मशीन-पठनीय मतदाता सूची की मांग और चुनाव आयोग की पारदर्शिता पर बहस

हाल ही में कांग्रेस नेता और विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने ‘वोट चोरी’ के आरोपों के बीच एक बड़ी मांग उठाई है — भारत निर्वाचन आयोग (EC) सभी राजनीतिक दलों को मशीन-पठनीय (machine-readable) मतदाता सूची उपलब्ध कराए। यह मांग चुनाव पारदर्शिता और तकनीकी सुविधा को लेकर एक नई बहस को जन्म दे रही है।
मतदाता सूची क्या होती है और यह कैसे साझा की जाती है?
- मतदाता सूची भारत में यह अधिकृत सूची होती है, जिसमें यह दर्ज होता है कि कौन वोट देने का अधिकारी है और कौन नहीं।
- इसे जिला स्तर के अधिकारियों द्वारा तैयार किया जाता है और नियमित रूप से अपडेट किया जाता है।
- इसके लिए ERONET नामक डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग होता है।
- आमतौर पर ये सूचियाँ ‘इमेज PDF’ रूप में वेबसाइट पर डाली जाती हैं — इनमें मतदाता की तस्वीर नहीं होती और ये टेक्स्ट के रूप में खोजने योग्य नहीं होतीं।
मशीन-पठनीय सूची क्यों जरूरी है?
- टेक्स्ट PDF या मशीन-पठनीय रूप में मतदाता सूची आसानी से कंप्यूटर द्वारा खोजी, विश्लेषित और जाँची जा सकती है।
- 2024 तक भारत में लगभग 99 करोड़ मतदाता प्रविष्टियाँ हैं — ऐसे में किसी गड़बड़ी, दोहराव या फर्जी प्रविष्टियों को ढूंढ़ना बिना टेक्नोलॉजी के लगभग असंभव है।
- बेंगलुरु के महादेवपुरा निर्वाचन क्षेत्र में कांग्रेस ने 11,965 दोहराव वाले नाम मैन्युअल रूप से पहचान कर उजागर किए।
चुनाव आयोग का रुख
- 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने कमलनाथ बनाम भारत निर्वाचन आयोग मामले में यह कहने से इनकार कर दिया कि आयोग को मशीन-पठनीय सूची अनिवार्य रूप से देनी चाहिए।
- आयोग की 2019 की नीति के अनुसार, मशीन-पठनीय सूची को वेबसाइट पर डालने से रोका गया, यह कहते हुए कि विदेशी शक्तियों द्वारा भारतीय नागरिकों की व्यक्तिगत जानकारी (नाम, पता) का दुरुपयोग हो सकता है।
तकनीकी और व्यावहारिक बाधाएँ
- OCR (ऑप्टिकल कैरेक्टर रिकग्निशन) तकनीक से इमेज PDF को टेक्स्ट में बदला जा सकता है, लेकिन इसमें लागत और समय दोनों अधिक लगता है।
- उदाहरण: पूरे देश की मतदाता सूचियों पर एक OCR विश्लेषण करने में $40,000 (लगभग ₹33 लाख) का खर्च आ सकता है।
- साथ ही, प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र की सूची कई छोटे PDF “भागों” में बंटी होती है, जिससे डाउनलोड और विश्लेषण की प्रक्रिया और जटिल हो जाती है।
पारदर्शिता बनाम गोपनीयता
- राहुल गांधी और अन्य विपक्षी दलों का तर्क है कि यदि सूचियाँ सार्वजनिक और खोजने योग्य हों, तो लोकतंत्र मजबूत होगा और गड़बड़ी की संभावना घटेगी।
- पारदर्शिता कार्यकर्ता श्रीनिवास कोडाली के अनुसार, “अगर राजनीतिक दलों के पास OCR तकनीक पहले से है, तो इसे सार्वजनिक रूप से उपलब्ध करने में आपत्ति क्यों?”
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- भारत में ERONET प्रणाली के तहत मतदाता सूचियों का डिजिटलीकरण और अद्यतन किया जाता है।
- चुनाव आयोग वेबसाइट पर ‘इमेज PDF’ रूप में मतदाता सूची डालता है, न कि टेक्स्ट रूप में।
- सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में यह स्पष्ट किया कि मशीन-पठनीय सूची देना आयोग की विवेकाधीन शक्ति है, अनिवार्य नहीं।
- OCR (ऑप्टिकल कैरेक्टर रिकग्निशन) एक पुरानी तकनीक है जो स्कैन की गई इमेज को टेक्स्ट में बदल सकती है।
भारत के लोकतंत्र की पारदर्शिता और विश्वसनीयता के लिए मतदाता सूचियों का सार्वजनिक, मशीन-पठनीय रूप में उपलब्ध होना एक बड़ा सुधार हो सकता है। हालांकि डेटा गोपनीयता को ध्यान में रखते हुए इसके लिए संतुलित नीति बनाना समय की मांग है।