महाराष्ट्र में प्याज किसानों का आंदोलन: मूल्य संकट और समाधान की राह

महाराष्ट्र के हजारों प्याज किसान 12 सितंबर 2025 से “फोन आंदोलन” कर रहे हैं। यह विरोध उस गहरे आर्थिक संकट को उजागर करता है जिससे राज्य के किसान जूझ रहे हैं। भारत का सबसे बड़ा प्याज उत्पादक राज्य होने के बावजूद, किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य नहीं मिल रहा है। यह आंदोलन केवल कीमतों के गिरने की समस्या नहीं, बल्कि एक गहरे तंत्रगत संकट का संकेत है, जिसे हल करने के लिए व्यापक नीति परिवर्तनों की आवश्यकता है।

किसानों की पीड़ा: लागत से भी कम मूल्य

वर्तमान में किसान ₹2,200 से ₹2,500 प्रति क्विंटल की लागत पर प्याज का उत्पादन कर रहे हैं, लेकिन उन्हें बाजार में केवल ₹800 से ₹1,000 प्रति क्विंटल का मूल्य मिल रहा है। रबी सीज़न में भंडारण की गई प्याज अब सड़ने लगी है, जिससे किसान उसे सस्ते दामों में बेचने को मजबूर हैं।
इसके अतिरिक्त, सरकार द्वारा बफर स्टॉक से प्याज सस्ते दामों पर बाजार में उतारने से मूल्य और भी गिर गए हैं। इसीलिए किसान संगठनों की मांग है कि NAFED और NCCF को प्याज की बिक्री तत्काल बंद करनी चाहिए। यह दोनों संस्थाएं सरकार की मूल्य स्थिरीकरण नीति के तहत प्याज खरीदती और बेचती हैं, परंतु इस समय उनकी बिक्री से किसानों को भारी नुकसान हो रहा है।

मूल्य स्थिरीकरण नीति: उपभोक्ताओं को राहत, किसानों को हानि

भारत सरकार की मूल्य स्थिरीकरण नीति के अंतर्गत, प्याज का बफर स्टॉक बनाकर आवश्यक समय पर उसे बाजार में रिलीज़ किया जाता है ताकि उपभोक्ताओं को उचित दाम पर प्याज मिले और जमाखोरी रोकी जा सके। परंतु जब किसान पहले से ही अपने स्टॉक से प्याज बेचने की कोशिश कर रहे हों और बाजार मूल्य उत्पादन लागत से भी कम हो, तब सरकारी स्टॉक से की गई बिक्री केवल नुकसान को और बढ़ा देती है।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • महाराष्ट्र भारत का सबसे बड़ा प्याज उत्पादक राज्य है।
  • 2022-23 में भारत ने 25.25 लाख टन प्याज का निर्यात किया था, जो 2024-25 में घटकर केवल 11.47 लाख टन रह गया।
  • भारत की प्याज मूल्य स्थिरीकरण नीति “Price Stabilisation Fund (PSF)” के अंतर्गत संचालित होती है।
  • आंध्र प्रदेश सरकार ने किसानों से ₹1,200 प्रति क्विंटल की दर से प्याज की खरीद की घोषणा की है।

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