप्रेशन और एंग्ज़ायटी जैसे विकार सभी मानसिक समस्याओं का दो-तिहाई हिस्सा हैं।
- 20-29 आयु वर्ग में मानसिक विकारों की वृद्धि सबसे अधिक (1.8%) देखी गई।
- महिलाओं में एंग्ज़ायटी, डिप्रेशन और ईटिंग डिसऑर्डर अधिक पाए जाते हैं, जबकि पुरुषों में ADHD, ऑटिज़्म और बौद्धिक विकास संबंधी विकार अधिक देखे जाते हैं।
क्या 2030 तक आत्महत्या दर में कमी संभव है?
संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) के अनुसार, 2030 तक आत्महत्या की दर में एक-तिहाई की कमी लाना आवश्यक है। हालांकि, वर्तमान प्रवृत्ति के अनुसार केवल 12% की कमी ही संभव लगती है। WHO के अनुसार, इसके लिए आवश्यक हैं:
- निरंतर वित्तीय सहायता
- सशक्त नेतृत्व
- पहले से उपलब्ध योजनाओं का प्रभावी क्रियान्वयन
भारत में मानसिक स्वास्थ्य देखभाल की चुनौतियाँ
डॉ. प्रतिमा मूर्ति (निदेशक, NIMHANS) और डॉ. भरत वतवानी (मनोचिकित्सक और मैगसेसे पुरस्कार विजेता) के अनुसार भारत में मानसिक स्वास्थ्य सेवा की स्थिति निम्नलिखित प्रमुख चुनौतियों से जूझ रही है:
- संस्थानिक सीमाएं: मानसिक अस्पतालों की संख्या कम है और सामान्य अस्पतालों में मनोरोग बिस्तरों की कमी है।
- कर्मचारियों की भारी कमी: योग्य मनोचिकित्सकों, मनोवैज्ञानिकों, नर्सों और काउंसलरों की देशव्यापी भारी कमी है, विशेषकर ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में।
- वित्तीय बाधाएं: मरीजों और उनके परिवारों के लिए आर्थिक कारणों से इलाज तक पहुँचना मुश्किल होता है, खासकर दूरदराज के क्षेत्रों में।
- संवेदनशीलता की कमी और कलंक: मानसिक रोगों को लेकर समाज में अभी भी गहरी असंवेदनशीलता और कलंक बना हुआ है।
- चिकित्सा और दवाइयों की उपलब्धता: स्थायी इलाज के लिए आवश्यक दवाएं और सेवाएं कई क्षेत्रों में उपलब्ध नहीं हैं।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- विश्व आत्महत्या दर (2021): 7.27 लाख मृत्यु; हर आत्महत्या के पीछे 20 से अधिक प्रयास।
- ग्लोबल मेंटल डिसऑर्डर प्रचलन: 13.6%, जो 2011 की तुलना में 0.9% अधिक है।
- भारत में गंभीर मानसिक रोगी: लगभग 3 करोड़ (NIMHANS के अनुसार)।
- महत्वपूर्ण WHO रिपोर्ट्स: ‘World Mental Health Today’ और ‘Mental Health Atlas 2024’।
WHO और विशेषज्ञों की राय स्पष्ट रूप से बताती है कि आत्महत्या और मानसिक स्वास्थ्य संकट का समाधान केवल अस्पतालों या दवाइयों से नहीं हो सकता। इसके लिए समग्र सामाजिक, प्रशासनिक, आर्थिक और स्वास्थ्य तंत्र का सुदृढ़ीकरण आवश्यक है। समय की मांग है कि मानसिक स्वास्थ्य को सार्वजनिक स्वास्थ्य नीति के केंद्र में रखा जाए — तभी भारत और विश्व आत्महत्या जैसी त्रासदी से बाहर आ पाएंगे।