माओवादी कमांडर मदवी हिडमा का अंत: नक्सलवाद पर निर्णायक प्रहार

माओवादी कमांडर मदवी हिडमा का अंत: नक्सलवाद पर निर्णायक प्रहार

भारत में वामपंथी उग्रवाद के खिलाफ दशकों से चल रहे संघर्ष में माओवादी कमांडर मदवी हिडमा की मौत एक ऐतिहासिक मोड़ बन गई है। आंध्र प्रदेश के मरेडुमल्ली जंगल में हुए चार घंटे लंबे मुठभेड़ में मारे गए हिडमा की मौत ऐसे समय में हुई है जब देशभर में नक्सलियों के आत्मसमर्पण की लहर देखी जा रही है और माओवादी नेटवर्क लगातार कमजोर पड़ रहा है। यह घटना इस सवाल को जन्म देती है कि क्या नक्सल आंदोलन अब अपने अंतिम चरण में पहुंच चुका है।

हिडमा: दंडकारण्य का डरावना चेहरा

छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले का निवासी मदवी हिडमा आदिवासी पृष्ठभूमि से निकलकर माओवादी आंदोलन के सबसे प्रभावशाली चेहरों में से एक बना। वह पीपुल्स लिबरेशन गोरिल्ला आर्मी (PLGA) की बटालियन-1 का कमांडर और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) की केंद्रीय समिति का सदस्य था। हिडमा पर कई बड़े नक्सली हमलों की योजना और नेतृत्व का आरोप था, जिनमें दंतेवाड़ा और सुकमा जैसे बड़े हमले शामिल हैं। उसकी नेतृत्व क्षमता और कठोर अनुशासन के कारण वह माओवादी संगठन में रणनीतिक सोच का प्रतीक माना जाता था।

मरेडुमल्ली जंगल में निर्णायक मुठभेड़

सूत्रों के अनुसार, सुरक्षा बलों को विशेष खुफिया जानकारी मिली थी कि हिडमा अपनी पत्नी राजे और अन्य साथियों के साथ आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना की सीमाओं के पास मौजूद है। ग्रेहाउंड्स कमांडो ने केंद्रीय बलों के साथ मिलकर एक विशेष अभियान चलाया। घने जंगलों में हुई इस तड़के की मुठभेड़ में हिडमा, उसकी पत्नी और चार अन्य माओवादी मारे गए। यह ऑपरेशन वामपंथी उग्रवाद के खिलाफ अब तक की सबसे सफल कार्रवाइयों में से एक माना जा रहा है।

घटती माओवादी ताकत और सुरक्षा बलों का दबाव

पिछले कुछ वर्षों में निरंतर अभियान और खुफिया तंत्र की मजबूती के चलते माओवादी नेटवर्क बुरी तरह से बिखर चुका है। महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, ओडिशा और झारखंड में सुरक्षा बलों ने कई प्रभावशाली ठिकानों को ध्वस्त किया है। लगातार दबाव के कारण हिडमा जैसी शख्सियतें भी आंतरिक इलाकों में छिपने को मजबूर हो गई थीं। सरकार का लक्ष्य 2026 तक वामपंथी उग्रवाद को समाप्त करना है, और मौजूदा रुझान इसी दिशा में इशारा कर रहे हैं।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • नक्सल आंदोलन की शुरुआत 1967 में पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी से हुई थी।
  • अपने चरम पर “रेड कॉरिडोर” 125 से अधिक जिलों में फैला हुआ था।
  • वर्ष 2025 में अब तक 1,600 से अधिक माओवादी आत्मसमर्पण कर चुके हैं।
  • सीपीआई (माओवादी) की सशस्त्र शाखा का नाम पीपुल्स लिबरेशन गोरिल्ला आर्मी (PLGA) है।

हिडमा की मौत नक्सल आंदोलन की रीढ़ पर सबसे बड़ा आघात मानी जा रही है। हालांकि सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि माओवादी विचारधारा पूरी तरह समाप्त नहीं हुई है और यह छोटे समूहों में अब भी जीवित रह सकती है। फिर भी, सरकार और सुरक्षा एजेंसियों के बढ़ते प्रयासों से यह स्पष्ट है कि देश वामपंथी उग्रवाद के अंत की ओर तेजी से बढ़ रहा है।

Originally written on November 19, 2025 and last modified on November 19, 2025.

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