महाराष्ट्र में 2000 वर्ष पुरानी विशाल गोलाकार पत्थर भूलभुलैया की खोज

महाराष्ट्र में 2000 वर्ष पुरानी विशाल गोलाकार पत्थर भूलभुलैया की खोज

महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के बोरामणी घास के मैदानों में पुरातत्वविदों ने एक अत्यंत दुर्लभ और ऐतिहासिक गोलाकार पत्थर भूलभुलैया की खोज की है। यह संरचना भारत में अब तक दर्ज की गई सबसे बड़ी गोलाकार भूलभुलैया मानी जा रही है। विशेषज्ञों के अनुसार, इसका निर्माण लगभग 2000 वर्ष पूर्व हुआ था और यह प्राचीन भारत की इंजीनियरिंग दक्षता, व्यापारिक गतिविधियों और सांस्कृतिक संपर्कों पर महत्वपूर्ण प्रकाश डालती है।

अनूठी संरचना और अभूतपूर्व आकार

यह भूलभुलैया लगभग 50 फीट × 50 फीट क्षेत्रफल में फैली हुई है और इसमें 15 संकेन्द्रीय पत्थर वृत्त बनाए गए हैं। इसकी पूर्णतः गोलाकार ज्यामिति इसे भारत में अब तक मिली अन्य भूलभुलैयाओं से अलग बनाती है। इससे पहले भारत में तमिलनाडु में मिली भूलभुलैया चौकोर आकार की थी। वैश्विक स्तर पर भी इससे पहले सबसे बड़ी ज्ञात गोलाकार भूलभुलैया में केवल 11 संकेन्द्रीय वृत्त थे, जिससे बोरामणी की यह खोज संरचनात्मक दृष्टि से असाधारण बन जाती है।

पूर्व खोजों से तुलना

यद्यपि यह भारत की सबसे बड़ी गोलाकार भूलभुलैया है, लेकिन कुल क्षेत्रफल के लिहाज से यह दूसरी सबसे बड़ी संरचना है। क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ी भूलभुलैया गेडिमेडु (तमिलनाडु) में पाई गई 56 फीट की चौकोर भूलभुलैया है। इसके बावजूद, बोरामणी की गोलाकार बनावट प्राचीन भारतीय स्थानिक योजना और प्रतीकात्मक संरचनाओं के अध्ययन में एक नया आयाम जोड़ती है।

ऐतिहासिक संदर्भ और व्यापारिक संबंध

विशेषज्ञों ने इस संरचना को सातवाहन वंश के काल से जोड़ा है, जिसने दक्कन क्षेत्र के बड़े हिस्से पर शासन किया था और प्रारंभिक अंतरमहाद्वीपीय व्यापार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस भूलभुलैया के पैटर्न प्राचीन रोमन सिक्कों पर अंकित डिजाइनों से मिलते-जुलते हैं, जिससे भारत-रोम व्यापारिक संपर्कों के संकेत मिलते हैं। पुरातत्वविदों का मानना है कि यह संरचना पश्चिमी तट से अंतर्देशीय क्षेत्रों की ओर आने वाले रोमन व्यापारियों के लिए एक सांकेतिक या दिशानिर्देशक चिन्ह हो सकती है।

खोज, पारिस्थितिकी और संरक्षण प्रयास

इस संरचना को सबसे पहले एक वन्यजीव गैर-सरकारी संगठन ने देखा था, जो बोरामणी घास का मैदान क्षेत्र में ग्रेट इंडियन बस्टर्ड और भेड़ियों की निगरानी कर रहा था। बाद में पुरातत्व विशेषज्ञों ने इसके ऐतिहासिक महत्व की पुष्टि की। दो सहस्राब्दियों तक इसका सुरक्षित रहना पुरातत्व, पारिस्थितिकी और प्राचीन वाणिज्य के दुर्लभ संगम को दर्शाता है। अब विशेषज्ञ इसके त्वरित दस्तावेजीकरण और संरक्षण की दिशा में कार्य कर रहे हैं।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • बोरामणी भूलभुलैया भारत में खोजी गई सबसे बड़ी गोलाकार पत्थर भूलभुलैया है।
  • इसमें 15 संकेन्द्रीय पत्थर वृत्त हैं और इसकी आयु लगभग 2000 वर्ष आंकी गई है।
  • यह संरचना सातवाहन काल से जुड़ी मानी जाती है।
  • यह खोज भारत-रोम व्यापार और सांस्कृतिक संपर्कों के संकेत देती है।

यह खोज प्राचीन भारत की तकनीकी समझ, व्यापारिक दृष्टि और सांस्कृतिक जटिलता को उजागर करती है। बोरामणी की यह भूलभुलैया न केवल पुरातात्विक दृष्टि से अमूल्य है, बल्कि यह भारत की प्राचीन वैश्विक संपर्क परंपरा को भी सशक्त रूप से सामने लाती है।

Originally written on December 25, 2025 and last modified on December 25, 2025.

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