महेंद्रगिरि पहाड़ियों में निर्माण कार्य से संकट: जैव विविधता और आदिवासी जीवन पर खतरा

ओडिशा के गजपति जिले की महेंद्रगिरि पहाड़ियां, जो समुद्र तल से 1,500 मीटर ऊँचाई पर स्थित हैं, एक बार फिर पर्यावरणीय बहस के केंद्र में हैं। 2022 में इन्हें जैव विविधता धरोहर स्थल (Biodiversity Heritage Site) घोषित किया गया था, लेकिन बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य और पर्यटन परियोजनाओं ने इस क्षेत्र की नाजुक पारिस्थितिकी और समृद्ध जैव विविधता को गंभीर खतरे में डाल दिया है। यह इलाका न केवल सौर और कोंध जनजातियों का घर है, बल्कि यहाँ 1,348 प्रजातियों के पौधे और 388 प्रजातियों के जीव पाए जाते हैं, जिनमें कई विलुप्ति के कगार पर हैं।
पर्यटन और विकास परियोजनाओं का दबाव
राज्य सरकार ने 4,250 हेक्टेयर जंगल को संरक्षित धरोहर स्थल घोषित किया था, लेकिन इसके बावजूद पर्यटन अवसंरचना तेजी से विकसित हो रही है। नए पर्यटक कॉटेज, विशाल वन्य मंदिर परिसर, कुंती मंदिर से दरुब्रह्मा शिखर तक गलियारा और बड़ा परशुराम मंदिर जैसी योजनाएं प्रस्तावित हैं। पर्यावरणविदों का कहना है कि तीर्थयात्री अपेक्षाकृत कम संख्या में आते हैं, फिर भी विशाल निर्माण कार्य नाजुक पर्यावरण पर असहनीय दबाव डालेगा।
जैव विविधता पर गहराता संकट
महेंद्रगिरि क्षेत्र कभी हाथियों और बाघों का आश्रय स्थल था, लेकिन लगातार पारिस्थितिकी हानि और शिकार के कारण अब यह वन्यजीव लगभग गायब हो चुके हैं। रिपोर्टों के अनुसार 2022 से 2024 के बीच ओडिशा में हाथी शिकार से सबसे अधिक मौतें दर्ज की गईं। यह स्थिति स्पष्ट करती है कि तेजी से बदलता भू-दृश्य और अवैध गतिविधियाँ स्थानीय वन्यजीवों के लिए विनाशकारी साबित हो रही हैं।
आदिवासी समुदायों और धार्मिक धरोहर पर असर
महेंद्रगिरि न केवल प्राकृतिक विविधता के लिए बल्कि सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व के लिए भी जाना जाता है। पंचपांडव मंदिर इस क्षेत्र को एक प्रमुख तीर्थस्थल बनाते हैं। सौर और कोंध आदिवासी समुदाय यहाँ सदियों से रहते आए हैं, और उनका जीवन जंगल तथा जल संसाधनों से गहराई से जुड़ा हुआ है। लेकिन अव्यवस्थित पर्यटन विकास से उनकी पारंपरिक जीवनशैली और आजीविका पर भी खतरा मंडरा रहा है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- महेंद्रगिरि पहाड़ी को 2022 में जैव विविधता धरोहर स्थल घोषित किया गया।
- 1980 के दशक में वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने इसे बायोस्फीयर रिजर्व घोषित करने की सिफारिश की थी।
- यहाँ 1,348 पौधों और 388 पशु प्रजातियों का घर है, जिनमें कई संकटग्रस्त हैं।
- ओडिशा में 2022-24 के बीच हाथियों की शिकार से मौतें भारत में सबसे अधिक दर्ज की गईं।